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सस्ती दवाइयों की उपलब्धता पर जोर 

Writer D by Writer D
08/03/2021
in Main Slider, ख़ास खबर, नई दिल्ली, राजनीति, राष्ट्रीय
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Jan Aushadhi Center

Jan Aushadhi Center

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सियाराम पांडे ‘शांत’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर के शिलांग में जहां 7500 वें जन औषधि केंद्र का जहां उद्घाटन किया, वहीं देशवासियों को सस्ता और सुलभ इलाज उपलब्ध कराने का दावा भी किया। इस बावत उन्होंने केंद्र सरकार की नीतियांे और कार्यक्रमों पर रोशनी डाली तो जन औषधि केंद्र चलाने वालों से संवाद भी किया। उनकी परेशानियां भी जानीं। उनके पूर्व के और अब के अनुभवों को भी जाना। देश के मुखिया से इसी तरह के व्यवहार की अपेक्षा की जानी चाहिए।

कहना न होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में कुछ नया करने के लिए जाने जाते हैं। एक से सात मार्च तक देश भर में जन औषधि सप्ताह मनाया जा रहा था। इस सप्ताह के आखिरी दिन प्रधानमंत्री द्वारा 7500 वें जन औषधि केंद्र का राष्ट्र को समर्पण और संबोधन तथा इसी बीच लाभार्थियों से संवाद यह बताता है कि प्रधानमंत्री जन स्वास्थ्य को लेकर न केन गंभीर हैं अपितु वे इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। उन्होंने  बीमारियों से बचने को लेकर स्वच्छता पर ध्यान दंने, उत्तम आहारचर्या अपनाने  तथा योग  करने की भी देशवासियों को नसीहत दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पता है कि असावधानी तमाम शारीरिक और मानसिक व्याधियों की जननी है। 2014 में केंद्र में सरकार बनने के दिन से वे योग, स्वच्छता और आत्मनिर्भरता की वकालत कर रहे हैं। वे लोगों को रोगमुक्त करने के लिए, उनकी परेशानियों के समाधान के लिए हर वह छोटे-बड़े तौर-तरीके अपना रहे हैं, जिस पर सोचना तक मुनासिब नहीं समझा गया था। वे समस्या की तह तक जाते हैं और उसका समाधान करना चाहते हैं।

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उनकी कोशिश है सबका साथ, सबका विकास लेकिन इसके लिए सबका विश्वास होना बहुत जरूरी है। प्रधानमंत्री इन तीनों ही मोर्चों पर एक साथ काम कर रहे हैं। लोगों को  सस्ता इलाज मिले, इसके लिए जरूरी है कि हर सरकारी अस्पताल में दवाओं की उपलब्धता हो। अच्छे विशेषज्ञ चिकित्सक हों। हर तरह के चिकित्सा जांच उपकरण हों, जिससे कि मरीजों को बाहर जाकर अपनी जांच न करानी पड़े। बाहर मेडिकल स्टोर पर भी दवाएं सस्ती हों। इस जरूरत को यह देश लंबे अरसे से महसूस कर रहा था। प्रधानमंत्री ने वर्ष 2014 में जन औषधि केंद्र की स्थापना और उसमें सस्ती जेनेरिक औषधियों की उपलब्धता सुनिश्चित कर आ आदमी के जेब पर पड़ने वाले बेइंतिहा स्वास्थ्य खर्च में कटौती करने का काम किया था। इससे जहां कुछ लोगों को रोजगार मिला, वहीं गरीबों को इलाज में भी सहूलियत मिली। प्रधानमंत्री का यह दावा  इस देश के आमजन का भरोसा मजबूत करता है कि केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य का बजट बढ़ा दिया है। हर प्रांत के हर जिले में मेडिकल काॅलेज खोले जा रहे हैं।  एमबीबीएस क की 30 हजार और पीजी के 24 हजार सीटें बढ़ा दी गई हैं। देश में  1.5 लाख हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर खोले जा रहे हैं। इन सबका लक्ष्य केवल एक ही है कि लोग जहां कहीं भी रह रहे हैं, उसके आस-पास ही स्वास्थ्य सुविधाएं हस्तगत कर सकें।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दावे में दम हे कि जन औषधि केंद्र और आयुष्मान भारत योजना से गरीबों और मध्यम वर्ग को  हर साल पचास हजार करोड़ रुपए की बचत हो रही है। आयुष्मान योजना से 50 करोड़  लोग लाभान्वित हुए हैं। खानपान में पोषक तत्वों का भंडार कहे जाने वाले मोटे अनाजों को शामिल करने का  उनका सुझाव भी काबिलेगौर है।

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प्रधानमंत्री कोई नई बात नहीं कह रहे हैं। भारतीय संस्कृति, सभ्यता, रीति-नति और जीवन शैली  को अपना कर ही यह देश स्वस्थ और सक्षम रहा है। आज हम भारतीय संस्कृति, सभ्यता, रहन-सहन से कट गए हैं। हमारी समस्याओं की मूल वजह भी यही है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि देश में मोटे अनाजों की समृद्ध परंपरा रही  है। पहले  कहा जाता था कि मोटे अनाज केवल गरीबों के उपयोग के लिए हैं लेकिन अब हालात बदले हैं। अब पांच सितारा होटलों में भी इनकी मांग की  जा रही है। बीमारी कोई भी हो, वह देश के  सामाजिक आर्थिक ढांचे को प्रभावित करती है।  यही वजह है कि केंद्र सरकार ने अमीर-गरीब सभी के लिए बिना किसी भेदभाव के उपचार की व्यवस्था की है।  इस सरकार का मानना है कि लोग जितने स्वस्थ होंगे,  देश उतना ही समर्थ और समृद्ध होगा।

