लाइफ़स्टाइल डेस्क। इस साल की शुरुआत से ही कोविड 19 ने पूरी दुनिया को अभूतपूर्व रूप से प्रभावित किया है। यह हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। इस महामारी पर काबू पाना हमारी पहली प्राथमिकता है। लेकिन संसाधनों की कमी के चलते, यदि हमने पहले से मौजूद बीमारियों की अनदेखी की और ध्यान नहीं दिया, तो इसके बेहद गंभीर परिणाम होंगे। तपेदिक ऐसी ही एक बीमारी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अकेले 2019 में, भारत में 24.04 लाख तपेदिक के मामले दर्ज किए गए और टीबी के कारण 79,144 मौतें हुईं। चौंकाने वाली बात यह है कि भारत में कोविड-19 की वर्तमान मृत्यु दर की तुलना में टीबी की दर ज्यादा घातक है। भारत में टीबी की स्थिति बेहद चिंताजनक है।
ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2019 के अनुसार – विश्व के कुल टीबी के मामलों में 27 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत की है। चीन 9 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है, उसके बाद इंडोनेशिया (8 प्रतिशत), फिलीपींस (6 प्रतिशत), पाकिस्तान (6 प्रतिशत), नाइजीरिया (4 प्रतिशत), बांग्लादेश (4 प्रतिशत) और फिर दक्षिण अफ्रीका (3 प्रतिशत) का नंबर था। भारत सरकार ने 2025 तक टीबी को खत्म करने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।
1 जनवरी, 2020 को भारत के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम को नया नाम मिला। इसका नाम राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) से राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) में बदल दिया गया। नाम में यह परिवर्तन बीमारी को 2025 तक खत्म करने के बड़े लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए किया गया था। यह लक्ष्य सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स लक्ष्य से पांच साल आगे है। जहां भारत के प्रधान मंत्री के इस इरादे की सराहना की जा रही है, वहीं कई वैज्ञानिकों और चिकित्सकों का मानना है कि इस बीमारी को 2050 तक भी समाप्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि अभी तक इसे खत्म करने के लिए कोई तकनीक और प्रणाली नहीं है।
इस बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, कुछ नीतिगत निर्णय हैं जिन्हें सरकार द्वारा तपेदिक नियंत्रण के लिए लेना जरूरी है। इसमें सरकार द्वारा एक जो महत्वपूर्ण निर्णय लेना चाहिए, वह यह कि सरकार को तंबाकू की पहुंच को नियंत्रित करना होगा। तंबाकू के धुएं के रासायनिक घटक प्रकट न होने वाले तपेदिक को सक्रिय कर सकते हैं। वहीं धूम्रपान भी सक्रिय तपेदिक वाले लोगों में विकलांगता और मृत्यु के जोखिम को बढ़ा सकता है। विश्व में तपेदिक के 20% से अधिक मरीजों को धूम्रपान के कारण यह बीमारी होती हैं, साथ ही यह तपेदिक के खतरे को दोगुना कर देती है।