कोरोना संक्रमण का कहर चरम पर है। एक दिन में 3 लाख 60 हजार 960 लोगों का संक्रमित होना और तीन हजार से अधिक लोगों का मरना मायने रखता है। यह सच है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने तर्इं महामारी से निपटने का यथासंभव प्रयास कर रही हैं और अब तो सेना ने भी राहत और बचाव का मोर्चा संभाल लिया है।
ऐसे में सरकार को कठघरे में खड़ा करने की बजाय खुद सतर्क रहनेकी जरूरत है। सतर्क और सजग रह कर ही हम अपना, अपने परिवार समाज, प्रदेश और देश का भला कर सकते हैं। सुरक्षा चक्र टूटने का मतलब है संक्रमण का बढ़ना और यह स्थिति समस्त मानवता के खिलाफ है। स्वस्पूर्त चेतना जागृत करके ही हम इस संक्रामक बीमारी से बच सकते हैं। गत वर्ष जब कोरोना महामारी की पहली लहर से अमरीका रूबरू था तब चिकित्सकों के एक समूह ने यह दावा कर दिया कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन नामक मलेरिया रोधी दवा कोरोना की रोकथाम में मददगार है। इसके बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टंप ने भी ट्वीट कर दिया कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा कोरोना के खिलाफ गेम चेंजर साबित हो सकती है।
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अमरीकी राष्ट्रपति के इस ट्वीट के बाद भारत में यह दवा रातोंरात मेडिकल स्टोर से गायब हो गयी। जो दवा दो दिन पहले तक मेडिकल स्टोर पर पूछी नहीं जाती थी वह अत्यधिक प्रचार के कारण गायब हो गयी। अचानक दुनिया भर से यह दवा मांगी जाने लगी जिसके कारण भारत सरकार को इस दवा का बड़े पैमाने पर उत्पादन बढ़ाना पड़ा ताकि विदेशों से आ रही मांग को पूरा किया जा सके। बाद में वैज्ञानिक अध्ययन में पता चला कि कोरोना की रोकथाम, संक्रमण को कम करने या संक्रमण की अवधि घटाने में इस दवा का कोई योगदान नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मलेरिया रोधी दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के साथ चार अन्य दवाओं रेमडेसिविर, आॅटो इम्यून ड्रग्स इंटरफेरॉन और एचआईवी में दी जाने वाली दवा लोपिनाविर और रिटोनाविर पर भी वैज्ञानिक अध्ययन किया। डब्ल्यूएचओ की निगरानी में वैज्ञानिकों ने 30 देशों के 500 अस्पतालों में 11266 मरीजों पर रेमडेसिविर, इंटरफेरॉन, लोपिनाविर, रिटोनाविर और हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन का अध्ययन किया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया कि इन दवाओं से कोरोना के मरीजों को कोई फायदा नहीं मिला। इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि रेमडेसिविर दवा कोरोना के इलाज में प्रभावी नहीं है। इससे न तो संक्रमण कम होता है और न ही संक्रमण की अवधि। ऐसे में अचानक इस दवा को लेकर जिस तरह की मारामारी देखने को मिल रही है वह चौंकाने वाली है। देश के तमाम बड़े डाक्टर भी यह कह चुके हैं रेमडेसिविर कोरोना में रामबाण दवा नहीं है। इससे न तो मौत रोकी जा सकती है और न ही संक्रमण। इतना सब होने के बाद भी अगर रेमडेसिविर की मांग इतनी अधिक है और लोग वैध-अवैध तरीकों से यह दवा खरीदने के लिए हजारों रुपये देने के लिए तैयार हैं तो इसके पीछे कहीं न कहीं बहुत बड़ा दुष्प्रचार और जान-बूझकर इसके इस्मेमाल को बढ़ावा देने की साजिश है। जब दो-चार सौ रुपये की दवा पन्द्रह-बीस हजार में लोग खरीदने के लिए तैयार रहेंगे तो इसको बढ़ावा देने वाले और कालाबाजारी करने वाले भी पैदा हो जायेंगे। यही सब हो भी रहा है।
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निहित स्वार्थी तत्व भयानक संकट और दवाओं की किल्लत को भुनाने में लगे हैं। कहीं रेमडेसिविर के नाम पर नकली दवा बिक रही है, कहीं कोई रेमडेसिविर की दवा मंगाकर डिस्टिल वाटर लगा देता है। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों से मिलीभगत करके मुनाफाखोरी और कालाबाजारी करने वाले कोरोना मरीजों को रेमडेसिविर के नाम पर लूट रहे हैं। कई बार दवा के नाम पर नकली दवा, डिस्टिल वाटर या कोई और दवा दे दी जाती है और मरीजों की जान पर बन आती है। यह स्थितियां चिंताजनक हैं। सरकार को रेमडेसिविर की सार्वजनिक बिक्री के साथ इसकी जरूरत की भी जांच करनी चाहिए।
संकट में जो भी कालाबाजारी या अनुचित मुनाफाखोरी का दोषी पाया जाये उस पर कठोर कारवाई होनी चाहिए। यह अच्छी बात है कि अदार पूनावाला ने कोविशील्ड वैकसीन की कीमत सौ रुपये हटाई है लेकिन दाम को लेकर जो विसंगति है, उसे उचित तो नहीं ही ठहराया जा सकता। अच्छा होता कि वैक्सीन में मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति से बचा जाता। यूं तो सेवा का दंभ कंपनियां भरती रहती हैं लेकिन लाभ का एक भी मौका अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहतीं। सरकार अगर अदार पूनावाला को वाईश्रेणी की सुरक्षा दे रही है तो इस देश के प्रति उनका अपना भी कुछ कर्तव्य तो होना ही चाहिए।