नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तीन कृषि कानूनों पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। इसके साथ ही किसानों के मुद्दे को सुलझाने के लिए कोर्ट ने एक कमेटी का गठन किया है, जिसे दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी है।
इस कमेटी में भूपिंदर सिंह मान, प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी और अनिल घनवंत शामिल हैं। ये कमेटी कृषि कानूनों पर किसानों की शिकायतों और सरकार का नजरिया जानेगी और उसके आधार पर अपनी सिफारिशें देगी।
मगर इस बीच, किसानों संगठनों के साथ-साथ कांग्रेस ने कमेटी में शामिल सदस्यों को लेकर सवाल उठाए हैं। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित कमेटी के सभी सदस्य खुली बाजार व्यवस्था अथवा कानून के समर्थक रहे हैं। अशोक गुलाटी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने ही इन कानून को लाए जाने की सिफारिश की थी। देश का किसान इस फैसले से निराश हैं।
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वहीं कांग्रेस ने भी कमेटी के सदस्यों को लेकर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो चिंता जाहिर की उसका हम स्वागत करते हैं। लेकिन जो चार सदस्यीय कमेटी बनाई वह चौंकाने वाला है। ये चारों सदस्य पहले ही काले कानून के पक्ष में अपना मत दे चुके हैं। ये किसानों के साथ क्या न्याय कर पाएंगे ये सवाल है? रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि ये चारों तो मोदी जी के साथ खड़े हैं। ये क्या न्याय करेंगे। एक ने लेख लिखा। एक ने मेमेरेंडम दिया। एक ने चिट्ठी लिखी, एक पेटीशनर है।
आंदोलन में खालिस्तानी तत्वों के सवाल पर सुरजेवाला ने कहा कि हम शुरू से कह रहे हैं अगर कोई ग़ैरक़ानूनी काम कर रहा है तो कार्रवाई क्यों नहीं करते। हमारे किसान पाकिस्तानी एजेंट हैं या चीन के है, नक्सली हैं या खालिस्तानी है? एक चीज़ तय करले बीजेपी। मंत्री-नेता इन किसानों को हर रोज़ नया तमगा देते हैं. आप तय कर लीजिए क्या हैं वो?
कांग्रेस नेता जयवीर शेरगिल ने कहा कि कमेटी में से चार सदस्य हैं। तीन सदस्य पहले ही कानून वापसी के खिलाफ हैं। सुप्रीम कोर्ट का जो निर्णय है वह आधा गिलास भरा आधा गिलास खाली है। भरा इस नजरिए से कि बीजेपी के किसान विरोधी और तानाशाही रवैया पर करारा तमाचा है।
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जयवीर शेरगिल ने कहा कि आधा खाली इसलिए क्योंकि 4 सदस्यीय कमेटी में से तीन ने कानून वापसी के खिलाफ पहले से ही मन बनाया हुआ है। इस संदर्भ में वह अखबार में लेख लिख चुके हैं।
कांग्रेस नेता ने कहा कि जहां तक भूपेंद्र मान का सवाल है। वह बीकेयू के सदस्य हैं पर आपके मीडिया बंधुओं से ही यह चर्चा जोरों पर है कि उनकी संस्था पहले ही कानूनों के पक्ष में अपनी बात रखने के लिए सरकार के पास जा चुकी है। तो ऐसी कमेटी पर आखिर किसानों को कैसे भरोसा होगा?