Site icon 24 GhanteOnline | News in Hindi | Latest हिंदी न्यूज़

कुछ याद इन्हें भी कर लो…

आज के दिन ही आज़ाद हिंद फ़ौज के सैनिक कर्नल शौकत अली मलिक (Colonel Shaukat Ali) ने पहली बार भारतीय ज़मीन में भारत का झंडा (Tiranga) फहराया था। कर्नल मलिक ने कुछ मणिपुरी और आज़ाद हिंद फ़ौज के साथियों की मदद से मणिपुर स्थित मोईरांग नामक जगह को अंग्रेज़ी हुकूमत से मुक्त करवा कर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। कर्नल शौकत अली मलिक आज़ाद हिन्द फ़ौज के बहादुर रेजिमेंट को लीड कर रहे थे।

कर्नल शौकत अली की पैदाइश ज़िला मुल्तान ; अविभाजित पंजाबद्ध में हुई थी। आप नायक.सूबेदार के पद पर ब्रिटिश भारतीय फौज में बहावलपुर में पोस्ट हुएए जहां से आपको फौज के एक ग्रुप का इंचार्ज बनाकर सिंगापुर भेजा गया। जापान के सामने दूसरी जंगे.अज़ीम के वक़्त ब्रिटिश इण्डियन आर्मी को सरेंडर करना पड़ाए उसमें आप भी थे।

कर्नल मलिक भारतीय राष्ट्रीय सेना में रहते हुए बहुत ज़िम्मेदारी से अपने काम को अंजाम देते थेए लेकिन भारत की जंगे.आज़ादी में भी पूरी दिलचस्पी रखते थे। कर्नल मलिक को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जंग के दौरान बहादुरी के लिए सरदारे जंग का खिताब दिया था।

UPSC ने जारी किया IFS Mains का रिजल्ट, यहां करें चेक

कर्नल मलिक की क़ाबिलियत का अंदाज़ा इससे भी लगाया जाता है कि उन्हें जून सन् 1942 में इण्डियन इंडीपेंडेंस लीग की तरफ से इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भारत का प्रतिनिधि बनाकर बैंकाक भेजा गया था।

सन् 1942 में कैप्टन मोहन सिंह ने जब इण्डियन नेशनल आर्मी बनायी तो आप उसमें शामिल हो गए जहां उन्हें फरवरी सन् 1943 को खुफ़िया विभाग का कमाण्डर बनाया गया। उनकी फ़ौजी तैयारी और लीडरशिप को देखते हुए उन्हें लोग मास्टर माइंड ऑफ इंटिलीजेंस के नाम से जानने लगे।

14 अप्रैल : आज हुआ था संविधान निर्माता का जन्म और एक घटना से सन्न रह गया था अमेरिका

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जब ब्रिटिश फौज के खिलाफ़ जंग का एलान कर दिया और दिल्ली चलो का नारा दियाए तब उस वक़्त कर्नल मलिक वहां मौजूद नहीं थे लेकिन बाद में आप सीधे सिंगापुर से बर्मा की जंग के मैदान में पहुंच गये और बहुत बहादुरी से लड़कर ब्रिटिश फौज से यह पहली जंग जीत ली। आपके साथ जापानी फ़ौज भी थी।

इस पूरी लड़ाई के दौरान जापानी फ़ौज की मदद से 14 अप्रैल सन् 1944 को मोइरांगए मविपुर पर नेशनल फ्लैग लगाने वाले पहले भारतीय अफ़सर का रिकार्ड कर्नल मलिक के नाम ही है।

इसी दौरान बीमारी की वज़ह से आप रंगून चले गये लेकिन जल्द ही फरवरी सन् 1945 को वहां से मानडले की जंग में जाना पड़ाए जहां आपकी लीडरशिप में ब्रिटिश फ़ौज के खि़लाफ ज़बरदस्त जंग हुई। इसमें कर्नल मलिक घायल भी हुए लेकिन मैदान में डटे रहे।

जंग खत्म होने के बाद दिल्ली के लालकिले में ब्रिटिश हुकूमत में आपका ट्रायल हुआ। कर्नल मलिक आज़ाद हिन्द फौज की वेलफेयर कमेटी के मेम्बर बनाये गये थे।

Exit mobile version