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कोरोना की भेंट चढ़ा रावण के पुतले बनाने का कारोबार, तीन पीढ़ियों से पुतले बनाने वाले रिक्शा चलाने को मजबूर

रावण के पुतले

रावण के पुतले

रामपुर। कोविड-19 महामारी की चपेट में जहाँ आम जनता रही वहीं देश में मनाये जाने वाले त्योहार भी सूने रहे। देश में रहने वाले विभिन्न धर्मों के लोग अपने अपने धर्मों के त्योहारों को भी अपने धर्म के चले आ रहे रीति रिवाज और परंपरा से मनाते हैं।

इन सभी त्योहारों से अलग अलग धर्मों के करोड़ो लोगों के किसी न किसी तरीक़े से कारोबार भी जुड़े हैं। वहीं इस माह में पड़ने वाले दशहरे के त्योहार जिसमें रामलीला मंचन के बाद रावण के पुतले का दहन किया जाता है। इस रावण का पुतला बनाने में रामपुर का एक मुस्लिम परिवार अपनी पिछली तीन पीढ़ियों से इस काम में लगा है लेकिन इस बार रावण के पुतले बनाने का काम भी कोविड-19 की भेंट चढ़ गया।

जिसमें अपनी पिछली तीन पीढ़ियों से रावण बनाने के धंधे से जुड़े मंज़ूर खान उर्फ राजू भाई रावण वाले के नाम से जाते हैं वो और उनके भाई 60 से 70 रावण के पुतले हर साल पड़ने वाले दशहरे के लिए तैयार करते थे लेकिन इस बार बमुश्किल सिर्फ तीन पुतले बनाने तक ही सीमित रह सके।

जिसको लेकर मंज़ूर खान उर्फ राजू भाई का कहना है कि यह उनका दादा इलाही काम है और यह तीसरी पीढ़ी चल रही है। इस बार लॉकडाउन लगने की वजह से बहुत ज्यादा उलझन में है 35 40 पुतले हर साल बनाते थे लेकिन इस बार पूरी तरीके से बंद है और रिक्शा चला कर गुजारा कर रहे हैं कहाँ 35 से 40 पुतले बनाते थे। इस बार कुल 3 पुतले बनाए हैं वह भी लोगों ने 2 दिन पहले ऑर्डर दिया बाकी लोगों से कह दिया कि 2 दिन में पुतला तैयार नहीं हो पाएगा क्योंकि पहले कहा गया था कि इस बार कुछ नहीं होगा लेकिन अचानक रामलीला की परमिशन मिलने से पुतलों की डिमांड होने लगी लेकिन हमारे पास पुतला न होने की वजह से मना कर दिया 2 दिन में नहीं बना पाएंगे।

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हर साल जुलाई के महीने से काम शुरू कर देते हैं और 35 से ₹40 बनाते थे और इतने ही हमारे भाई बनाते थे लेकिन इस बार उन्होंने भी नहीं बनाये है। कहा कि हमारे बनाए हुए पुतले मुरादाबाद,कांठ,सिवारा,मूंढापांडे अगवानपुर वगैरह दूर दूर तक जाते थे जबकि भाई के पुतले उत्तराखंड में जाते थे 4 महीने पहले बाप बेटे और पूरा घर मिलकर पुतले बनाने शुरू कर देते थे। लेकिन इस बार काम न होने की वजह से पुतले नहीं बनाए जबकि 2 दिन पहले से पुतले मांगने लगे और कहा की परमिशन मिल गई है लेकिन पहले यही कहा था कि बंद है जबकि आसपास के लोगों ने पुतलों की मांग की और कहा कि परमिशन मिल गई है पुतले चाहिए तो मजबूरन 10 से 15 फिट का पुतला पूरे परिवार ने मिलकर तैयार किया है जबकि इससे पहले 40 फुट तक का दिया जाता था।

लेकिन हर साल ज्यादा से ज्यादा 60 फीट तक का पुतला बनाया जाता था।सीजन में ढाई से 3 लाख कमा लिया करते थे लेकिन इस बार कुछ नहीं है। जबकि सीजन का काम होने के बाद बहुत कुछ करते थे बेटियों की भी शादियां तय थी दशहरे के बाद लेकिन काम न होने की वजह से वह भी रुक गई। जबकि बेटा पत्नी और बेटियों सहित पूरा परिवार इस काम में लगा था। लेकिन अब मजबूरी में रिक्शा चला रहे हैं वह भी लोन से ली है।

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जिसमें लॉकडाउन में हुआ कर्ज उतारा गया इतनी मजबूरी हो गई कि भीख मांगने तक की नौबत आ गई जबकि इसके अलावा शादी-ब्याह पर भी काम चल जाता था आतिशबाजी वगैरा का लेकिन इस बार वह भी बंद पड़ा रहा। इस काम में बहुत उलझन है रावण का पुतला बनाने के दौरान पुलिस भी पूछताछ करती है सभी माल भी चेक करती है बमुश्किल हर साल दशहरे का काम कर पुतले बनाते थे हिंदू धर्म का काम बना कर देते थे इससे पूरे साल गुजारा चलता था जिससे बहुत सारे काम होते हैं। इस बार काम बंद होने की वजह से बहुत परेशानी है।

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