Site icon 24 GhanteOnline | News in Hindi | Latest हिंदी न्यूज़

ऋषि और कृषि की दो पद्धतियों पर हिन्दुस्तान की संस्कृति आधारित : राजेश टिकैत

rajesh tikait

rajesh tikait

दिल्ली की सीमा पर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को एक महीना हो गया है। सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत अब तक बेनतीजा रही है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार अडियल रवैया

छोड़े, क्योंकि सशर्त बातचीत का कोई मतलब नहीं है। उनका कहना है कि अगर कानून वापस नहीं लिए जाते हैं तो आंदोलनकारी किसान भी घर वापस नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा कि सरकार हमसे बातचीत करना चाहती है और हमसे तारीख तथा मुद्दों के बारे में पूछ रही है। हमने 29 दिसंबर को बातचीत का प्रस्ताव दिया है। अब सरकार को तय करना है कि वह हमें कब बातचीत के लिए बुलाती है।

हमारा कहना है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए तौर-तरीके और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए गारंटी का मुद्दा सरकार के साथ बातचीत के एजेंडे में शामिल होना चाहिए। हमने साफ कहा है कि सरकार अड़ियल रवैया छोड़े, क्योंकि सशर्त बातचीत का कोई मतलब नहीं है। कानून वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं।

पुलिस की वर्दी में बदमाशों ने व्यापारी से लूटे साढ़े 18 लाख, जांच में जुटी पुलिस

उन्होंने कहा कि यह आंदोलन में फूट डालने वालों की चाल है। मेरे बयान का आशय मंदिर में पुजारी व धार्मिक ट्रस्ट की तरफ से गुरुद्वारा लंगर की तर्ज पर आंदोलन में अपने बैनर के साथ लंगर सेवा प्रदान करने से था। मेरे बयान को अन्यथा न लिया जाए और उसे गलत तरीके से पेश नहीं किया जाए। आंदोलन सभी का है। हमारा बयान मंदिरों या ब्राह्मणों के खिलाफ नहीं है। ऋषि और कृषि की दो पद्धतियों पर हिन्दुस्तान की संस्कृति आधारित है। हम इन दोनों पद्धतियों को मानते हैं। इस सबके बाद भी अगर किसी को मेरी किसी बात से ठेस पहुंची हो तो मैं सौ दफा माफी मांगने को तैयार हूं।

सरकार एक तरफ वार्ता का न्योता भेजती है, दूसरी तरफ किसानों की मांग को खारिज करती है। यह सरकार के दोहरे चरित्र को दर्शाता है। क्या सरकार द्वारा घोषित फसलों का मूल्य मांगना गलत है। सरकार से हमारी कोई लड़ाई नहीं है। वार्ता के सारे रास्ते खुले हैं। ऐसे में बीच का रास्ता यह है कि पहले तीनों कृषि कानूनों को खत्म कर एमएसपी पर कानून बनाया जाए। इन कानूनों के बनने से पहले ही देश में गोदाम बनने लगे थे। पहले कह रहे थे कि वे गौशालाएं बना रहे हैं, लेकिन बने गोदाम। गौशाला तो एक भी नहीं बन पाई। दूसरी ओर, खेती की लागत बढ़ गई है और किसान अपनी पैदावार आधे दामों पर बेचने को मजबूर है। लेकिन, अब कोई किसानों की आय दोगुनी होने की बात कर रहा है। ये किसान उस मास्टर से भी मिलना चाहते हैं।

Exit mobile version