सियाराम पांडेय ‘शांत’
भूतभावन भगवान विश्वेश्वर शिव की नगरी काशी (Kashi) विश्व की सांस्कृतिक राजधानी है। संदेशों की खेती के लिए इससे बेहतर और उर्वरा भूमि धरती पर अन्यत्र नहीं है। काशी (Kashi) वैसे तो कई संगमों के लिए जानी जाती है। वरुणा और असि के संगम की वजह से यह वाराणसी कही जाती है। पुराणों में इस बात का वर्णन मिलता है कि वाराणसी के पंचगंगाघाट में गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण व धूतपाया नदियों का गुप्त संगम होता है। आदिकेशव घाट पर वरुणा और गंगा का अपना संगम है। उस काशी में उत्तर और दक्षिण का संगम शुरू हो चुका है। यह संगम केवल विचारों का नहीं है। साहित्य और संस्कृति का भी है। ज्ञान और विज्ञान का भी है। आस्था और भक्ति का भी है। इसमें साहित्य, प्राचीन ग्रंथ, दर्शन, आध्यात्मिकता, संगीत, नृत्य, नाटक, योग, आयुर्वेद, हथकरघा, हस्तशिल्प के साथ-साथ आधुनिक नवाचार, व्यापारिक आदान-प्रदान पर भी विचार संगम होना है। उत्तर और दक्षिण के स्वनामधन्य विद्वान, शोधार्थी इस पर मंथन करेंगे और इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि काशी (Kashi) तमिलनाडु के लिए और तमिलनाडु काशी के लिए क्यों मुफीद है ?
एक माह तक चलने वाले काशी तमिल संगमम (Kashi Tamil Sangamam) का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उद्घाटन कर चुके हैं। इस संगमम में काशी और तमिलनाडु का जुड़ाव तो है ही, भाषायी सामंजस्य बिठाने के भी प्रयास हो रहे हैं। महापुरुषों और नदियों के बहाने उत्तर और दक्षिण के संबंधों को जानने-समझने का प्रयास हो रहा है। इस बौद्धिक विमर्श में उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु की 2500 गणमान्य हस्तियां भाग ले रही हैं। इस विमर्श का नवनीत अमिय कैसा होगा,उसका राजनीतिक,सामाजिक, सांस्कृतिक लाभ कौन-कितनी मात्रा में उठा पाएगा, यह तो कार्यक्रम के समापन के बाद ही पता चलेगा लेकिन काशी में जिस तरह का उत्साह है, उससे इतना तो पता चलता है कि ज्ञान-विज्ञान की नगरी काशी ने इन दिनों दो राज्यों ही नहीं, दो दिशाओं, दो संस्कृतियों, दो सभ्यताओं को एक करने का प्रयास आरंभ कर दिया है।
यूं तो भगवान शिव की अविनाशी काशी (Kashi) अपने स्थापना के दिन से संसार को दिशा देने का काम करती रही है और आगे भी करती रहेगी लेकिन मौजूदा प्रयास बेहद अहम है। काशी के चौरासी घाट संसार को जहां चौरासी लाख योनियों में आवागमन के चक्र से मुक्ति का संदेश इस जीव-जगत को देते हैं, वहीं यह भी सच है कि देश के सभी राज्यों के लोग काशी में पूरे मनोयोग के साथ रहते हैं। अगर यह कहें कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक काशी लघु भारत है तो कदाचित गलत नहीं होगा। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महामना की बगिया में स्थित एम्फीथियेटर ग्राउंड में एक माह तक चलने वाले काशी तमिल समागम में हर सप्ताह तमिलनाडु से तीन ट्रेनें आएंगी। एक ट्रेन में कुल 210 तमिल यात्री मौजूद होंगे। समागम के दौरान 12 समूहों में तमिलनाडु के 38 जिलों के 2500 लोगों का काशी आगमन प्रस्तावित है। तमिलनाडु का यह प्रतिनिधिमंडल न केवल वाराणसी का विकास देखेगा बल्कि प्रयागराज और अयोध्या का भी भ्रमण करेगा।
