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जानें इस साल कब मनाई जाएगी दिवाली, नोट कर लें पूजा का मुहूर्त

Diwali

Diwali

हर साल दिवाली (Diwali) का पर्व हर्षोंल्लास के साथ पूरा देश मनाता है। चारों ओर रौशनी से वातावरण जगमगा उठता है। सुख-सुमृद्धि एवं मंगल कामना के लिए घरों और दुकानों में शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश, माता लक्ष्मी व कुबेर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। कई लोग घरों में गन्ने की लक्ष्मी बनाकर पूजा करते हैं। इस दिन रंगोली बनाई जाती है और स्वादिष्ट पकवानों का स्वाद भी चखा जाता है। शाम को हर घर रौशन दिखाई देता है। दिवाली (Diwali) का त्योहार 3 दिवसीय त्योहार है। पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन छोटी दिवाली और तीसरे दिन बड़ी दिवाली मनाते हैं।

दीपावली (Diwali) में पूजा का शुभ महूर्त:

दीपावली का त्यौहार खुशियों, रौशनी व अपनेपन का पर्व है। बिना दीपक के दीपावली की कल्पना नहीं की जा सकती। वहीं, घर में सुख-समृद्धि के लिए भगवान गणेश व माता लक्ष्मी के पूजन के लिये विशेष तैयारी की जाती है। इस साल 1 नवंबर को शाम 05:36 पी एम से शाम 06:16 बजे तक है। वहीं, चौघड़िया मुहूर्त प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – 06:33 ए एम से 10:42 ए एम तक, अपराह्न मुहूर्त (चर) – 04:13 पी एम से 05:36 पी एम तक, अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – 12:04 पी एम से 01:27 पी एम बजे तक रहेगा।

अमावस्या तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 31, 2024 को 03:52 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – नवम्बर 01, 2024 को 06:16 पी एम बजे
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – 05:36 पी एम से 06:16 पी एम
अवधि – 00 घण्टे 41 मिनट्स
प्रदोष काल – 05:36 पी एम से 08:11 पी एम
वृषभ काल – 06:20 पी एम से 08:15 पी एम

उपाय- दिवाली पर मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए 11 बार करें श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ।

श्री लक्ष्मी चालीसा

॥ दोहा ॥

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।

मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।

ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥

तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

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मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥

ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥

पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥

रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥

॥ दोहा॥

त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥

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