नई दिल्ली। राज्यसभा में सोमवार का पूरा दिन दिल्ली सेवा बिल (Delhi Service Bill ) के नाम पर समर्पित रहा। गुरुवार को लोकसभा से पारित होने के बाद इस बिल को आज राज्यसभा में पेश किया गया। जहां पूरे दिन इस पर चर्चा हुई और यह बिल पारित हो गया। दिल्ली सेवा बिल के पक्ष में 131 वोट डाले गए तो इसके विरोध में विपक्षी सासंदों की ओर से सिर्फ 102 वोट पड़े। अब इस बिल पर राष्ट्रपति की मुहर लगना बाकी है। इसके बाद यह कानून बन जाएगा।
दिल्ली सरकार में वरिष्ठ अधिकारियों के तबादलों और पदस्थापना के संबंध में अध्यादेश के स्थान पर इस बिल को विपक्षी दलों के बहिष्कार के बीच गुरुवार को लोकसभा द्वारा पारित कर दिया गया था। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के दल बिल को पारित करने के सरकार के कदम को विफल करने के लिए हरसंभव प्रयास किया। संख्या बल NDA के पक्ष में रहा।
राज्यसभा में वोट रिकार्डिंग मशीन में तकनीकी खराबी के कारण वोटों का बंटवारा कागजी पर्चियों के जरिए हुआ। इस दौरान 5 सांसदों के नाम को सेलेक्ट कमिटी में भेजने के प्रस्ताव पर गलत ढंग से लिखा गया। ये मसला गृहमंत्री अमित शाह ने उठाया। उन्होंने मांग की कि इसपर तुरंत जांच कर दोषी के खिलाफ प्रिविलेज का मुद्दा चलाया जाए।
ये मोशन आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने मूव किया था। 5 में से 4 सांसदों ने तुरंत सदन में विरोध किया। इनमें एआईएडीएमके से थम्बी दुरई , नागालैंड से एस फांगोंग कोनयक, बीजेडी से ससमित पात्रा और बीजेपी सुधांशु त्रिवेदी हैं। राज्यसभा उपसभापति ने आश्वासन दिया कि इसकी तुरंत जांच होगी।
राज्यसभा में बिल का पास होना अविश्वास प्रस्ताव से पहले मोदी सरकार के लिए बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है। बता दें कि विपक्ष ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया है, जिसकी चर्चा मंगलवार से लोकसभा में होगी।
क्यों लाया गया है ये बिल (Delhi Service Bill )?
– साल 1991 में संविधान में 69वां संशोधन किया गया। इससे दिल्ली को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’ यानी ‘नेशनल कैपिटल टेरेटरी’ का दर्जा मिला। इसके लिए गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरेटरी एक्ट 1991 बना।
– 2021 में केंद्र सरकार ने इस कानून में संशोधन किया। केंद्र ने कहा कि 1991 में कुछ खामियां थीं। पुराने कानून में चार संशोधन किए गए। इसमें प्रावधान किया गया कि विधानसभा कोई भी कानून बनाएगी तो उसे सरकार की बजाय ‘उपराज्यपाल’ माना जाएगा। साथ ही ये भी प्रावधान किया गया कि दिल्ली की कैबिनेट प्रशासनिक मामलों से जुड़े फैसले नहीं ले सकती।
– दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस पर 11 मई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि दिल्ली की नौकरशाही पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल है और अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी अधिकार भी उसी का है।
UP Assembly: हंगामे के बीच पेश हुए 13 अध्यादेश और 11 विधेयक
– सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी।- इसी फैसले के खिलाफ 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई। अध्यादेश के जरिए अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा आखिरी फैसला लेने का अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया गया।
– इसी अध्यादेश को कानून की शक्ल देने के लिए संसद में ये बिल लाया गया है। इस बिल में कुछ ऐसी बातें भी हैं जो अध्यादेश में नहीं थी।
क्या है इस बिल (Delhi Service Bill ) में?
राष्ट्रपति से मुहर लगने के बाद ये बिल मई में आए अध्यादेश की जगह लेगा। हालांकि, बिल में धारा 3A को हटा दिया गया है। धारा 3A अध्यादेश में थी। ये धारा कहती थी कि सर्विसेस पर दिल्ली विधानसभा का कोई नियंत्रण नहीं है। ये धारा उपराज्यपाल को ज्यादा अधिकार देती थी। हालांकि, इस बिल में एक प्रावधान ‘नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी’ के गठन से जुड़ा है। ये अथॉरिटी अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग और नियंत्रण से जुड़े फैसले लेगी।
बता दें कि इस अथॉरिटी के चेयरमैन मुख्यमंत्री होंगे। उनके अलावा इसमें मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) भी होंगे। ये अथॉरिटी जमीन, पुलिस और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी मामलों से जुड़े अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग की सिफारिश करेगी। ये सिफारिश उपराज्यपाल को की जाएगी। इतना ही नहीं, अगर किसी अफसर के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी है तो उसकी सिफारिश भी ये अथॉरिटी ही करेगी। अथॉरिटी के सिफारिश पर आखिरी फैसला उपराज्यपाल का होगा। अगर कोई मतभेद होता है तो आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही माना जाएगा।