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देशरत्न राजेंद्र प्रसाद की कांग्रेस ने हमेशा उपेक्षा की : सुशील मोदी

susheel modi

सुशील कुमार मोदी

बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने आज कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राममंदिर शिलान्यास की तरह ही प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन का भी कांग्रेस ने विरोध किया था।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता श्री मोदी ने गुरुवार को यहां देशरत्न डॉ. प्रसाद की जयंती के अवसर पर टी. के. घोष एकेडमी में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि जिस तरह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अध्योध्या में बहुप्रतीक्षित भव्य राममंदिर निर्माण का शिलान्यास किया तो कांग्रेस और वामपंथियों ने तीखा विरोध किया, उसी तरह वर्ष 1951 में पुनरोद्धार के बाद सोमनाथ मंदिर का राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा उद्घाटन करने का भी प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने विरोध किया था। लेकिन, पं. नेहरू के विरोध का डॉ. प्रसाद ने परवाह नहीं किया।

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श्री मोदी ने कहा कि ग्यारहवीं सदी में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को तोड़ दिया था। जिस तरह से इसका पुनरोद्धार महात्मा गांधी की सलाह पर सरकार की जगह जनता के धन से किया गया उसी तरह प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भी राममंदिर के निर्माण के लिए जनसहयोग की अपील की है।

भाजपा नेता ने कहा कि खांटी भोजपुरी बोलने एवं धोती पहनने वाले सादगी के प्रतीक डाॅ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति के तौर पर कांग्रेस की कभी पंसद नहीं रहे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को तो सूट-बूट और टाई पहनने वाला पसंद था, इसीलिए पंडित नेहरू तो डॉ. प्रसाद की जगह सी. राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनाना चाह रहे थे।

श्री मोदी ने कहा कि बिहार में गौशालाओं से संबंधित पहला कानून डाॅ. राजेंद्र प्रसाद की ही देन है। राजनीति के अतिरिक्त समाज सुधार में भी उनकी गहरी रूचि थी। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने तिलक-दहेज रहित और अन्तरजातीय विवाह को बढ़ावा देने का अभियान चलाया था। लेकिन, ऐसे देशरत्न राजेंद्र बाबू की कांग्रेस ने हमेशा उपेक्षा की।

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पूर्व उप मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रपति पद से निवृत होने के बाद जिस तरह से देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पटना स्थित बिहार विद्यापीठ के सीलन भरे कमरे में रहना पड़ा वह दुर्भाग्यपूर्ण था। उन्होंने कहा कि मृत्यु के बाद भी कांग्रेस ने कभी उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे।

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