उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के बहुचर्चित खनन कारोबारी और बसपा के पूर्व एमएलसी इकबाल उर्फ बाला के ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने करीब 18 घंटों तक छापेमारी के काज को अंजाम दिया।
इकबाल के खिलाफ सीबीआई और ईडी पहले से जांच कर रही है। दोनो एजेंसियों की टीमे इकबाल के जिले के थाना एवं कस्बा मिर्जापुर स्थित आवास और अन्य ठिकानों के साथ-साथ उसकी विभिन्न फर्मों में हिस्सेदार रहे सौरभ मुकुंद के यहां छापेमारी कर चुके है।
हाथरस मामले में इकबाल पर आरोप लगे थे कि उनकी ओर से भीम आर्मी जैसे संगठनों को आर्थिक मदद मिल रही है। ईडी के दो दल बुधवार को सहारनपुर पहुंचे जिनमें एक दल मिर्जापुर में इकबाल का पैतृक मकान और ग्लोकल यूनिवर्सिटी की ओर निकल गया जबकि दूसरे दल ने इकबाल की फर्म में पार्टनर सौरभ मुकुंद के सहारनपुर नगर में साउथ सिटी स्थित आवास पर छापेमारी की।
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गुरूवार तड़के तक चली छापेमारी में स्थानीय अधिकारियों और मीडिया दोनो को दूर रखा गया। हालांकि एसएसपी डा. एस चनप्पा उसी दौरान मिर्जापुर थाने पर गए थे लेकिन उनका छापेमारी से कोई लेना-देना नहीं था। वह इसी थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मां शाकुंबरी देवी मंदिर और वहां लगने वाले मेले आदि की व्यवस्था के संबंध में गए थे।
विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक इकबाल को ईडी की छापेमारी की भनक मिल गयी थी जिसके चलते वह परिवार समेत अपने आवास पर नहीं मिले। सूत्रों के मुताबिक इकबाल या उसके परिवार के सदस्यों ने छापेमारी के दौरान ईडी को कोई सहयोग नहीं किया। ईडी की टीम को अलमारियों और तिजौरियों पर लगे ताले तोड़ने पडे या फिर मिस्त्रियों के जरिए ताली बनवाकर खुलवाने पडे। ईडी दल को काफी महत्वपूर्ण दस्तावेज हाथ लगने की सूचनाएं है। तिजौरी में भारी मात्रा में जेवरात मिले है।
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इकबाल पिछले 20 साल से भी ज्यादा समय से सहारनपुर एवं पूरे उत्तर प्रदेश में खनन कारोबारी के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। मायावती और मुलायम सिंह एवं अखिलेश यादव के शासन में सहारनपुर जिले में इकबाल डीएम, एसएसपी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर मनमाफिक अफसरों की नियुक्तियां कराता था और मीडिया को भी नीचे से लेकर मैनेज रखता था। मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में जब खनन मंत्रालय शिवपाल यादव के पास था तो तत्कालीन जिलाधिकारी निवेदिता शुक्ला वर्मा को इसलिए जिलाधिकारी का पद छोडना पडा था क्योंकि वह नियम और कायदे-कानून की अनदेखी कर सत्ता के इशारे पर खनन पट्टे इकबाल के लोगों को देने को तैयार नहीं हुई थी।
ढाई दशक के दौरान जिस डीएम-एसएसपी, डीआईजी, कमिश्नर ने इकबाल के इशारों पर चलने में हील हुज्जत दिखाई। उसका फौरन तबादला हो गया। वर्ष 2017 में स्थिति तब बदली जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की स्पष्ट बहुमत वाली सरकार बनी। इस दौरान अफसरों का रूख जरूर निष्पक्ष और ईमानदारी वाला दिखाई दिया लेकिन सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियां इकबाल और उसकी बेनामी फर्मों के हिस्सेदारों, परिजनों का कुछ नहीं बिगाड पाई।
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मौजूदा डीआईजी उपेंद्र अग्रवाल ने बतौर एसएसपी इकबाल के एक बेटे को गिरफ्तार करने का साहस दिखाकर मिसाल पेश की थी। वरना कोई भी अफसर उन पर हाथ डालने से परहेज करता है।
इकबाल और उसकी फर्मों के द्वारा मायावती के शासन काल में वर्ष 2010 में सस्ते दामों पर बिकी चीनी मिले खरीदने की रिर्पोट दर्ज है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इकबाल के खिलाफ कई एजेंसियों ने जांच की और अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के मुकदमे दर्ज किए।