पंजाब और उसके आसपास के इलाकों में लोहड़ी का पर्व पौराणिक और एतिहासिक कारणों के चलते मनाया जाता है। इस दिन बेटी के आदर सत्कार की परंपरा को भी निभाया जाता है और साथ ही प्रकृति के प्रति आभार भी व्यक्त किया जाया है। घर में जन्मे शिशु के लिए भी लोहड़ी पर्व खास अहमियत रखता है। इस दिन उपहारों का भी आदान-प्रदान किया जाता है।
सिंधी समाज के लोग इसको लाल लाही पर्व के रूप में मनाते हैं। लोहड़ी को पहले कई स्थानों पर लोह भी कहा जाता था। लोह का अर्थ लोहा होता है और इसको लोहे को तवे से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि लोहड़ी तक पंजाब में गेहूं की फसल पक जाती है इसलिए नई फसल काटकर उसके आटे से बनी रोटी को लोहे के तवे पर सेका जाता है। इसलिए कभी को लोह भी कहा जाता था।
लोहड़ी पर पूजन
मान्यता है कि लोहड़ी के अवसर पर अग्नि और महादेवी पूजन करने से घर का क्लेश खत्म होता है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। लोहड़ी की पूजा के लिए इस दिन घर की पश्चिम दिशा में काले कपड़े पर महादेवी का चित्र स्थापित करें। महादेवी के चित्र के सामने सरसों के तेल का दीपक लगाए और धूपबत्ती लगाकर सिंदूर, बेलपत्र आदि चढ़ाएं। अब देवी को रेवड़ियों का भोग लगाएं। सूखे नारियल के गोले में कपूर डालकर अग्नि जलाएं। अब अग्नि में रेवड़ियां, मूंगफली और मक्का डालें। अब अग्नि की सात परिक्रमा करें। साथ में इस मंत्र का जाप करें ‘ओम सती शाम्भवी शिवप्रिये स्वाहा’ ।
लोहड़ी के उपाय
लोहड़ी के अवसर पर दुर्भाग्य दूर करने के लिए महादेवी को समर्पित की गई रेवड़ियां गरीब छोटी कन्याओं में वितरीत करें। घर में सुख-शांति के लिए उड़द और चावल की खिचड़ी काली गाय को खिलाएं। सौभाग्य और संपदा के लिए गुड़-तिल गरीबों में वितरीत करें। आर्थिक समस्या के समाधान के लिए लाल कपड़े में गेहूं बांधकर किसी गरीब ब्राह्मण को दान करें। घर-परिवार में समृद्धि के लिए तिल से हवन करने के साथ तिल का दान करें और तिल का सेवन भी करें।