दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा ऑक्सीजन की कमी के बारे में झूठे चेतावनी संदेश नहीं दिए जाने चाहिए, क्योंकि इससे पहले से ही दबाव झेल रहे सरकारी तंत्र पर अनावश्क रूप से बोझ और बढ़ जाता है। इसके साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट ने दिशा-निर्देश तय किए कि कब इस तरह के एसओएस जारी किए जाएंगे।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जब अस्पताल के पास छह घंटे या उससे कम समय की ऑक्सीजन बाकी हो, तो उसे पहले अपने आपूर्तिकर्ता से संपर्क करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो अस्पताल को नोडल अधिकारी को सूचना देनी चाहिए। इसके बाद भी आपूर्ति प्राप्त नहीं होने और केवल तीन घंटे की ऑक्सीजन बची होने की सूरत में वे न्याय मित्र एवं वरिष्ठ वकील राजशेखर राव या वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा या दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील सत्यकाम से संपर्क कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने कहा, ‘इससे पहले भी हमने पाया है कि झूठे चेतावनी संदेश जारी नहीं किए जाने चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से पहले से दबाव झेल रहे सरकारी तंत्र पर अनावश्यक बोझ पड़ता है।’
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बहरहाल, दिल्ली में कोरोना के हालात, ऑक्सीजन और बेड की कमी पर एक बार फिर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार पर नाराजगी जाहिर करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। केंद्र सरकार को हाईकोर्ट ने यह बताने का निर्देश दिया है कि हाईकोर्ट के 1 मई के आदेश का पालन क्यों नही किया गया और उनके खिलाफ अवमानना की मामला क्यों नहीं चलाया जाए। यही नहीं, हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के दो बड़े अफसर पीयूष गोयल और सुमिता डाबरा को हाईकोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है।
इसके अलावा सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन देने का निर्देश दिया था, 490 नहीं। फिर ये दिल्ली को नहीं दिया गया। आपको बता दें कि 1 मई को दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि किसी भी सूरत में 1 मई को ही 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दिल्ली को दिया जाए।
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हाईकोर्ट ने कहा था कि लोग ऑक्सीजन के लिए रो रहे हैं। अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं है। इस बाबत दिल्ली को 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत है और उसे पूरा करे केंद्र सरकार।