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महाशिवरात्रि के दिन इन मंत्रों के साथ करें जलाभिषेक, सभी मनोकामना होंगी पूर्ण

Mahashivratri

Mahashivratri

हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि ( Mahashivratri) का पर्व मनाया जाता है। वहीं इस साल दिनांक 08 मार्च को महाशिवरात्रि का व्रत रखा जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि के दिन भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए यह दिन बेहद खास माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा करता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है। अब ऐसे में महाशिवरात्रि के दिन किस समय जलाभिषेक करना शुभ होता है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

इस शुभ मुहूर्त में करें जलाभिषेक

पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ दिनांक 08 मार्च को रात्रि 09 बजकर 57 मिनट पर होगा और इसका समापन दिनांक 09 मार्च को शाम 06 बजकर 17 मिनट पर होगा। ऐसे में महाशिवरात्रि ( Mahashivratri) व्रत दिनांक 08 मार्च को रखा जाएगा। इस दौरान किसी भी समय जलाभिषेक किया जा सकता है।

इस विधि से करें जलाभिषेक (Jalabhishek Vidhi)

– महाशिवरात्रि ( Mahashivratri) के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और इस दिन की शुरुआत महादेव का ध्यान करें।

– स्नान कर सूर्यदेव को जल जरूर अर्पित करें।

– अब मंदिर जाकर शिवजी (शिव जी मंत्र) को गंगाजल जल अर्पित करें। उसके बाद दही, दूध और घी शिवलिंग पर चढ़ाएं।

– अब घी का दीपक जलाकर महादेव की आरती करें और मंत्रों का उच्चारण करें।

– आखिर में भगवान शिव (भगवान शिव भोग) तो फल, मिठाई और फूल चढ़ाएं।

– इसके बाद लोगों को प्रसाद बांटें।

– शिवलिंग पर जल अर्पित करने के दौरान इस मंत्र का 51 बार जाप करें।

‘ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥’

‘ऊँ शं शंकराय भवोद्भवाय शं ऊँ नमः’

कुवांरी कन्या मनचाहा जीवनसाथी के लिए करें मंत्रों का जाप

‘निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाश माकाश वासं भजेऽहं’।।

‘ऊँ शिवाय नमः ऊँ’

करियर ग्रोथ के लिए मंत्रों का जाप

करियर में ग्रोथ चाहते हैं, तो महाशिवरात्रि के दिन इस मंत्र का जाप करें।

‘ऊँ शं विश्वरूपाय अनादि अनामय शं ऊँ’

सुख-समृद्धि के लिए करें इस मंत्र का जाप

‘ऊँ अघोरेभ्यो अथघोरेभ्यो, घोर घोर तरेभ्यः। सर्वेभ्यो सर्व शर्वेभ्यो, नमस्ते अस्तु रूद्ररूपेभ्यः’।

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