आसाराम पर लिखी किताब पर रोक के बाद प्रकाशक की अपील पर दिल्ली हाईकोर्ट मंगलवार को अपना फैसला सुनाने जा रहा है। पुस्तक के प्रकाशक हार्पर कॉलिंस की तरफ से ये अपील हाइकोर्ट में इसलिए दाखिल की गई थी क्योंकि निचली अदालत ने पुस्तक के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया था। निचली अदालत ने इस किताब के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाते हुए अपना आदेश दिया कि बलात्कार के मामले में दोषी पाए जाने के खिलाफ आसाराम की अपील अभी राजस्थान हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
दिल्ली हाइकोर्ट ने आसाराम पर लिखी गई पुस्तक के प्रकाशन को प्रतिबंधित करने के खिलाफ दाखिल की गई अपील पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला 9 सितंबर को सुरक्षित रख लिया था। हार्पर कॉलिंस ने हाईकोर्ट में लगाई अपील में आसाराम के ऊपर लिखी गई किताब ”गनिंग फॉर द गॉडमैन: द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम कन्विक्शन” (Gunning for the Godman: The True Story behind the Asaram Bapu Conviction) के प्रकाशन पर लगी अंतरिम रोक को हटाने का अनुरोध किया है।
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हार्पर कॉलिंस की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा की यह प्रवृत्ति अब बहुत बढ़ गई है कि पुस्तक के विमोचन के दौरान लोग कोर्ट जाकर एकतरफा स्टे-ऑर्डर ले आते हैं। पुस्तक वितरकों के पास तक पहुंच चुकी है. सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि पुस्तक की 5 हजार प्रतियां छप चुकी हैं। 5 सितंबर को इसका विमोचन होना था, लेकिन 4 सितंबर को कोर्ट की तरफ से किताब पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
आसाराम के खिलाफ बलात्कार के आरोप में कोर्ट में चली सुनवाई और उस दौरान की घटनाओं को लेकर लिखी गई पुस्तक गनिंग फॉर द गॉडमैन: द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम का कनविक्शन ’, अजय लांबा, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त, जयपुर और संजीव माथुर द्वारा लिखी गई है, और इसे 5 सितंबर, 2020 को जारी किया जाना था। लेकिन उससे एक दिन पहले ही याचिका कोर्ट में लगाकर इस किताब के प्रकाशन पर रोक लगा दी गई।
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प्रकाशक की तरफ से इस मामले में वकील के तौर पर पेश हुए कपिल सिब्बल का तर्क था कि ये पुस्तक बलात्कार के मामले के रिकॉर्ड के आधार पर लिखी गई है और यह जांच अधिकारी की अपनी कहानी है। पूरी कहानी सुनवाई के दौरान पेश साक्ष्यों और आसाराम व शिल्पी को दोषी करार दिए जाने के फैसले पर आधारित है।
निचली अदालत से जिस महिला की अर्जी पर पुस्तक के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा है उस महिला की ओर से पेश हुए वकील देवदत्त कामत ने कहा कि किताब में मानहानि करने वाली सामग्री मौजूद है। कामत ने तर्क दिया कि मुफ्त भाषण का अधिकार इस जिम्मेदारी के साथ आया है कि इससे दूसरों के अधिकारों की प्रतिष्ठा को नुकसान नहीं पहुंचे। अब मंगलवार को कोर्ट से आने वाले फैसले के बाद यह तय होगा कि आशाराम पर लिखी गई ये किताब आम लोगों के लिए बाजार तक पहुंच पाएगी या फिर इस पर लगा स्टे बरकरार रहेगा।