इस कार्यक्रम को भारतीय सनातन संस्कृति के दो अहम प्राचीन पौराणिक केंद्रों के मिलन के रूप में देखा जा रहा है। तमिलनाडु के 12 प्रमुख मठ मंदिर के आदिनम् (महंत) को काशी में सम्मान देना भी उत्तर और दक्षिण की एकता का अपने आप में बड़ा प्रयास है। यह सम्मेलन दरअसल ऐसे समय में हो रहा है जब देश की नई शिक्षा नीति के तहत अपनी मातृभाषा में शिक्षा देने की बात हो रही है। तमिलनाडु की राजनीति में हिंदी का विरोध चरम पर है। ऐसे दौर में काशी-तमिल संगमम का आगाज मायने रखता है। आदि शंकराचार्य ने देश के चार कोनों पर चार पीठ की स्थापना कर और वहां अलग-अलग क्षेत्र के शिष्यों की तैनाती कर देश की सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक एकता-अखंडता को मजबूती देने का काम किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने इस समागम के जरिए उत्तर और दक्षिण को जोड़ने का जो प्रयास किया है, उसकी जितनी भी सराहना की जाए, कम है।
बकौल प्रधानमंत्री यह समागम गंगा-यमुना के संगम की भांति पवित्र और सामर्थ्यवान है। काशी और तमिलनाडु भारतीय संस्कृति और सभ्यता के केंद्र हैं। देश की सप्तपुरियों में काशी और कांची का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। काशी विश्व का सबसे प्राचीन किंतु जीवंत शहर है। यह निर्विवाद सत्य है कि भारत में संगमों का बड़ा माहात्म्य है। नदियों और धाराओं के ही संगम नहीं होते। विचारधाराओं के भी अपने संगम होते हैं। ज्ञान-विज्ञान और सामाजिक समाजों संस्कृतियों के भी संगम होते हैं। मौजूदा काशी-तमिल संगमम को इसी आलोक में देखा-समझा जा रहा है। यह समागम वस्तुत: भारत की विविधताओं और विशेषताओं का संगम है। इसलिए भी इस समागम का महत्व सहज ही बढ़ जाता है।
इस समागम में अगर काशी विश्वनाथ के साथ ही रामेश्वर धाम की भी चर्चा हो रही है। भगवान शिव के साथ राम की चर्चा हो रही है तो उसके अपने मायने हैं। इस देश को धर्म और संवाद के जरिए ही जोड़ा जा सकता है। जब तक धर्मस्थल जन जागरण के केंद्र बने रहे, तब तक यह देश सोने की चिड़िया रहा। इसीलिए कहा गया है कि धर्मो रक्षति रक्षित:। इस समागम में वाराणसी की काशी और तमिलनाडु की दक्षिण काशी का भी जिक्र हुआ है । यूपी की बनारसी साड़ी अगर प्रधानमंत्री के संबोधन का विषय बनी है तो तमिलनाडु के कांजीवरम सिल्क का भी जिक्र भी उन्होंने उसी शिद्दत के साथ किया है। तमिल विवाह परंपरा में काशी यात्रा का उल्लेख करना भी वे नहीं भूलते। काशी के निर्माण और विकास में तमिलनाडु के गौरवपूर्ण योगदान की भी चर्चा करते हैं। यह भी बताते हैं कि तमिलनाडु में जन्मे डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति थे और उनके नाम से पीठ का गठन कर काशी हिंदू विश्वविद्यालय अपने को धन्य महसूस कर रहा है।
काशी के हरिचन्द्र घाट पर स्थित तमिल मंदिर काशी कामकोटिश्वर पंचायतन मंदिर, केदार घाट पर स्थित करीब दो सौ वर्ष पुराने कुमार स्वामी मठ और मार्कंंडेय आश्रम के बहाने उन्होंने काशी और तमिलनाडु की एकता व मैत्री संबंधों पर भी प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो यहां तक कहा कि आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे दक्षिण के विद्वानों के दर्शन को समझे बगैर भारत को जानना बेहद कठिन है। काशी-तमिल संगमम में उन्होंने तमिल विरासत और तमिल भाषा के संरक्षण की अपील कर तमिल समाज का दिल जीतने