मुंबई। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कमी आने के बावजूद सितंबर तिमाही में कंपनियों के मुनाफा में 25 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि के पीछे की वजह वेतन में कमी आना है। इससे भारत में असमानता बढ़ेगी। जाने माने अर्थशास्त्री नौरिएल रोबिनी ने बृहस्पतिवार को यह कहा।
न्यूयार्क के स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रोबिनी ने कहा कि इस तरह की बढ़ती असमानता राजनीतिक और सामाजिक रूप से खतरनाक है। क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था में केवल कुछ ही लोगों को फायदा होगा। रोबिनी ने कहा कि सितंबर तिमाही में सूचीबद्ध कंपनियों की आय में 25 प्रतिशत वृद्धि हुई है। इसका अर्थ है कि वेतन और आय यदि पूरी तरह धराशायी नहीं हुए हैं तो इनमें कमी आई है। इसे दबाया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि मुद्रास्फीति ने रिजर्व बैंक के हाथ बांध दिए हैं। उन्होंने प्रभावितों की मदद के लिए राजकोषीय नीति के मोर्चे पर मजबूत कदम उठाए जाने की वकालत की।
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उल्लेखनीय है कि मुद्रास्फीति यानी महंगाई को दो फीसदी घट-बढ़ के साथ चार फीसदी पर नियंत्रित करने का लक्ष्य दिया गया है। मौजूदा समय में महंगाई दर छह फीसदी से अधिक है। ऐसी स्थिति में रिजर्व बैंक पिछली तीन मौद्रिक समीक्षा से नीतिगत दरों को स्थिर रखने पर मजबूर है। महंगाई नरम होने पर रिजर्व बैंक दरें घटा सकता था जिससे कर्ज सस्ता होते और मांग बढ़ती।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में प्रोफेसर ने कहा, बेरोजगार और आंशिक तौर पर बेरोजगार लोगों की संख्या बढ़ रही है, दूसरी तरफ जीडीपी (वस्तुओं और सेवाओं का सकल उत्पाद) जब कम हो रहा है तो कंपनियों का मुनाफा बढ़ रहा है। इस तरह यह आय में असमानता बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि इस तरह की असमानता ज्यादा नहीं चल सकती, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से असमानता खतरनाक होती है।