नई दिल्ली| दिल्ली हाई कोर्ट में दायर दिवाला कानून में संशोधन करने वाले अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका पर अदालत ने केंद्र से जवाब मांगा है। इस अध्यादेश के जरिये 25 मार्च 2020 को अथवा इसके बाद सामने आने वाले डिफाल्ट मामलों में आईबीसी के तहत कार्रवाई को छह माह के लिये निलंबित किया गया है। कोरोना वायरस महामारी को देखते हुये सरकार ने यह कदम उठाया।
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मुख्य न्यायधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने याचिका को लेकर विधि मंत्रालय और भारतीय दिवाला एवं ऋणशोधन क्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) से 31 अगस्त तक जवाब देने को कहा है। याचिका में आईबीसी कानून में अध्यादेश के जरिये किए गए संशोधन को हटाने की मांग की गई है। केन्द्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता अमित महाजन ने मंत्रालय की तरफ से पेश होते हुए याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह सुनवाई योग्य नहीं है। महाजन ने कहा कि याचिकाकर्ता, राजीव सूरी, यह बताने में असफल रहे हैं कि इस जनहित याचिका को दायर करने से उनका क्या लेना देना है।
अध्यादेश में क्या है
आईबीसी संशोधन अध्यादेश में कहा गया है कि 25 मार्च और उसके बाद से बैंक कर्ज का नियमित किस्त के अनुरूप भुगतान करने में असफल रहने पर कर्जदार के खिलाफ दिवाला एवं रिणशोधन कानून के तहत कार्रवाई नहीं की जाएगी। कार्रवाई से यह छूट छह महीने के लिए जिसे एक साल तक भी बढ़ाया जा सकता है, दी गई है। सरकार ने कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन लागू किया था।
आईबीसी कानून में यह व्यवस्था की गई है कि कोई भी बैंक कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनी के खिलाफ दिवाला कानून के तहत कार्रवाई की मांग कर सकता है। कर्ज किस्त के भुगतान में तय समय से यदि एक दिन की भी देरी होती है तो आईबीसी के तहत दिवाला कार्रवाई का प्रावधान इसमें किया गया है। हालांकि, इसमें न्यूनतम राशि एक करोड़ रुपये तय की गई है जो पहले एक लाख रुपये रखी गई थी। सरकार ने कोरोना वायरस के मौजूदा दौर में कर्जदारों को राहत पहुंचाने के लिये कानून में संशोधन किया है।
बता दें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों (एमएसएमई) के लिए एक विशेष दिवालाशोधन समाधान रूपरेखा तैयारी के अंतिम चरण में है। भारतीय दिवाला एवं रिण शोधन अक्षमता (आईबीबीआई) के प्रमुख एमएस साहू ने पिछले दिनों जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि इसके अलावा एक पहले से तैयार समाधान रूपरेखा पर भी काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि दिवालाशोधन कानून उभरती जरूरतों को नवोन्मेषी तरीके से पूरा करने के लिए विकसित हो रहा है। सरकार ने कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के कुछ प्रावधानों को निलंबित कर दिया है। आईबीसी के तहत नए मामलों को दर्ज करने का काम फिलहाल निलंबित है। यह निलंबन एक साल तक के लिए बढ़ाया भी जा सकता है।
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यह पूछे जाने पर कि कोविड-19 के बाद चीजों के सामान्य होने के बाद अंतत: क्या प्रभाव रह सकता है, साहू ने कहा कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है और ध्यान तेजी से प्रतिक्रिया पर दिया जा रहा है। उन्होंने पीटीआई-भाषा को ईमेल के जरिये दिये एक साक्षात्कार में बताया, “आईबीसी अर्थव्यवस्था की उभरती जरूरतों को पूरा करने के नवोन्मेषी तरीकों की पेशकश करने के लिए विकसित हो रहा है। संहिता की धारा 240ए के तहत एमएसएमई के लिए एक विशेष दिवाला समाधान ढांचा तैयारी के अंतिम चरण में है। एक पहले से तैयार दिवाला समाधान रूपरेखा के ढांचे पर भी काम चल रहा है।
उन्होंने कहा कि वास्तविक व्यापार विफलताओं की बेहतर स्वीकार्यता होगी और इसके फलस्वरूप उद्यमिता पनपेगी। आईबीसी और मजबूत होकर उभरेगा। सरकार ने मई में आईबीसी के तहत विभिन्न छूटों की घोषणा की, जिसमें कोविड-19 से संबंधित ऋण की छूट और एमएसएमई के लिए एक विशेष रूपरेखा शामिल है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महामारी और उसके बाद लॉकडाउन से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक के प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के रूप में इन छूटों की घोषणा की थी।