की भी कोशिश की है। राष्ट्र के मुखिया से उम्मीद भी यही की जानी चाहिए कि वह सबको साथ लेकर चले। सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास का नारा देने वाले मोदी इस दिशा में तेजी के साथ आगे बढ़ रहे हैं, काशी-तमिल समागम इसकी बानगी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो यहां तक कह दिया कि काशी में दक्षिण का उत्तर से अद्भुत संगम हो रहा है। सहस्त्राब्दियों पुराना संबंध फिर से नव जीवन प्राप्त कर रहा है। उन्होंने इसे आजादी के अमृत काल में प्रधानमंत्री के एक भारत-श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना और उसकी जीवंतता से भी जोड़ा।
तमिलनाडु की तेनकाशी में भगवान विश्वनाथ के प्राचीन मंदिर का तो उल्लेख किया ही, पांड्य वंश के सम्राट के काशी प्रेम का भी इजहार किया। यह भी कहा कि तमिलनाडु में काशी ही नहीं, शिवकाशी भी है। वृद्ध काशी भी है। काशी के धार्मिक महत्व के कारण देश के सभी भागों के लोग सदियों से यहां आते रहे हैं। दक्षिण के पांड्य, चोल, पल्लव आदि राजाओं के काशी प्रेम का इजहार तो उन्होंने किया ही, यह भी कहने से वे नहीं चूके कि संस्कृत और तमिल की उत्पत्ति भगवान शिव के मुंह से हुई है। काशी और तमिलनाडु में भारतीय संस्कृति के सभी तत्व समान रूप से संरक्षित हैं। समस्त भारतीय भाषाएं सभी को अपने में समाहित करती हैं। ये समावेश सांस्कृतिक प्रेरणा का स्रोत रहा है, जो समाज में सद्भाव और समरसता बनाये रखता है।
काशी तमिल संगमम में वाराणसी के 29 और तमिलनाडु के 61 प्राचीन मंदिरों के चित्रों की प्रदर्शनी भी दोनों राज्यों अंतसंर्बंधों की पटकथा अभिव्यक्त करने में समर्थ है। इस प्रदर्शनी में तीसरी से बारहवीं सदी तक की मूर्तियां हैं। श्रीदेवी, हेमामालिनी, रेखा और एआर रहमान जैसे दक्षिण भारत के कलाकारों के चित्र भी इस प्रदर्शनी की विषयवस्तु बने। डार्क रूम में एलईडी स्क्रीन लगाकर इन कलाकारों की फिल्में भी दिखाई जा रही हैं। कुछ फिल्मों को तमिल से हिंदी भाषा में डब भी किया गया है। तमिलनाडु की संस्कृति, कला और विरासत को प्रदर्शित करने वाली कई फिल्मों का भी प्रदर्शन हो रहा है।
केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने भी महाकवि सुब्रमण्यम भारती के 16 वर्षीय भांजे केवी कृष्णन और उनके परिवार से हनुमानघाट स्थित उनके आवास पर मुलाकात की। तमिल शब्दों को सीखने के लिए भारत सरकार की ओर से एक ऐप भी लांच किया गया है, जो गूगल प्ले पर उपलब्ध है। इस ऐप द्वारा हिंदी में बोला गया शब्द तमिल भाषा में बताएगा जिससे किसी भी व्यक्ति को तमिल भाषा समझना बहुत सरल होगा। इसमें संदेह नहीं कि उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों की प्रगाढ़ता की दिशा में इन दिनों बड़े प्रयास हो रहे हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टियों में से एक के रूप में एक तमिल पुजारी वेंकट रमण घनपति की नियुक्ति को इसी आलोक में देखा जा रहा है। वेंकट का जन्म अगस्त 1973 में चेन्नई में हुआ था। उन्होंने वाराणसी में बीकॉम तक की शिक्षा पूरी की। उनके पिता वी. कृष्णमूर्ति घनपति काशी के एक प्रसिद्ध घनपदीगल और वैदिक विद्वान थे। उन्हें संस्कृत और भारतीय शास्त्रों में प्रवीणता के लिए 2015 में प्रतिष्ठित राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। घनपति की पांच पीढ़ियां काशी में किए जाने वाले वैदिक अनुष्ठानों से जुड़ी हुई हैं। वे वाराणसी में आने वाले दक्षिण भारतीय समाज के सदस्यों का पवित्र अनुष्ठान कराने की महान सेवा कर रहे हैं।
