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यूपी में कांग्रेस या अखिलेश का ब्राह्मण चेहरा बनेंगे चंद्रशेखर!

Chandrashekhar Upadhyay

Chandrashekhar Upadhyay

तो क्या  चंद्रशेखर  पंडित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय  कांग्रेस में जा रहे हैं या  अखिलेश से पुरानी दोस्ती को फिर जीवित कर रहे हैं, भाजपा के हालिया असरदार  सूबोंमें दखल रखने वाले राजनीतिक पंडित और विश्लेषक इसकी पड़ताल में जुट गए हैं।

अगर ऐसा होता है तो भाजपा को इसकी भारी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी।  चंद्रशेखर न केवल संघ व जनसंघ के सबसे  बड़े राजनीतिक परिवार के वारिस हैं,बल्कि उनकी खुद कीदेशव्यापी पहचान है, असर है।  वह किशोरावस्था से देश की शीर्ष अदालतों(सर्वोच्च न्यायालय ) और 25 उच्च न्यायालयों में  हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं ( संविधान की अष्टम अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाएं जिनकी लिपि उपलब्ध है) में समस्त कार्यवाही निपटाने एवं निर्णय भी पारित किए जाने हेतु संघर्षरत हैं। ‘हिंदी से न्याय’ के अपने इस देशव्यापी अभियान को वह  अंतिम द्वार तक ले आए हैं।  अब मामला संसद के पाले में है। मौजूदा प्रधानमंत्री ने अपने सात वर्ष के कार्यकाल में सात मिनट  भी मिलने कावक्त नहीं दिया है।  मामला 2015 में संसद के पटल पर आ चुका है। केंद्रीय मंत्री अर्जुन  राम मेघवाल ने  यह मामला 16वीं लोकसभा में उठाया था।  17वीं लोसभा के भी दो साल बीत चुके हैं, लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है। चंद्रशेखर इस मुद्दे पर संघ और भाजपा के  हर द्वार पर गए हैं लेकिन सभी  ने उनको अनसुना किया है।

जनसंघ  के दरवाजे पर कांग्रेस और मित्र दलों की दस्तक

हिंदी पट्टी में बिगाड़ सकते हैं भाजपा का अंकगणित

कांग्रेस के  दिग्गज नेता अहमद पटेल  थे  अभियान के समर्थक

चंद्रशेखर ने संगठन,रचनात्मकता और आंदोलन के गुर  नाना जी देशमुख, रज्जू भइया, शेषाद्रि और अशोक सिंघल से सीखे हैं, जिसका असर उनके ‘हिंदी से न्याय’ देशव्यापी अभियान में दिख रहा है। पिछले चार वर्षों में उन्होंने  अपनासंगठनात्मक ढांचा  बेहद मजबूती से सजाया है। 27 प्रांतों में उनकी टीमें काम कर रही हैं।  उन्होंने अपने अभियान में हर दल, हर वर्ग,हर क्षेत्र के लोगों को जोड़ा है।  अपने देशव्यापी प्रवास के दौरान वह द्वार-द्वार,गांव-गांव, गली-गली तक गए हैं।  विद्यार्थी जीवन में हिंदी भाषा को एल-एल.एम की परीक्षा में वैकल्पिक माध्यम बनाने के लिए  उन्होंने कड़ा संघर्ष किया है।  हर आंदोलनात्मक गतिविधियां उन्होंनेचलाई हैं।  फिलहाल इस समयवह पिछले डेढ़ वर्ष से देश भर में अनुच्छेद -348  में संशोधन की मांग को लेकर  देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं, यह उनके अभियान कारचनात्मक हिस्सा है।  राजनीतिक पंडित चंद्रशेखर के  अगले आंदोलनात्मक कदम का  इंतजार कर रहे हैं। क्या अपनी मांग के समर्थन में वह देशव्यापी आंदोलन करेंगे  या विपक्षी दलों से मिलकर  एक राष्ट्रीय सहमति बनाकर मोदी सरकार पर दबाव बनाएंगे। यह सवाल हवा में तैर रहा है

