सियाराम पांडे ‘शांत’
कोरोना महामारी का संकट अभी टला नहीं है। दुनिया के 144 देश कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं। यह सच है कि भारत में इस महामारी से निपटने के लिए चार वैक्सीन बन गई है। वह अपने देश के लोगों की जान तो बचा ही रहा है, दुनिया के अन्य देशों को भी कोरोना रोधी टीके भेज रहा है। पड़ोसी प्रथम और वसुधैव कुटुंबकम की उसकी भावना की क्वाॅड के वर्चुअल सम्मेलन में भी सराहना हुई है। टीकाकरण के मामले में भी भारत दुनिया के देशों से आगे हैं।
भारत में 2 करोड़ 82 लाख लोगों को वैक्सीन लग भी चुकी हैं लेकिन एक अरब 38 करोड़ की आबादी वाले भारत में टीकाकरण की यह संख्या ऊंट के मुंह में जीरे जैसी ही है। सरकार अनेक बार कह चुकी है कि कोरोना को लेकर लोग लापरवाही न बरतें। जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं लेकिन इसके बाद भी लोग हद दर्जे की लापरवाहियां कर रहे हैं। स्कूलों और हाॅस्पिटलों में तो कोरोना को लेकर सावधानियां बरती जा रही हैं लेकिन सच यह है कि व्यावहारिक धरातल पर कोरोना संक्रमण को लेकर लोग बहुत गंभीर नहीं है।
देश में विगत 24 घंटों में आंध्र प्रदेश,असम,चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दादर और नागर हवेली तथा दमन और दीव, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, लक्ष्यद्वीप, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पुड्डुचेरी, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमण के 24,882 नये मामले सामने आए हैं। इसके साथ ही संक्रमितों की संख्या बढ़कर एक करोड़ 13 लाख 33 हजार 728 हो गई है।
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गनीमत यह है कि इन 24 घंटों में 19957 मरीज स्वस्थ भी हुए हैं। मतलब अब तक कोरोना संक्रमण से ठीक होने वालों की संख्या 10973260 हो गई है। 24 घंटों में 140 लोगों की मौत होने से कोरोना से मरने वालों की संख्या 158446 हो गई है। गनीमत है कि संक्रमित होने वालों से कहीं अधिक कोरोना को मात देने वालों की संख्या है लेकिन जिस तरी कोरोना के नए स्ट्रेन के सक्रिय होने और उसकी मारक क्षमता पहले से अधिक प्रबल होने की बात की जा रही है, वह बेहद परेशान करने वाली बात है। विगत 24 घंटे में कर्नाटक में 313 बढ़कर, गुजरात में 218,ं हरियाणा में 128, तमिलनाडु में 4483 हो गई है । पश्चिम बंगाल में 3133, छत्तीसगढ़ में 3577,मध्य प्रदेश में 241 , उत्तर प्रदेश में 1819, तेलंगाना में 1918 ,राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 2093, आंध्र प्रदेश में 1227 ,
बिहार में 324 नए सक्रिय मामले सामने आए हैं। कोरोना महामारी से अब तक राजस्थान में 2789, जम्मू-कश्मीर में 1971, ओडिशा में 1917, उत्तराखंड में 1700, असम में 1097, झारखंड में 1093, हिमाचल प्रदेश में 1003, गोवा में 804, पुड्डुचेरी में 670, त्रिपुरा में 391 लोगों की मौत हुई है जबकि मणिपुर में 373, चंडीगढ़ में 357, मेघालय में 148, सिक्किम में 135, लद्दाख में 130, नागालैंड में 91, अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 62, अरुणाचल प्रदेश में 56, मिजोरम में 10, दादर-नागर हवेली एवं दमन-दीव में दो तथा लक्षद्वीप में एक व्यक्ति की मौत हुई है। देश के कुछ राज्यों में जिस तरह कोरोना संक्रमण के नए मामले बढ़ रहे हैं। वह अत्यंत विस्मयकारी स्थिति है। एक साल से अधिक हो गए, देशवासियों को कोरोना से लड़ते हुए। लाॅकडाउन जैसी व्यवस्था से इस देश को भारी परेशानी भी झेलनी पड़ी है लेकिन जिंदगी है तो सब कुछ है, यह मानकर इस देश में सारे कष्ट हंसते हुए झेल लिए लेकिन कोरोना के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए जिस तरह कुछ राज्य में लाॅकडाउन और नाइट कफ्र्यू लगाने जैसे प्रयोग हो रहे हैं, उससे पूरा देश अंदर तक हिला हुआ है। लोग डरने लगे हैं कि कहीं उनके राज्य में एक बार फिर लाॅकडाउन या नाइट कफ्र्यू न लग जाए। अगर पूरे देश में दोबारा ऐसा करना होगा तो भारतीय राजस्व व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी और आर्थिक रूप से देश का उबर पाना मुश्किल हो जाएगा। कोरोना से लड़ना है तो कड़े और बड़े फैसले भी करने होंगे।
