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डीजल-पेट्रोल के दाम पर घमासान

Writer D by Writer D
29/04/2022
in उत्तर प्रदेश, राजनीति, लखनऊ
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Petrol

Petrol

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 सियाराम पांडेय  ‘शांत’

राजनीति में खलनायक और नायक बनाना आम बात है। हर दल के अपने चश्मे हैं। अपने नजरिये हैं। सबके हाथ में निंदा और  आलोचना के अस्त्र हैं। सबको लगता है कि देशहित उनसे बेहतर कोई और नहीं कर सकता। महाराज मनु से लेकर आज तक एक ही परंपरा चली आ रही है।राजा अपने  चहेतों को पुरस्कृत और उपकृत करता था और विरोधियों को दंडित करता था। मौजूदा लोकतंत्र में भी कमोवेश ऐसा ही कुछ हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  कहा है कि वे डीजल-पेट्रोल (Petrol-diesel) पर वैट घटाएं जिससे उनके राज्य की जनता को राहत मिले। Controversy over diesel-petrol priceउन्होंने कहा है कि वे किसी की आलोचना नहीं कर रहे हैं केवल उनके राज्य के भले के लिए उनसे निवेदन कर रहे हैं कि वे डीजल पेट्रोल (Petrol-diesel) पर मूल्य संवर्धित कर घटाएं। वैसे यह काम नवम्बर में ही हो जाना चाहिए था लेकिन वे तब न सही, अब बिना किसी विलंब के जनता के हित में प्रभावी निर्णय लें। प्रधानमंत्री बेहद स्पष्टवादिता के साथ अपनी बात कहते और विपक्षी दलों को वास्तविकता का आईना दिखाते रहे हैं। यह बात विपक्ष को हमेशा सालती रही है।

जिस तरह कांग्रेस प्रवक्ताओं की फौज ने उनकी अपील को जुमलेबाजी करार दिया है,उससे तो लगता नहीं कि कांग्रेस शासित राज्यों की सरकारें आम जन को राहत देने को मूड में हैं भी। इस देश ने कोरोना की लंबी मार झेली है। इस दौरान जीएसटी और अन्य कर राजस्व बहुत घट गया था, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता। ऐसे में केंद्र सरकार ने राज्यों की उधर सीमा बढ़ा कर न केवल उनकी मदद की बल्कि केन्दीय राजस्व में भारी कमी के बाद भी  जीएसटी हानि की भरपाई की। राज्यों को जीएसटी से मिलने वाला हिस्सा भी दिया । इसके बाद भी विपक्षी दल अगर उस पर जीएसटी राशि न देने के आरोप लगा रहे हैं तो इसे क्या कहा जाएगा? जब वैश्विक स्तर पर क्रूड ऑयल के दाम कम हो गए थे,तब भी कुछ राज्य राजस्व घाटे का वास्ता देकर जाना से डीजल-पेट्रोल पर भारी-भरकम वैट वसूलते रहे। और महंगाई के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराते रहे।आज भी उनके इस स्वभाव में कहीं कोई बदलाव नहीं आया है।

इसमें शक नहीं  कि डीजल-पेट्रोल (Petrol-diesel) के बढ़ते दाम हर भारतीय के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। महंगाई की मार से पहले ही उसकी कमर टूटी पड़ी है,उस पर महंगाई की और लाठियां बरसाना कितना उचित है । विपक्ष का तर्क है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  देश के विभिन्न राज्यों के साथ बैठक तो कोरोना मुद्दे पर आहूत की लेकिन राजनीतिक ढंग से उसमें डीजल-पेट्रोल पर वैट के मामले को शामिल कर लिया। कोरोना और महंगाई का चोली-दामन का रिश्ता है। उसी तरह महंगाई को घटाने-बढ़ाने में डीजल और पेट्रोल की कीमतें भी अहम भूमिका निभाती हैं।विपक्ष के कुछ नेता केंद्र सरकार को बिजली संकट और बढ़ती महंगाई के लिए तो जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन  जिन राज्यों में उनके अपने दल की सरकार हैं,वहां वे जनता को महंगाई से राहत देने के धरातल पर क्या कुछ कर रही हैं,यह किसी से छिपा नहीं है।

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राष्ट्रहित और सहकारी संघवाद की भावना से काम करने की बजाय राजनीतिक दल  एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेल रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कोविड की चुनौतियों को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की। कोरोना के हालात और उससे निपटने की तैयारियों पर चर्चा की। उन्हें आगाह किया कि कोरोना का संकट अभी टला नहीं है। इस नाते  इसे हल्के में लेने की जरूरत नहीं है।  लगे हाथ उन्होंने पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत  पर भी चर्चा की और गैर भाजपा शासित राज्यों  के मुख्यमंत्रियों से  पेट्रोलियम उत्पादों पर से मूल्य वर्धित कर  यानी वैट घटाने और आम आदमी  को राहत देने की अपील की।  यह भी कहा कि गत वर्ष  नवंबर माह में केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल व डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती की थी लेकिन महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पेट्रोल और डीजल पर वैट कम न कर वहां की जनता के साथ  अन्याय   किया है। उन्होंने रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष का  जिक्र तो किया ही, मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए आर्थिक निर्णयों में केंद्र और राज्य सरकारों का तालमेल और उनके बीच सामंजस्य बनाने पर जोर दिया। वैश्विक परिस्थितियों की वजह से आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होने का हवाला दिया। दिनों-दिन बढ़ती चुनौतियों पर चिंता जताई।  वैट के जरिए हजारों करोड़ जुटा लेना बुरा नहीं है लेकिन आम भारतीय के हितों की भी चिंता की जानी चाहिए।

