Site icon 24 GhanteOnline | News in Hindi | Latest हिंदी न्यूज़

‘चीनी सैनिकों को कैप्‍टन अमेरिका बनाने में जुटा ड्रैगन, बना रहा सुपर सोल्‍जर’

captain america

captain america

नई दिल्ली। लद्दाख से लेकर ताइवान तक पड़ोसियों की जमीन पर कब्‍जे की फिराक में लगा चीन अब कथित रूप से इस मिशन को पूरा करने के लिए अपने सैनिकों को ‘कैप्‍टन अमेरिका’ जैसा ताकतवर बनाने में जुट गया है। अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पीएलए सैनिकों को सुपर सोल्‍जर बनाने के लिए चीन ने इंसानी परीक्षण शुरू कर दिया है।

रामपुर : नौकरानी ने रात में साथ चलने से किया इनकार तो रिटायर्ड अधिकारी ने मारी गोली

वॉल स्‍ट्रीट जनरल में लिखे अपने लेख में रैटक्लिफ ने चेताया कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अमेरिका और शेष मुक्त विश्व के लिए चीन सबसे बड़ा खतरा है। रेटक्लिफ ने लिखा, ‘खुफिया विभाग स्पष्ट है कि पेइचिंग का इरादा अमेरिका और बाकी दुनिया पर आर्थिक, सैन्य और तकनीक के लिहाज से दबदबा बनाने का है।’ उन्होंने कहा कि चीन के कई बड़े पहल और कई बड़ी कंपनियां सिर्फ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की गतिविधियों का छद्म रूप है और वह इस तरह के बर्ताव को जासूसी और डकैती करार देते हैं।

महामारी के कारण 2030 तक एक अरब से ज्यादा लोग हो सकते हैं गरीब – संयुक्त राष्ट्र

रैटक्लिफ ने कहा, ‘चीन ने इस आस में पीपल्‍स ल‍िबरेशन आर्मी के सैनिकों पर कई इंसानी परीक्षण किए हैं कि उन्‍हें जैविक रूप से ज्‍यादा ताकतवर सैनिक बनाया जा सकेगा। शक्ति की भूख को पूरा करने के ल‍िए चीन की कोई नैतिक सीमा नहीं है।’ इसमें उन्‍होंने कहा था कि चीन जीन एडिटिंग तकनीक का इस्‍तेमाल करके इंसान (संभवत: सैनिक) की क्षमता को काफी बढ़ाने में काफी रुचि रखता है।

इस तकनीक का इस्‍तेमाल जेनेटिक बीमारियों के इलाज और पेड़ों में बदलाव के लिए किया जाता है। वहीं पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक का इस्‍तेमाल अनैतिक है जो स्‍वस्‍थ लोगों की क्षमता को बढ़ाने के लिए जीन्‍स में बदलाव करने का प्रयास करता है।

अमेरिकी दूतावास पर चीन-क्‍यूबा में दागी गई थी ‘लेजर गन’? जांच उठे गंभीर सवाल

चीन के एक प्रमुख जनरल के वर्ष 2017 में दिए बयान के हवाले से कहा कि आधुनिक बॉयो तकनीक और उसका सूचना, नैनो तकनीक आदि से एकीकरण करने का हथियारों, उपकरणों, लड़ाई के क्षेत्र और तरीकों तथा सैन्‍य सिद्धांतों पर क्रांतिकारी प्रभाव आएगा। वहीं कुछ अन्‍य विशेषज्ञों का कहना है कि उन्‍हें युद्ध क्षेत्र में इसके इस्‍तेमाल से कहीं ज्‍यादा चिंता इंसान के जीन्‍स में बदलाव के दुष्‍प्रभाव को लेकर है।

Exit mobile version