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गौरतलब है कि मार्च 2020 में भारत में कोरोना वायरस के सबसे पहले छह पॉजिटिव केस मिले थे। इनमें तीन केरल के थे, जिन्हें उपचार के बाद घर भेज दिया गया था। तीन मरीज दिल्ली, जयपुर और तेलंगाना में मिले थे। भारत में कोरोना वायरस का सबसे पहला मामला 30 जनवरी को केरल में मिला था। भारत सरकार ने इस बात की पुष्टि की कि चीन के वुहान विश्वविद्यालय से आए एक छात्र में कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए हैं। इसके बाद केरल में दो और मामले सामने आए थे। अगर उसी समय सावधानी बरती गई होती तो इस देश में कोरोना महामारी को पैर फैलाने का मौका ही नहीं मिलता। इस दौरान चीन और अन्य देशों से विमान से आए यात्रियों ने भी कोरोना फैलानेमें बड़ी भूमिका अदा की। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उने दोस्तों के स्वागत को भी कोरोना संक्रमण के लिए जिम्मेदार माना गया। विपक्ष ने इसके लिए मोदी सरकार को जी भर कर कोसा भी। लाॅक डाउन लगने के बाद पंजाब, राज्स्थान , महाराष्ट्र और गुजरात के कंपनी मालिकों ने जिस तरह की संवेदनहीनता बरती और रातों रात अपने औद्योगिक संस्थान बंद किए, उससे मजदूरों में अनिश्चितता का भाव जगा। वे पलायन को मजबूर हुए। विपक्ष ने भी इस पलायन को रोकने में मदद देने की बजाय उसे राजनीति का हथियार बनाया। किसान आंदोलन में तो कोरोना के खतरे को पूरी तरह नजरअंदाज ही कर दिया गया। उस दौरान यह खबर भी आई कि कई किसान नेता कोरोना संक्रमित हैं लेकिन आंदोलन में शामिल किसी व्यक्ति ने कोरोना का टीका नहीं लगवाया। भीड़ न हो, इस निमित्त संसद और विधानसभाओं में भी दूर-दूर बैठने की व्यवस्था की गई लेकिन किसान पंचायतों को संबोधित करने वाले राजनीतिक दलों ने दो गज की दूरी और माॅस्क जरूरी के सिद्धांत और अपील पर कितना अमल किया, यह भी किसी से छिपा नहीं है। चुनावनी जनसभाओं में उमड़ी भीड़ में कितने लोगों ने माॅस्क लगाए। दो गज की दूरी बनाई, कहा नहीं जा सकता। इतने बड़े देश में सबको एक साथ टीका नहीं लगाया जा सकता लेकिन एक संक्रमित व्यक्ति अनेक लोगों को संक्रमित तो कर ही सकता है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वही देश है जहां कोरोना संक्रमित की लाश तक उसके परिजनों को नहीं मिली। शायद इसलिए कि परिजन भी संक्रमण की चपेट में न आ जाएं। उसी देश में भीड़ का खुला चेहरा विस्मित तो करता ही है।
टीकाकरण पर राजनीति करना, उस पर सवाल उठाना और बात है लेकिन देशवासियों को संक्रमण से बचाना और बात है। अच्छा होता कि राजनीतिक दल अपनी राजनीति से ज्यादा इस देश के लोगों के स्वास्थ्य हितों की चिंता करते। यह समाज और राष्ट्र की सबसे बड़ी सेवा होती। किसान नेता पहले ही कह चुके हैं कि कोई भी किसान टीका नहीं लगवाएगा और अब तो वे चुनाव प्रचार करने बंगाल भी पहुंचने लगे हैं। जिन 5 राज्यों में चुनाव हो रहा है, वहां नेताओं को यह देखना होगा कि भीड़ कहीं कोरोना की संवाहक न बन जाए । किसान पंचायतों के जरिए अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने वालों को भी इस ओर सोचना होगा। देश रहेगा, तभी राजनीति होगी। अब भी समय है जब इस संक्रामक बीमारी से बचने के लिए लोग संभल कर काम करें। मौसम में जिस तरह उतार-चढ़ाव आ रहा है, उससे सर्दी-जुकाम से संक्रमित होने वालों की संख्या अचानक बढ़ गई है। ऐसे में देखना यह भी होगा कि निजी चिकित्सालय खांसी, सर्दी-जुकाम के मरीजों को भी कोरोना संक्रमित बताकर संगठित लूट को अंजाम न दे सकें। इसलिए भी यह समय बेहद संवेदनशील है। राजनीति भी जरूरी है लेकिन जनस्वास्थ्य उससे भी अधिक जरूरी है।