ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा व्रत (Vat Purnima Vrat) रखते हैं। इस दिन सुहागन महिलाएं व्रत रखती हैं, ताकि उनको अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। दांपत्य जीवन की खुशहाली और पति की लंबी आयु के लिए वट पूर्णिमा व्रत रखते हैं। पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, इस साल वट पूर्णिमा व्रत 14 जून मंगलवार को है। इस दिन साध्य और शुभ योग बन रहे हैं।
ये दोनों ही योग मांगलिक कार्यों के लिए अच्छे माने जाते हैं। वट पूर्णिमा (Vat Purnima) व्रत के दिन वट वृक्ष, सावित्री और सत्यवान की पूजा की जाती है। इस व्रत से पहले वट सावित्री व्रत आता है, जो ज्येष्ठ अमावस्या को रखते हैं। यह भी वट पूर्णिमा व्रत के समान ही है। उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत प्रसिद्ध है, जबकि वट पूर्णिमा व्रत मध्य और दक्षिण भारत में रखा जाता है।
वट पूर्णिमा व्रत (Vat Purnima) मुहूर्त
ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ: 13 जून, दिन सोमवार, रात 09 बजकर 02 मिनट से
ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तिथि का समापन: 14 जून, मंगलवार, शाम 05 बजकर 21 पर
साध्य योग: प्रात:काल से सुबह 09 बजकर 40 मिनट तक
शुभ योग: सुबह 09 बजकर 40 मिनट से
दिन का शुभ समय: 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक
राहुकाल: शाम 03 बजकर 51 मिनट से शाम 05 बजकर 35 मिनट तक
वट पूर्णिमा व्रत के दिन पूजा में राहुकाल को वर्जित रखें तो उत्तम है। राहुकाल में पूजा पाठ नहीं किया जाता है, हालांकि शिव पूजा में यह मान्य नहीं होता है।
वट पूर्णिमा व्रत (Vat Purnima) की पूजा सामग्री
1) सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर
2) अक्षत्, गंध, इत्र
3) दीपक, धूप, बरगद का फल
4) वट पूर्णिमा व्रत कथा की पुस्तक
5) पान, सुपारी, फल, फूल
6) रोली, चंदन, बताशा
7) कुमकुम, सिंदूर, कलावा या रक्षा सूत्र, कच्चा सूत
8) मिठाई, जल कलश, मखाना, सुहाग सामग्री आदि
वट पूर्णिमा व्रत की पूजा के समय इसकी कथा का पाठ करते हैं। वट पूर्णिमा व्रत की कथा वट सावित्री व्रत की कथा ही है। इसमें कोई भेद नहीं है। वट पूर्णिमा व्रत और वट सावित्री व्रत में बस तिथियों का अंतर है। स्थान और क्षेत्र के आधार पर व्रत एवं पूजा विधि में थोड़ा बहुत परिवर्तन संभव है।