कांग्रेस के स्व. अहमद पटेल , जनार्दन द्विवेदी,राजेशपति त्रिपाठी समेत  कई बड़े नाम उनके अभियान के समर्थक रहे हैं।  हाल ही में कांग्रेस के बड़े नेता हरीश रावत ने उनसे फोन पर बातचीत की है तथा ट्वीट कर उन्हें कांग्रेस का समर्थन प्रदान किया है।

खबर है कि मामला कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व तक पहुंच गया है, जल्दी ही वहां से भी  चंद्रशेखर को समर्थन की घोषणा होने वाली है। देश के सबसे बड़े सूबे यूपी जहां से  दिल्ली का अगला सुल्तान तय होगा, वहां के दोनों बड़े विपक्षी दलों समाजवादी पार्टी एवं बसपा से चंद्रशेखर की टीमें बात कर रही हैं। आप के संजय सिंह समेत प्रमुख दलों से उनकी लगातार बात होती रहती है। अभियान की चार जून को संपन्न केंद्रीय वर्चुअल बैठक में देश के 22 विपक्षी दलों से समर्थन मांगने का निर्णय लिया गया है। चंद्रशेखर का अभियान अपने मुद्दे पर राष्ट्रीय सहमति की ओर बढ़ रहा है।

यूपी में कांग्रेस और अखिलेश जिस साफ-सुथरे बेदाग ब्राह्मण चेहरे की तलाश कर रहे थे, चंद्रशेखर उन मानकोंमें पूर्णांक रखते हैं। पत्रकारिता से अपना कैरियर शुरू करने वाले चंद्रशेखर न्यायाधीश एवं कई मुख्यमंत्रियों के विधि सलाहकार रह चुके हैं। न्याय, विधायी एवं संसदीय कार्य मामलों में उनकी विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित होकर कांग्रेसी मुख्यमंत्री पं. नारायणदत्त तिवारी ने उन्हें उत्तराखंड में सर्वोच्च  विधि अधिकारी का दायित्व सौंपा था, उनकी गिनती देश के ईमानदार और कड़क जजों में होती है, न्यायिक क्षेत्र के प्रतिष्ठित न्याय-मित्र अवार्ड से  वह नवाजे जा चुके हैं, जिसे वह दो वर्ष पहले लौटा भी चुके हैं। चंद्रशेखर आकस्मिक निरीक्षण एवं छापों के लिए मशहूर रहे हैं। लखनऊ में जज रहते हुए अपने कार्यालय  में वह अक्सर सरप्राइज विजिट करते थे।  उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के ओएसडी (न्यायिक, विधायी एवं संसदीय कार्य ) रहते हुए पूरे प्रदेश में उन्होंने  अनगिनत आकस्मिक निरीक्षण एवं निलंबन किए थे।

पत्रकार रहते हुए विद्यार्थी जीवन में 1993 की शुरुआत में दिवंगत अजित सिंह का पहली बार भाजपा से समझौता उन्होंने हीकराया था, जिसकी बदौलत भाजपा जाट- इलाकों में सेंधमारी कर पाई। 1969 के जनस्ंघ-सोशलिस्ट एका का 2021-22 में वह सबसे उपयुक्त चेहरा हैं। कांग्रेस और अखिलेश इसे जरूर कैश करना चाहेंगे। उनकी अनगिनत उपलब्धियां और कीर्तिमान हैं, उनकी कोशिशें मिसाल बनी हैं।

चंद्रशेखर संघ की प्राथमिक कक्षा से शीर्ष तक पहुंचे हैं। जाहिर है, संघ और भाजपा के तरकश के हर तीर से वह वाकिफ होंगे। उन तीरों का भेदन-शोधन एवं नष्ट करने की कला भी वह जानते ही होंगे। कांग्रेस और अखिलेश इसे बखूबी समझ रहे हैं। चंद्रशेखर से मेल-जोल अनायास नहीं है, इसकी बुनियाद काफी पहले रखी जा चुकी है। अब तो केवल घोषणा  होना बाकी है।

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