अनिल निगम
देश की राजधानी दिल्ली में कोविड महामारी का भीषण प्रकोप देखा जा रहा है। सरकार और जनता, दोनों ही स्तरों पर घोर लापरवाही का ही नतीजा है कि आज दिल्ली की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। अस्पतालों में बिस्तर कम पड़ रहे हैं। मौतें अधिक होने के कारण मृतकों का अंतिम संस्कार रात में ही किया जा रहा है। पूरे भारत में बीते शनिवार को कोविड महामारी से 501 लोगों की मौतें हुई, जिसमें महज दिल्ली में 111 लोगों की मौतें हुईं। कुछ लोग न केवल कोविड प्रोटोकाल का उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि वे अफवाहों का बाजार भी गर्म कर रहे हैं कि कोरोना जैसा कोई वायरस नहीं है। अगर कुछ है भी तो वह साधारण बीमारी है। यही कारण है कि बहुत सारे लोग कोविड प्रोटोकाल का उल्लंघन कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि दिल्ली में पिछले महज 20 दिनों में संक्रमितों और मृतकों का आंकड़ा बहुत तेजी से बढ़ा है।
दिल्ली सरकार यह कहकर अपनी लापरवाही पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है कि दिल्ली में संक्रमितों की संख्या इसलिए बढ़ रही है क्योंकि दिल्ली में पहले से ज्यादा टेस्टिंग हो रही है। अगर दिल्ली सरकार की इस बात को मान भी लिया जाए तो सवाल यह है कि यह टेस्टिंग पहले ही ज्यादा क्यों नहीं की गई? आज दिल्ली ने मास्क न लगाने पर चालान की राशि 500 रुपये से बढ़ाकर 2000 रुपये क्यों की? यही नहीं, अनेक ऐसे सवाल हैं जो सरकार और जनता की लापरवाही को ओर स्पष्ट इशारा करते हैं।
हालांकि यह भी सत्य है कि दिल्ली के अलावा पश्चिम बंगाल, राजस्थान और केरल राज्यों में भी संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। इन राज्यों में भी मास्क लगाने में लापरवाही और दो गज की दूरी का पालन करने में कहीं न कहीं लापरवाही हो रही है। अगर हम दिल्ली की बात करें तो यह बात सच है कि लापरवाही ही एक ऐसा कारण है कि हम एक बार मई-जून वाली स्थिति में पहुंच चुके हैं। लेकिन सर्वाधिक अफसोसजनक बात यह है कि शमशान घाटों में दिन-रात जलती लाशों को देखकर भी लोगों के अंदर भय नहीं पैदा हो रहा।
ध्यान देने की बात यह है कि विशेषज्ञों ने पहले ही चेताया था कि दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने से कोरोना का खतरा बढ़ सकता है। अनलॉक के विभिन्न चरणों में छूट मिलने के बाद लोगों को ऐसा आभास होने लगा कि अब कोरोना खत्म हो गया है और अब गाइडलाइन्स का भी पालन करने की आवश्यकता नहीं है। यही नहीं, दशहरा और दीवाली के दौरान बाजारों में उमड़ी भीड़ ने कोविड की स्थिति को भयावह बना दिया। चूंकि लोगों ने मास्क का ठीक तरीके से प्रयोग नहीं किया और दो गज की दूरी का पालन नहीं किया। आज बाजारों में भीड़भाड़ बढ़ चुकी है।
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सिटी बसों, ऑटो और मेट्रो में भीड़ उमड़ रही है। सार्वजनिक स्थानों और आयोजनों के दौरान लोगों को देखकर ऐसा लगता है जैसे कोरोना खत्म हो चुका है। इसलिए स्थिति बदतर होती रही और दिल्ली सरकार भी नियमों का पालन कराने में विफल रही। यह सच है कि दिल्ली सरकार ने मई और जून महीने में दिल्ली में संक्रमण रोकने में जो तत्परता दिखाई थी, वह बाद में कहीं विलुप्त-सी हो गई है। लेकिन स्थिति खराब होने के कारण दिल्ली सरकार कुछ प्रतिबंध बढ़ाकर एकबार फिर सक्रियता दिखा रही है।
वास्तविकता यह है कि दिल्ली सरकार के सरकारी अस्पतालों में कोविड का इलाज करने के लिए बिस्तर कम पड़ रहे हैं। केंद्र सरकार ने 20 जून को कोरोना का इलाज करने वाले प्राइवेट अस्पतालों के बिलों को काबू करने के लिए, प्राइवेट अस्पतालों में 60 प्रतिशत बेड के कोरोना पैकेज पर लगाने का आदेश दिया था। इसके मुताबिक दिल्ली के प्राइवेट अस्पताल कोरोना के सामान्य रोगी जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत हो, उनका एक दिन का अधिकतम पैकेज 10 हजार, गंभीर रोगी जिन्हें वेंटिलेटर की जरूरत नहीं है, उनका अधिकतम पैकेज 15 हजार और गंभीर रोगी जिन्हें वेंटिलेटर की जरूरत हो उनका अधिकतम पैकेज 18 हजार रुपए तक ही हो सकता है। यह सब तय होने के बावजूद निजी अस्पतालों पर इस आदेश के उल्लंघन करने के आरोप लगते रहे हैं।
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यह संतोष की बात है कि केंद्र सरकार कोविड 19 को फैलने से रोकने के लिए दिल्ली सरकार की मदद के लिए आगे आई है बल्कि चिकित्सकों की टीमों को भी इस काम में लगा दिया है। सरकार बिस्तरों की संख्या बढ़ाने में सहयोग कर रही है। लेकिन सरकारों के प्रयासों के साथ-साथ हम सभी को यह समझने की आवश्यकता है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन अभी आई नहीं है। अगर वैक्सीन आ भी जाती है तो भी हमें लंबे समय तक अनुशासन में रहना होगा ताकि अपनों के जीवन को बचा सकें और कोरोना वायरस नामक साइलेंट किलर को परास्त किया जा सके।