नई दिल्ली। दवा निर्माताओं के लिए सरकार देश में उत्पादन आधारित इंसेंटिव देने की योजना को अंतिम रूप देने में लगी है। चीन से बदलते संबंधों और वहां के महंगे होते कच्चे माल के चलते इस दिशा में और तेजी लाई जा रही है। हिन्दुस्तान को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार नई योजना के तहत कई केमिकल और दवाओं के कच्चे माल के आयात पर 70 फीसदी लगाम लगा सकती है।
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यही नहीं जो दवा उत्पादन कंपनी कम इम्पोर्ट कर दवाएं बनाने का काम करेगी उसे आर्थिक राहत भी दी जाएगी। इस बारे मे सरकार एक से दो हफ्ते में नए दिशानिर्देश जारी कर सकती है। जानकारी के मुताबिक योजना के पहले चरण में चुनिंदा रसायन और दवाओं के कच्चेमाल का अधिकतम 30 फीसदी तक आयात होगा। कंपनियों को बाकी का उत्पादन देश में ही करना होगा। स्कीम के लिए आवेदन करते समय ही कंपनियों को आयात की सीमा बतानी होगी।
कंपनियों को नई योजना में फिलहाल दवाओं से जुड़े 53 तरह के कच्चेमाल के आयात की इजाजत होगी। सरकार देश में आने वाले दिनों में इस दिशा में इम्पोर्ट को पूरी तरह से खत्म कर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में काम कर रही है। मौजूदा समय में दवाओं की किल्लत न हो इसीलिए जरूरी इम्पोर्ट खुला रखकर क्षमता बढ़ाने पर काम किया जा रहा है। इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के एग्जेक्यूटिव डायरेक्टर अशोक कुमार मदान ने चीन से दवाओं का कच्चा माल आयात करना बेहद महंगा होता जा रहा है। मौजूदा समय में चीन पर बढ़ती निर्भरता से वहां मांग बढ़ी हैं साथ ही सप्लाई को चाहे हवाई रूट से या फिर दूसरे माध्यमों से देश में लाया जा रहा है तो उस पर भी खर्च बढ़ गया है। इस हिसाब से इनके दाम आम तौर पर 25-35 फीसदी बढ़ गई है। कुछ चुनिंदा दवाओं के एपीआई तो 2 से तीन गुना तक महंगे हो गए हैं।
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उद्योग की मांग
उन्होंने ये भी कहा कि सरकार की मौजूदा उत्पादन आधारित इंसेंटिव स्कीम को पूरी तरह से अमल में आने के लिए कम से 1 से लेकर 3 साल तक का समय लगेगा जब देश इस दिशा में आत्मनिर्भर होगा। ऐसे में जरूरी है कि सरकार मौजूदा दवा उत्पादकों को राहत देते हुए उनकी क्षमता विस्तार के लिए हाथ बढ़ाए ताकि फौरी तौर पर देश में दवाओं का कच्चामाल बनाने में काम शुरू हो सके और हम दूसरे देशों से इस रेस में आगे निकल जाएं।