प्रधानमंत्री  की मानें तो भारत सरकार के पास  जो राजस्व आता है, उसका 42 प्रतिशत तो राज्यों के ही पास चला जाता है। यह और बात है कि कांग्रेस राज्यों के पास 32 प्रतिशत ही जाने की बात कर रही है।इस भ्रम को केंद्र और राज्यों को मिल बैठकर डोर करना चाहिए। कांग्रेस का तर्क है कि जब केंद्र में उसकी सरकार थी तो डीजल-पेट्रोल की कीमतें कम थीं।उस पर वैट कम था लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके दौर में कोरोना जैसी महामारी नहीं थी। रूस और यूक्रेन जैसा युध्द नहीं हो रहा था। इन सबके बीच मोदी सरकार ने लोगों को मुफ्त खाद्यान्न वितरण,किसानों,मजदूरों की आर्थिक मदद का सिलसिला निर्बाध जारी रखा है।विपक्ष तो मोदी सरकार को किसान विरोधी ठहराने की हर संभव कवायद करता रहा लेकिन फास्फेट और पोटास पर 60939 करोड़ की सब्सिडी देकर मोदी सरकार ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि उसके लिए किसानों का हित सर्वोपरि है।प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि को बढ़ाकर 8100 करोड़ करने और शहरी भारत के 1.2 करोड़ लोगों को लाभवित करने की इस योजना में भला किसे राग-द्वेष और घृणा के दीदार हो सकते हैं लेकिन जिसकी आंखों पर ही घृणा की पट्टी बंधी हो,उनसे और अपेक्षा भी क्या की जा सकती है।

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दाम बढ़ने के अनेक कारक होते हैं। उर्वरकों के मामले में भारत दुनिया के कई देशों परनिर्भर है।ऐसा नहीं कि विपक्ष को इसका बहन नहीं है लेकिन सरकार के विरोध के लिए उसके पास इससे बड़ा मुद्दा भला और क्या हो सकता है।र्इंधन की कीमतों में वृद्धि के लिए विपक्ष अक्सर केंद्र सरकार को दोषी ठहराता है जबकि भाजपा इसके लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को दोष देती रही है। वैट में कटौती न करने के लिए वह विपक्ष शासित राज्यों पर भी ठीकरा फोड़ती रही है। यह अपनी जगह सच भी हो सकता है लेकिन देश सबका है,इसलिए सभी को इसकी समस्याओं के समाधान तलाशने होंगे। एक दूसरे की तंग खिंचाई से बात नहीं बनने वाली।

ब्रिक्स देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का संगठन की मुद्राओं की विनिमय की दर से रुपये की तुलना की जाए तो पेट्रोल व डीजल की सबसे कम कीमत के मामले में भारत इन देशों में दूसरे स्थान पर है।  रूस में कीमत सबसे कम है और वह कच्चे तेल का उत्पादन करता है।  आसियान देशों (भारत, थाइलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, वियतनाम, फिलिपींस, ब्रुनेई, कंबोडिया और लाओस) में पेट्रोल के मामले में भारत पांचवा ऐसा देश है जहां कीमतें सबसे कम है और डीजल के मामले में चौथा देश है जहां कीमतें सबसे कम है। भाजपा और उसके सहयोगी जनता दल युनाइटेड के शासन वाले बिहार और भाजपा शासित मध्य प्रदेश उन 10 राज्यों में शुमार हैं जहां पेट्रोल और डीजल की कीमतें सर्वाधिक हैं।आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र ,तेलंगाना , तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और झारखंड ऐसे राज्य है जिन्होंने केंद्र द्वारा उत्पाद कर में कटौती किए जाने के बाद वैट में कमी नहीं की।

मौजूदा समय आलोचना-प्रत्यालोचना का नहीं,अपितु अपने गिरेबाँ में झांकने का है।यह सोचने का है कि अपने स्तर पर राज्य  जनता की परेशानियां कितनी घटा सकते हैं।उनकी सुख-सुविधाओं में कितनी वृद्धि कर सकते हैं। विरोध और आत्मप्रशंसा तो कभी भी-कहीं भी हो सकती है लेकिन जनता ही अगर दुखी रही तो यह जनसेवा किस तरह की?इसलिए अब भी समय है कि राजनीतिक दल देश की जनता के लिए कुछ खास करें।नसीहते अक्सर अच्छी नहीं लगती लेकिन इस आधार पर मुखिया अपने परिजनों को समझाना तो नहीं छोड़ देता। इसलिए भी जरूरी है कि हर नसीहत में जुमलेबाजी न तलाशी जाए।पूर्वाग्रही व्यक्ति अपनी सोच-समझ के दरवाजे बंद कर लेता है और खुद को ही सर्वोपरि मान बैठता है। आज भारतीय राजनीति में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है।काश!इस पर अंकुश लग पाता।

Tags: Controversy over diesel-petrol pricelive hindi newsNational newsnews hindi todaynews in hindipetrol-desielPetrol-Diesel Price Hikepetrol-diesel vatTodays News
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