कीर्ति चंद्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय
पुण्यतिथि 11 फरवरी,2023 पर विशेष :- जैसा कि नाना (श्रद्धेय नानाजी देशमुख ) ने परिवार के बुजुर्गों को बताया जब मैं, इस परिवार में ब्याह कर आई तो बड़े—बुजुर्गों के परिचय के साथ बप्पा दादाजी (Pandit Deendayal Upadhyay) के बारे में मुझे बताया गया। मेरे पिता सुधाकर शर्मा संघ के दायित्वधारी स्वयंसेवक रहे। मायके में भी संघ के अखिल भारतीय, क्षेत्र एवं प्रांत के अधिकारियों का निरंतर आना—जाना और भोजन रहता था।ससुरालमें भी यही वातावरण मुझे मिला।
उत्तर प्रदेश में सेशन -जज के पद से जब मेरे पति चंद्रशेखर उपाध्याय उत्तराखंड राज्य के एडीशनल एडवोकेट जनरल नियुक्त हुए तब वर्ष 2004 में नानाजी देशमुख का भोजन एवम् प्रवास हमारे परिवार में तय हुआ। तब नाना ने फिर आगरा में कचौरा-बाजार वाले घर के प्रसंग को परिवार के समक्ष रखा। नाना दु:खी थे, बोले—’77’ में अटल और मैं उस घर में गए थे ,प्रेस के सामने घोषणा की थी कि इस घर को राष्ट्रीय स्मारक बनाएंगे। लेकिन अभी तक (2004 तक) कुछ नहीं हो पाया।
आखिर क्या है उस घर में ? क्यों नाना और अटल जी अक्सर उस घर की चर्चा करते थे? ऐसा क्या था जो उन्हें सदैव विचलित करता था? आज दोनों हमारे बीच नहीं हैं, और उस घर की चर्चा भी अब नहीं होती तो मुझे लगता है कि आज उस प्रसंग की याद—दिहानी फिर देश को करायी जाय।
13 मार्च भले ही भाजपा के नए एवम् विलक्षण-उत्साही कार्यकर्ताओं के लिए एक सामान्य- तारीख हो लेकिन भाजपा और उसकी पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ के इतिहास में दखल रखने वालों के लिए इस तारीख का एक खास मतलब है। भारतीय जनसंघ के आद्य- पुरुष पण्डित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyay) ने 13 मार्च 1942 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रचारक बनने का निर्णय आगरा के बेलनगंज के निकट कचौरा- बाजार में बने विशाल तीन-मंजिला घर के एक कक्ष में बैठकर लिया था,जहाँ उनके परिजन पण्डित रामशरण उपाध्याय ‘वैद्य-शास्त्री ‘ रहा करते थे । संघ उस समय देश- भर में संघ- कार्य के लिए प्रचारक बनाने के काम में जुटा था,इसकी कमान भाऊराव देवरस के हाथ में थी, वह देश भर में भ्रमण- कर संघ कार्य के लिए प्रचारक तलाश रहे थे। आगरा में भी भाऊराव देवरस का आगमन हुआ।
भाऊराव के भोजन- स्थल की तलाश हो रही थी, 13 मार्च को उनका भोजन किसी परिवार में तय होना था, तब पण्डित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyay) के सुझाव पर ही उनके निकट परिजन एवम् मेरे ददिया—श्वसुर पण्डित रामसरन उपाध्याय ‘वैद्य—शास्त्री’ के कचौरा- बाजार स्थित तीन मंजिले घर पर संघ के अधिकारियों का भोजन तय हुआ।
भोजन में भाऊराव देवरस के साथ बलवंत महाशिंदे, नानाजी देशमुख, सुंदर सिंह भंडारी, ओंकार भावे और उस समय आगरा में संघ के महानगर सह—प्रचारक भाऊराव जुगादे व कुछ अन्य स्वयंसेवक भी उपस्थित थे। भाऊराव देवरस की भोजन के बाद पण्डित दीनदयाल उपाध्याय से लंबी वार्ता हुई। इस वार्ता के बाद ही पंडित जी ने प्रचारक बनने का अंतिम निर्णय उसी दिन और वहीं लिया।
बाद में लगभग 6 महीने बाद 21 सितंबर 1942 को मामाजी राधारमण शुक्ला को पत्र लिखकर उन्हें संघ प्रचारक बनने के अपने निर्णय की सूचना दी एवम् एक पत्र मेरे मौसी—श्वसुर एवं अपने भांजे पण्डित ईश्वरी प्रसाद शर्मा को भी लिखा जिसको मौसाजी अपने जीवन-काल में हम सबको पढ़ाया करते थे। दीनदयाल के संघ प्रचारक बनने की योजना के नेपथ्य में नानाजी देशमुख ही थे। जिस तिमंजिले भवन में इतना बड़ा फैसला हुआ, वह आज भी कचौरा- बाजार में मौजूद है। इस भवन में इस समय कई किराएदार रह रहे हैं , पर जनसंघ के प्रणेता एवम् स्थापना-पुरुष पण्डित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyay) की इस ‘संकल्प—स्थली’ को संरक्षित करने के लिए आज तक कोई प्रयास नहीं हुए हैं। पिछले आठ वर्ष ,आठ माह एवम् बारह दिन से केन्द्र में भाजपा की प्रचण्ड-बहुमत की सरकार है लगभग छह साल से उत्तर-प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार है, लेकिन आज तक वहाँ कोई गया तक नहीं है?
