बिलासपुर। भले ही देश आज 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा हो, लेकिन मंडी और बिलासपुर की सीमा पर करीब आठ परिवार ऐसे हैं, जो पिछले चार साल से गुफा में रह रहे हैं। पुरुष ही नहीं महिला और बच्चे भी आदिवासियों की तरह जीवन जी रहे हैं। सरकार और जिला प्रशासन इससे अनभिज्ञ भी नहीं है। केंद्र और प्रदेश सरकार की भी भूमिहीनों और बेघरों के लिए कई योजनाएं हैं। बावजूद इसके इन्हें गुफा से निकालने के कोई प्रयास नहीं हुए।
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मकान और जमीन होने के बावजूद आज यह बेघर हैं, क्योंकि कोलबांध परियोजना की झील निर्मित होने से इनके मकान और जमीन भू-स्खलन में तबाह हो गए। पिछले चार सालों में दो सरकारों के सामने यह मामला उठा, लेकिन इनकी समस्या का हल नहीं हुआ। साल 2014-15 में कोलबांध झील बनी थी। उसके बाद साल 2016 में जिला मंडी की धन्यारा पंचायत के कांडी गंाव में भू-स्खलन हुआ और उक्त 8 परिवार इस आपदा में बेघर हो गए।
तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने पीड़ित परिवारों को फौरी राहत के नाम पर 50-50 हजार रुपये प्रशासन से दिलवाकर औपचारिकता पूरी की, लेकिन उसके बाद इनकी सुध नहीं ली। प्रशासन ने बीच में इनमें से कुछ लोगों का धन्यारा स्कूल भवन में रहने का अस्थायी इंतजाम किया, लेकिन इन्हें स्थायी आवास नहीं दिला सके। गुफा में ही ये खाना बनाते हैं, वहीं सोते हैं।
दूसरी ओर इसी पंचायत के गांव समौल, कांडी, मैंदला, रोपडू़, स्वैड़ और बड़ीछ गांव के करीब 40 परिवार झील बनने के बाद सुरक्षित जगह पलायन कर अपना परिवार पाल रहे हैं। पूर्व कांग्रेस विधायक सोहन लाल ठाकुर ने बताया कि भूस्खलन कांग्रेस सरकार के समय में हुआ था। मैंने खुद एसडीएम को मौके पर भेज कर लोगों को सहायता मुहैया करवाई थी। वह इस मामले को सरकार के समक्ष उठाएंगे।
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साल 2018 में सुंदरनगर प्रशासन और एनटीपीसी ने एक स्पॉट विजिट किया था। विजिट के बाद उन्होंने उपायुक्त मंडी को रिपोर्ट दी थी कि इसकी वैज्ञानिक जांच करवाई जाएगी कि भू-स्खलन के क्या कारण हैं। डेढ़ साल से उस रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं हुई है। प्रभावितों में से एक परिवार हाईकोर्ट चला गया था, जिसके बाद प्रशासन ने इसमें हस्तक्षेप करना छोड़ दिया।-राहुल चौहान, एसडीएम, सुंदरनगर
मामला कोर्ट में है। स्टेट ज्योलॉजिकल विंग की टीम हाईकोर्ट को रिपोर्ट सौंपेगी। उसके बाद एनटीपीसी प्रबंधन को हाईकोर्ट से जो निर्देश होंगे, उन पर कार्य किया जाएगा।