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दीपावली केवल वाह्य प्रकाश का ही नहीं, बल्कि आत्मिक समृद्धि का भी पर्व है

Diwali

Diwali

प्रो.आर.एन. त्रिपाठी

ऋषि कृषि प्रधान देश भारत मे कोई दिन ऐसा नही है कि जिस दिन देश के किसी न किसी हिस्सें में कोई उत्सव,पर्व,त्योहार न मनाया जाता हो, इसीलिए दुनियां में भारत को त्योहारों और उत्सवों का देश कहा जाता है। ये उत्सव ही यहां की जीवंत सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक हैं। ये त्योहार सांस्कृतिक और सामाजिक विविधताओं में समरसता घोलकर ये न केवल मनुष्य को जीवनी शक्ति प्रदान करते हैं वरन राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में सहायता प्रदान करते हैं। यह उत्सव और विविध खान पान व्यजंन व्यवहार आपसी हेल मेल बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते हैं। ये भारतीय संस्कृति के युगों युगों से संवाहक हैं। इसीलिए तमाम अवरोधों के बाद भी आज तक ये त्योहार जीवंत और अक्षुण्ण बने है। इसका श्रेय ऋषियों,और उत्सव धर्मी गृहस्थों को जाता है, जिनकी वैज्ञानिक विचारधारा,एवं अथक परिश्रम की नीति ने संपूर्ण जनमानस को एक सूत्र में पिरोकर सभी के अंदर मानवता का दीप प्रज्ज्वलित सदा किया।

ऐसे ही दीपावली (Diwali ) का असत्य पर सत्य की विजय का मंगल संदेश पूरी दुनिया में पूरी दुनिया के मंगल हेतु पहुंचा। अतः ये पर्व क्षणिक उल्लास के नहीं,बल्कि पूरे जीवन को उल्लसित करने के साधन बन गए। इनसे प्रस्फुटित होने वाली आनंद की अजस्र धारा तन-मन को आप्लावित कर जीवन को चिरंजीवी बना देती है,आज अयोध्या का दीप प्रज्ज्वलन पर्व पूरी दुनिया मे प्रसिद्ध है। भारत की सांस्कृतिक चेतना में तो हर घर आज अयोध्या बन गया है और अयोध्या की ही तरह प्रभु आगमन हर घर में हो रहा है हर घर में उल्लास,और उत्साह है। दीपोत्सव स्वयं में पूरी संस्कृति के आभ्यान्तर और बाह्य पक्ष के आलोक को अपने में समेटे है। आसुरी शक्तियों का विनाश कर चौदह वर्ष बाद भगवान श्रीराम का अयोध्या प्रत्यागमन इसके उद्भव का प्रमुख कारण है। कल्मष और पाप को नष्ट कर मानवता की विजय का प्रकाश करने हेतु के दिया जलाने का इससे बड़ा अवसर कोई नहीं हो सकता। पर यह मात्र बाह्य प्रकाश का पर्व नहीं है। ज्ञान का आंतरिक आलोक जिसमे दया,करुणा,परोपकार भरा हो, इसे और सार्थक बनाता है। वस्तुतः एकल जीवन के साथ सामाजिक जीवन में भी वास्तविक सुख-समृद्धि तब तक नहीं हो सकती जब तक अंतर्मन परोपकार के ज्ञान से आलोकित नहीं होगा। मानवता का रक्तपात करने वाले सम्राट अशोक के हृदय में भी जब आत्मग्लानि के फलस्वरूप ज्ञान का आलोक प्रदीप्त हुआ तब उसके जीवन में ही नहीं, पूरे राज्य में मानव प्रेम की दीपावली (Diwali ) का आगमन हुआ,और अशोक शांतिदूत बनकर आज पूरे विश्व मे जाना जाता है।

आजकल सम्पूर्ण विश्व मे बाह्य प्रकाश के अनंत स्रोत होने पर भी अंतर्विरोधों की बहुलता आंतरिक तमस का ही परिणाम है,पूरे विश्व मे वर्चस्व के लिए युद्ध चल रहा है,अकारण इतना बड़ा रक्तपात दुनिया मे चल रहा है। यदि उत्सव की संस्कृति पूरी दुनियां में फैलती तो अकारण यह युद्ध इतना वीभत्स नहीं होता। और विश्व का इतनी ऊर्जा और धन लोक कल्याण हेतु उपयोग होता,परन्तु अंतर्मन में जब अंधियारा है तो दूसरों को कैसे प्रकाशित करेंगे।

हमारे देश में प्रभु श्री राम जब मानवता का दमन करने वाले रावण पर विजय करके सत्य के मार्ग पर चलकर वापस आते हैं तो उनका स्वागत दीपों से होता है और तब से दीपावली (Diwali ) मनाई जा रही दीपावली के इस पर्व का संदेश लेकर जब प्रत्येक मानव -मन आंतरिक ज्ञान जिसमें दया,करुणा, परोपकार उदारता पर्यावरण, जीव जंतुओं पर्यावरण के प्रति सम्मान से आलोकित हो जाएगा तब धरती पर स्वर्ग का अवतरण अपने आप हो जाएगा।

उस अवसर पर हमें एक दीपक उस घर में भी जलाने का प्रयास करना होगा जो घर गरीबी, भुखमरी और बीमारी से जूझ रहा होगा हमें उसे घर में भी दीपक जलाने का प्रयास करना होगा जिस घर में अशिक्षा,अविद्या के कारण नित्य प्रति समस्याएं आ रही हैं, हमें एक दीप उन त्यागी, बलिदानियों सैनिकों और देश के रक्षण लगे हुए कार्मिकों के प्रति भी जलाना होगा जिन्होंने अपने हिस्से की रोशनी का त्याग करके हमारे जीवन को रोशन किया है। आइए इस दीप पर्व को आंतरिक प्रषंन्नता भरे भाव से जन-मन एवं राष्ट्र उत्कर्ष हेतु वाह्य जगत में पर्यावरण अनुकूलन को दृष्टि गत रखकर दीप जलाएं और गनगुनाये।

ज्योति से ज्योति जलाते चलो,प्रेम की गंगा बहाते चलो।
राह में आएं जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो।। आप सभी को दीपावली की शुभ कामना।

प्रो.आर.एन. त्रिपाठी (लेखक काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं।)

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