दुनिया में योग का लोहा मनवाने के बाद नरेंद्र मोदी का प्रयास यहां की प्राकृतिक और परंपरागत औषधियों को महत्व देने और दिलाने की है। इसमें संदेह नहीं कि  मेक इन इंडिया  कार्यक्रम के तहत दवा और उपकरणों की मांग बढ़ रही है । इनका उत्पादन भी बढ़ा है और लोगों को रोजगार भी मिल रहे हैं। प्रधानमंत्री  ने कहा है कि देश में अबतक ,7500 केंद्र खुल गए हैं और सरकार 10000 केंद्र का लक्ष्य जल्द पूरा करना चाहती है। उन्होंने घोषणा की कि जल्दी ही जन औषधि केंद्र पर 75 आयुष दवा भी मिलेगी। देश में 1100 जन औषधि केंद्र का संचालन महिलाएं करती हैं। जन औषधि केंद्र खुलने से लोगों को इस साल  सात मार्च तक  3600 करोड़ रुपए की बचत हो  चुकी है। वर्ष 2014 में जन औषधि केंद्र का कारोबार 7.29 करोड़ रुपए का था जो अब बढ़ कर 6000 करोड़ रुपए वार्षिक हो गया है। इन केन्द्रों पर 1449 तरह की दवाएं और उपकरण मिल रहे हैं। लोगों को पैसों की कमी की वजह से दवा खरीदने में दिक्कत न आए, इसलिए जन औषधि योजना की शुरुआत की गई थी। जनऔषधि केंद्र से सैनेटरी नैपकिन जैसी चीजें आसानी से मिल रही हैं। यह महिलाओं

को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाना नहीं तो और क्या है। लाभार्थियों से बातचीत के बाद पीएम मोदी ने जनऔषधि परियोजना से जुड़े लोगों के उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित भी किया।मोदी ने कहा कि भारत दुनिया की फार्मेसी के रूप में खुद को साबित कर चुका है। हमने वैक्सीन बनाई। मेड इन इंडिया वैक्सीन सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया के लिए भी है। हम दुनिया में सबसे सस्ती वैक्सीन दे रहे हैं। प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन के दाम महज 250 रुपए हैं। जन स्वास्थ्य केंद्रों पर के्रद्रों पर दवाएं बाजार मूल्य से 50 से 90 प्रतिशत सस्ती मिलती हैं। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि हर मेडिकल स्टोर जेनेरिक औषधियों की बिक्री करें लेकिन औषधियों में मुनाफे का खेल उनकी सोच के आड़े आ जाता है।

यह अच्छी बात है कि अब लोगों का जेनेरिक दवाओं पर विश्वास बढ़ने लगा है लेकिन अभी भी तमाम देशवासी इस राय के हैं कि जेनेरिक औषधियां अधोमानक होती है। कम प्रभावकारी होती हैं लेकिन उन्हें कौन समझाए कि ब्रांडेड कंपनियों के नाम पर देश में नकली दवाओं का कारोबार किस तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है? कुछ साल पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बात की चिंता जाहिर की थी कि भारत समेत कम और मध्यम आय वाले देशों में नकली दवाओं का कारोबार 30 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। भारतीय  औषधि उत्पादन उद्योग सालाना लगभग 55 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक के फार्मास्यूटिकल उत्पादों का निर्यात करता है।  भारत की दस प्रमुख दवा उतदक कंपनियों का कारोबार ही अरबों-खरबों का है। दरअसल दवा उत्पादक कंपनियों को जनता के स्वास्थ्य की नहीं, अपने लाभ की चिंता है।

इसलिए वे जेनेरिक औषधियों की बिक्री नहीं चाहते। अगर वे ऐसा नहीं कर सकते तो उन्हें अपनी औषधियों की कीमत कम करनी चाहिए, यही लोकहित का तकाजा भी है। यह देश भी आपका ही है। कोरोना जैसी बीमारी से प्रभावित एक व्यक्ति भी पूरे देश को बीमार कर सकता है। इसलिए रोगमुक्त भारत की कल्पना की जानी चाहिए। देश स्वस्थ रहेगा तो  कमाने के और रास्ते निकल आएंगे लेकिन अगर देश ही बीमार हो गया तो ‘जाई रही पाई बिनु पाई’ वाले हालात हो जाएंगे। जो बहुत मुफीद नहीं होगा। इसलिए सबके भले में अपना भला तलाशने में ही वास्तविक भलाई है। सस्ते और सुलभ इलाज पर दवा कंपनियों के लालच की शनिदृष्टि किसी भी लिहाज से उचित नहीं है।

Tags: Ayushman Bharat schemeJan Aushadhi Center
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