नई दिल्ली| केंद्र सरकार की वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) घाटे की भरपाई की बाध्यता न होने पर राज्यों को ऊंची दरों पर उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। आंकलन के मुताबिक राज्यों को कोरोना संकट के चलते करीब चार लाख करोड़ रुपये का टैक्स घाटा सहना पड़ सकता है। जानकारों की राय में केंद्र सरकार को कोई वैकल्पिक रास्ता तलाश कर राज्यों की मदद के लिए आगे आना चाहिए।
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आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने हिन्दुस्तान से बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार राज्यों को महामारी के दौर में हो रहे घाटे की भरपाई के लिए बाध्य नहीं है। ऐसे में जीएसटी काउंसिल को चाहिए कि कुछ चीजों पर टैक्स बढ़ाएं और राज्यों के घाटे की भरपाई करें। जीएसटी कानून में यह प्रावधान है कि घाटा होने की हालत में टैक्स बढ़ाकर उसकी भरपाई की जा सकती है। हालांकि राज्यों के पास भी उधारी लेने का विकल्प हैं लेकिन वो उनके हित में नहीं रहेगा। उन्होंने ये भी सलाह दी है कि या तो केंद्र सरकार या फिर जीएसटी काउंसिल को उधार लेकर राज्यों की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का जिम्मा लेना चाहिए।
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ प्रणब सेन ने कहा कि कोरोना संकट के दौर में राज्यों पर आर्थिक बोझ बढ़ता ही जा रहा है। उन्होंने कहा कि राज्यों को लोगों के इलाज के साथ साथ उन्हें रोजगार देने का भी खर्च उठाना पड़ रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में उन्हें आर्थिक मदद की ज्यादा जरूरत होगी। आंकलन है कि कोरोना महामारी से राज्यों को इस साल टैक्स में करीब 4 लाख करोड़ रुपए का घाटा होगा।
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प्रणब सेन ने ये भी कहा कि केंद्र ने राज्यों को उधारी का विकल्प दिया है। लेकिन राज्य अगर उधार लेने जाते हैं तो उन्हें केंद्र सरकार के मुकाबले महंगा कर्ज मिलेगा। साथ ही कर्ज का नुकसान राज्यों को लंबी अवधि तक उठाना पड़ेगा। ऐसे में उनकी हालात और बदतर होगी। उन्होंने सलाह दी है कि केंद्र सरकार को ही राज्यों की आर्थिक मदद के लिए आगे और वित्त मंत्री को वैक्ल्पिक रास्ता तलाशते हुए राज्यों को धन मुहैया कराने का रास्ता तलाशना चाहिए।