प्रयागराज। लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित की जा रही पीसीएस और आरओ/एआरओ प्रारंभिक परीक्षा में मानकीकरण (Normalization) को लेकर शिक्षाविदों और विषय के विशेषज्ञों ने अपनी बात कही है। आंदोलित छात्रों की तरफ से परीक्षा में प्रकिया को लेकर दिए जा रहे बयानों पर विशेषज्ञों का कहना है कि प्रशासनिक परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतियोगी छात्रों से उम्मीद की जाती है कि वह प्रक्रिया को पहले समझेंगे। छात्रों को मानकीकरण की प्रक्रिया की वास्तविक स्थिति की जानकारी लेने के उपरांत ही कोई निर्णय लेना चाहिए। वहीं, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र भी इस विरोध को सियासी दलों की चाल बता रहे हैं।
कई राज्यों में अमल में लाई जा रही प्रणाली, विरोध समझ से परे
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी का कहना है कि जो छात्र स्वयं प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उन्हें चिंतन करना चाहिए कि इस तरह सड़कों में उतरकर अव्यवस्था उत्पन्न करने का आचरण उनसे अपेक्षित व्यवहार से कैसे मेल खाता है। आंदोलित छात्रों को मानकीकरण (Normalization) की प्रक्रिया की वास्तविक स्थिति की जानकारी लेने के उपरांत ही कोई निर्णय लेना चाहिए। इधर मानकीकरण की प्रक्रिया पर भी विषय विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी है। शिक्षाविद और काउंसलर डॉक्टर अपूर्वा भार्गव का कहना है कि मानकीकरण की प्रक्रिया का विरोध अगर इस आधार पर कुछ आंदोलित छात्र कर रहे हैं कि इसमें उस विषय के अंतर्गत आने वाले विभिन्न सेक्शन में सरल और कठिन प्रश्नों के पूछे जाने से समान लाभ सबको नहीं मिलेगा तो यह उचित नहीं है। प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं में गुणात्मक सुधार की आवश्यकता हमेशा से रही है, ताकि इस सेवा के योग्य अभ्यर्थियों को इसमें स्थान मिल सके। मानकीकरण (Normalization) की प्रक्रिया भी इसी परीक्षा में गुणात्मक सुधार का एक प्रयास है। पहले से कई राज्यों में यह प्रणाली अमल में लाई जा रही है इस आधार पर भी इसे लागू करने का विरोध समझ से परे है।
मानकीकरण (Normalization) में छात्रों का ही फायदा
शिक्षाविद् और विशेषज्ञों के अतिरिक्त कई निजी शिक्षा संस्थान संचालित कर रहे लोगों का भी मानना है कि छात्रों को मानकीकरण (Normalization) की प्रक्रिया को समझना चाहिए। अनएकेडमी प्रयागराज के सेंटर हेड अमित त्रिपाठी ने भी पूरी प्रक्रिया का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया तो बहुत पहले लागू कर देनी चाहिए थी, क्योंकि इसमें काबिल छात्रों का ही फायदा है। नीट परीक्षा में भी इसे लागू किया गया था। यही नहीं, दूसरे राज्य भी कई परीक्षाओं में इसे शामिल कर चुके हैं और वहां इसका कोई विरोध भी नहीं हुआ। यहां इसका विरोध क्यों हो रहा है, ये समझना मुश्किल है। शासन तंत्र को इस प्रक्रिया के सकारात्मक पक्षों को प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्रों को समझाना चाहिए।
सियासी दलों की नीयत पर प्रतियोगी छात्रों की नाराजगी
इधर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र भी इस विरोध को तकनीकी विषय नहीं बल्कि कुछ सियासी दलों द्वारा अपनी सियासत को धार देने के लिए पूर्व नियोजित बता रहे हैं। यूपी के बलिया के रहने वाले प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी कर रहे अनुज सिंह का कहना है कि छात्रों की इस भीड़ में एक सियासी दल के नेता भी अपना सियासी मकसद लेकर कूद पड़े थे जिसकी वीडियो भी सोशल मीडिया में वायरल हो रही है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे देवेंद्र प्रताप का कहना है कि सियासी दल इसी फिराक में रहते हैं कि उन्हें जहां भी जन समुदाय एकत्र मिले उसे अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करे। यहां भी यही कोशिश हुई है।
आयोग ने भी अपनी बात छात्रों के सामने रखी
इधर लोक सेवा आयोग के सचिव अशोक कुमार का कहना है कि छात्रों की सुविधा और मांग पर ही शासन ने परीक्षा संबंधी नियमावली में बदलाव किया है। जब छात्रों ने आयोग के सामने प्रदर्शन कर यह मांग रखी थी कि निजी स्कूल-कॉलेजों को केंद्र न बनाया जाए और परीक्षा केंद्रों की दूरी अधिक न हो। तब उनकी मांगों पर ही राजकीय और एडेड कॉलेजों को केंद्र बनाया जा रहा है और दूरी दस किमी रखी गई है।
अभ्यर्थियों का हित सर्वोपरि, इसी भाव से हो रहा परीक्षा प्रणाली सुधार: आयोग
उनका यह भी कहना है कि मानकीकरण (Normalization) सामान्य प्रक्रिया है और अधिकांश परीक्षाओं में इसे किया जा रहा है। आयोग ने भी विशेषज्ञों से फॉर्मूले पर राय ली है। इसमें किसी तरह के भेदभाव की कोई गुंजाइश ही नहीं है।