एक कबाड़ी के घर में जन्मी इस बिटिया ने असंभव को संभव करने जैसा काम किया है। तभी तो उसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से नवाज़ा है। मेरठ में कबाड़ी के घर जन्मी बेटी साक्षी जौहरी ने अपने माता- पिता के साथ ही जिले का काम भी रौशन किया है।
साक्षी ने बताया कि बचपन में उनके घर वालों का पड़ोस के लोगों से झगड़ा हुआ था, जिसमें उसके पिता को चोट लग गई थी। लेकिन इसका साक्षी पर इतना गहरा असर पड़ा कि उसने जूडो सीखने का मन बना लिया। ताकि समाज के दुश्मनों को सबक सिखाया जा सके।
अब साक्षी ने छोटी उम्र में ही जूड़ो सीखना भी शुरू कर दिया। इसके बाद साक्षी ने देखते ही देखते वुशु सीखा। इसके बाद वुशु में ऐसी डूबी कि उसने दो हज़ार आठ से जो सिलसिला शुरू किया आज तक नहीं रुका।
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बिटिया ने वुशु खेल में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा नाम रोशन किया कि उसके घर पर मेडल का ज़खीरा लग गया। साक्षी कहती हैं कि आज की तारीख में उसके पास इतने मेडल हैं कि घर पर रखने की जगह नहीं है।
बिटिया का कहना है कि उसे फक्र है कि उसने एक कबाड़ी के घर में जन्म लिया और रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार जैसी उपलब्धि को वो अपने माता पिता को ही समर्पित करती है। 76 साल के साक्षी के पिता आज भी गली-गली में घूमकर कबाड़ इकट्टा करते हैं।
साक्षी के पिता का कहना है कि इस बेटी को असली पंख मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिए हैं, जिन्होंने इस बिटिया को रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से नवाज़कर उसकी हिम्मत बढ़ाई है। वहीं घर-घर जाकर नवजात बच्चों की मालिश करने वाली मां गीता जौहरी अपनी बिटिया की कामयाबी पर कहती हैं कि गरीबी में बच्चों को सपने देखने की भी मनाही होती है।