आज परिवार की ओर से प्रयत्न मैंने भी किया है,क्या इस मुहिम में मुझे परिवार का सहयोग और आशीर्वाद प्राप्त होगा? (बप्पा- दादा जी को खाना खिलाने वाली 93 वर्षीय मेरी मौसी- सास ( जिनका गत वर्ष, 2022 को निधन हो गया)अजमेर निवासी कमलेश मिश्राजी ‘कमला-मौसी ‘ ने जैसा बताया था:- घर में उन्हें ( बप्पा-दादाजी को) दीना मामा के नाम से पुकारते थे।
अजमेर में रहीं पण्डित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyay) की परिजन एवम् मेरी मौसी सास कमलेश मिश्रा( अब-दिवंगत) बताती थीं कि यह बात सन 1941 के आस—पास की होगी जब वह अपनी जीजी पार्वती व जीजाजी पण्डित ईश्वरी प्रसाद शर्मा के पास रेवाड़ी में छुट्टियां बिताने गई थीं, ईश्वरी प्रसाद की मां अशर्फीदेवी और पिता शंकर लाल शर्मा रेवाड़ी रेलवे स्टेशन पर सीटीएनएल के पद पर तैनात थे और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के बहन और बहनोई लगते थे, इस दौरान दीनदयाल रेवाड़ी में ही उनके साथ रहकर पढ़ाई कर रहे थे, बहनोई शंकरलाल शर्मा बड़े रेलवे बंगले में रहते थे तब करीब दस-बारह साल की होने पर पार्वती जीजी मुझे ही उनको भोजन के लिए बुलाने को भेजती थीं क्योंकि पार्वती जीजी ममिया-श्वसुर होने के कारण उनसे पर्दा करती थीं और उनके सामने घूंघट में ही रहती थीं । मौसीजी ने बताया था कि, ‘ वे हमेशा पढ़ाई में तल्लीन रहते थे मैं उन्हें कमरे के दरवाजे से ही ‘दीना मामा’ जीजी ने खाना खाने बुलाया है’ आवाज लगाकर भाग आती थी, वे चुपचाप आते और भोजन कर फिर पढ़ने लगते थे, शाम को जब घर के पुरुष-सदस्य घर में होते थे तो वे अक्सर उन्हीं के साथ भोजन करते थे और खूब सारी बातचीत भी, तब जीजी के श्वसुर कहा करते थे, कि एक दिन यह देश का नाम रोशन करेगा क्योंकि उनकी बातें बहुत तार्किक, विद्वतापूर्ण एवम् गम्भीर होती थीं तब यह भी कतई पता नहीं था कि दीना मामा आगे चलकर देश में जनसंघ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे ।
जीजी लज्जावश और पर्दा-प्रथा के चलते दीना मामा के पास नहीं जाती थी, लेकिन रसोई में उनकी बातों को बहुत ध्यान से सुनती थीं । दीनदयाल ने अपने भान्जे व मेरे जीजाजी ईश्वरी प्रसाद शर्मा के यहां आखिरी भोजन अपने बम्बई (अब-मुम्बई्र) प्रवास के दौरान 15 जनवरी,1968 को बम्बई के माटुंगा रोड, स्थित आवास पर किया था,जीजाजी ईश्वरी प्रसाद भी रेलवे में थे और उस दौरान डिवीजनल काॅमर्शियल हैड क्वार्टर चर्चगेट में तैनात थे। माटुंगा रोड बम्बई में उन्हें रेलवे की ओर से फ्लैट मिला हुआ था।
अपनी उस आखिरी बम्बई- यात्रा के दौरान दीना मामा उनके आवास पर रुके थे। भोजन के बाद चलते समय पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ने भान्जे की बहू पार्वती को नेग में एक पीले रंग का सिक्का भी दिया था और कहा था, ‘यह मेरा नहीं है,देश ने मुझे दिया है, इसे देश के काम में ही खर्च करना।’ जीजी पार्वती देवी ने उसे उनका आशीर्वाद मान आजीवन खर्च नहीं किया । उसके कुछ दिनों बाद ही,11 फरवरी, 1968 को मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर उनका शव बरामद हुआ, जिससे घर में हाहाकार मच गया था । दीना मामा का अंतिम- संस्कार अफसरी देवी के ममेरे भाई प्रभुदयाल शुक्ला ने किया था।
— लेखिका पण्डित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyay) की प्रपौत्रवधु हैं एवं वाणिज्यिक और आयकर सलाहकार हैं।