हिंदू पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) साल की सबसे कठिन और पुण्यदायी एकादशी मानी जाती है। यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आता है और इस दिन व्रती को जल तक ग्रहण नहीं करना होता, इसलिए इसे निर्जला कहा जाता है। इस व्रत को रखने से साल भर की सभी एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं कि इस दिन क्या करना चाहिए और किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) कब है?
पंचांग के अनुसार, निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) यानी जेष्ठ माह की एकादशी तिथि की शुरुआत 6 जून को देर रात 2 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगी। वहीं तिथि का समापन अगले दिन 7 जून को सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर होगा। इसलिए उदया तिथि के अनुसार, 6 जून को रखा जाएगा।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के दिन क्या करें?
भगवान विष्णु का ध्यान
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके भगवान विष्णु का ध्यान करें।
संकल्प लें
व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु के समक्ष व्रत आरंभ करें।
पूजन विधि
पीले वस्त्र धारण करें, पीले फूल, तुलसी दल, पंचामृत, धूप-दीप आदि से श्रीहरि विष्णु का पूजन करें।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें
दिनभर भगवान विष्णु के मंत्र, भजन या श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करना लाभकारी होता है।
दान-पुण्य करें
इस दिन वस्त्र, जल, छाता, फल, अन्न, शर्बत, पंखा आदि का दान गरीबों और ब्राह्मणों को करें।
जल नहीं पीते हैं
यह व्रत पूरी तरह से निर्जला होता है, किसी विशेष पर् यानी व्रती को जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
रात्रि जागरण
संभव हो तो रात्रि में जागरण करें और प्रभु की कथा या भजन कीर्तन करें।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के दिन क्या न करें?
जल और अन्न ग्रहण न करें
व्रत के दौरान जल या अन्न लेना व्रत को खंडित कर सकता है।
क्रोध, झूठ और अपशब्द से बचें
व्रत के दिन संयमित वाणी और व्यवहार रखना अत्यंत आवश्यक है।
बिस्तर पर न सोएं
जमीन पर सोना शुभ माना जाता है, जिससे व्रत की पवित्रता बनी रहती है।
नकारात्मक विचार न रखें
मन, वचन और कर्म से शुद्धता बनाए रखें।
लहसुन-प्याज, मांस-मदिरा का सेवन न करें
ये तामसिक चीजें एकादशी व्रत में वर्जित हैं।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का महत्व
इस दिन व्रत रखने से साल की सभी एकादशियों का फल एकसाथ मिलता है। यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। शास्त्रों में कहा गया है कि भीम ने भी इसी एकादशी का व्रत करके सभी एकादशियों के पुण्य को प्राप्त किया था, इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। यह व्रत शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।