Site icon 24 GhanteOnline | News in Hindi | Latest हिंदी न्यूज़

सर्वपितृ अमावस्या: पितरों को इस विधि से करें विदा, पूरे कुल की मिलेगा आशीर्वाद

Sarva Pitru Amavasya

ancestors

हिंदू पंचांग में पितृपक्ष का अंतिम दिन यानी सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) पितरों को विदाई देने का सबसे पावन अवसर माना गया है। पूरे पखवाड़े तर्पण और श्राद्ध करने के बाद इस दिन सभी पितरों को सामूहिक रूप से स्मरण और विसर्जन किया जाता है। इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन किए गए श्राद्ध और तर्पण से वे पितर भी संतुष्ट हो जाते हैं, जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो।

सुबह का संकल्प और स्नान

सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) की शुरुआत सूर्योदय से पहले स्नान से होती है। गंगाजल या किसी पवित्र नदी में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद संकल्प लें आज सर्वपितृ अमावस्या पर मैं अपने सभी पितरों को तर्पण और विसर्जन करता हूं। यही दिन उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय माना गया है।

पिंडदान और तर्पण की विधि

इस दिन तर्पण के लिए तिल, जल, पुष्प और चावल का उपयोग किया जाता है। कुशा के आसन पर बैठकर तीन बार पितरों का नाम और गोत्र उच्चारित करते हुए जल अर्पित करें। पके हुए चावल, तिल और घी से बने पिंड अर्पित करना अनिवार्य माना गया है। इससे पितरों की आत्मा तृप्त होकर विदा होती है।

ब्राह्मण भोजन और दान का महत्व

पितरों को विदाई देने की यह विधि तब पूर्ण मानी जाती है जब ब्राह्मण को भोजन कराया जाए। भोजन में खीर, पूड़ी, सब्जी और मौसमी फल ज़रूर अर्पित किए जाते हैं। ब्राह्मण को दक्षिणा देने के साथ ही गाय, कुत्तों, कौओं और जरूरतमंदों को अन्न देना भी अनिवार्य परंपरा है।

पितरों की विदाई का विशेष विधान

पूजा के अंत में घी का दीपक जलाकर पितरों से प्रार्थना करें हे पितृदेव, आप तृप्त होकर अपने लोक को पधारें और हमें आशीर्वाद दें इसके बाद जल में तिल अर्पित करके तीन बार विसर्जन करें। यही क्षण पितरों की औपचारिक विदाई का होता है।

इस दिन के नियम

– मांस, मदिरा और तमसिक भोजन से बचना चाहिए।
– घर में सात्विकता और शुद्धता बनाए रखें।
– किसी भी प्राणी को भोजन कराना पुण्यफल देता है।

मान्यता है कि सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) पर किया गया श्राद्ध, पूरे वर्ष का पितृ ऋण उतार देता है और कुल में सुख-समृद्धि लाता है। यही कारण है कि इस दिन को पितरों की सामूहिक विदाई का पर्व कहा जाता है।

Exit mobile version