कुल मिलाकर एक बेहद सहज और सार्थक पहल केंद्र और राज्य सरकार के स्तर पर शुरू हुई है, जिसके दूरगामी और सुखद परिणाम होंगे। उत्तर और दक्षिण का यह मिलन देश को नई मजबूती तो देगा ही, राजनीतिक,सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक धरातल पर भी नए आयाम प्रस्तुत करेगा जो भारत की प्रगति में मील का पत्थर साबित होंगे। रही बात वाराणसी और तमिलनाडु के संबंधों की तो वह बेहद पुरातन है। अगस्त्य ऋषि का जन्म इसी काशी में हुआ था। भगवान विश्वनाथ की आज्ञा से वे दक्षिण भारत गए थे और वहां उन्होंने तमिल भाषा और संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया था। देखा जाए तो काशी का तमिलनाडु और तमिल भाषा से श्रद्धा और संस्कृति का नाता है। तमिलनाडु के लोग काशी आने, वास करने और यहां के देवालयों में दर्शन-पूजन को पूर्व जन्म का पुण्य फल मानते हैं।
आज तमिल विश्व की दूसरी पुरातन भाषा है। काशी व तमिल का अटूट संबंध 2300 वर्ष से भी पूर्व का मिलता है। इसे एक तमिल कवि ने काशी को अपने रचनाओं के माध्यम से बताया है। तमिलों के 63 शैव संतों में एक श्रीअय्यर स्वामी कैलाश यात्रा पर काशी होते गए। उन्होंने काशी, विश्वनाथ व गंगा के बारे में लिखा भी। तमिल धरोहरों में से एक मंदिर के रूप में गिना जाता है। तमिलनाडु में काशी के महत्व के सात स्थान हैं जो काशी-तमिल संस्कृति को दर्शाते हैं। इनमें प्रमुख तिरूवैआरू, गंगैकोन्डसोलहपुरम् व अन्य हैं। काशी की तरह ही कांचीपुरम् भी विद्या का केंद्र है जो अपने-अपने कला-संस्कृति के संरक्षण में निरंतर कार्य करते आ रहे हैं।
तमिल पंचांग की मानें तो तमिलनाडु में 17 नवंबर से 16 दिसंबर तक कार्तिक मास होता है। इसमें शिवाराधना और दीपोत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है जो हमारी संस्कृति का एक अंग है। काशी के मानसरोवर से शिवालाघाट क्षेत्र तक तमिल भाषाभाषी बड़ी तादाद में घर बनाकर रहते हैं। कुमार स्वामी मठ,धर्मपुरम मठ,शुकदेव मठ, कांचिकामकोटि मठ के जरिये तमिल काशी और बाबा विश्वनाथ की सेवा कर रहे हैं। काशी की विद्वत परंपरा में काशीराज के राजगुरु महामहोपाध्याय राज राजेश्वर शास्त्री द्रविण, पद्मभूषण पंडित पट्टाभिराम शास्त्री, प्रकांड विद्वान नीलमेघाचारी , प्रसिद्ध वेदान्ती पी. सुब्रह्मण्य शास्त्री प्रमुख हैं। काशी की समाजसेवा में प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. आर शंकर , डॉ. एस श्रीनिवासन वैज्ञानिक, डॉ. एस वरदराजन (आइएएस) एवं वीएस चेल्लम अय्यर ने तमिल संस्कृति के साथ बनारस की संस्कृति का भी अनुशीलन किया और एतदर्थ समाज का मार्गदर्शन किया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय का इतिहास व महामना मदन मोहन मालवीय की जीवनी लिखने में सोमस्कन्दन के योगदान को भला कौन नकार सकता है? काशी में तमिलों का ठेठ बनारसी अंदाज सहज ही देखा जा सकता है। ऐसी काशी से तमिलनाडु की जोड़ने की कोशिश काबिलेतारीफ है। इस तरह के प्रयास वर्ष भर होते रहने चाहिए और इसमें किसी भी तरह के राजनीति के उत्स नहीं तलाशे जाने चाहिए।