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जन्माष्टमी का व्रत करने से पूरी होती हैं मनोकामनाएं

जन्माष्टमी

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धर्म डेस्क। कहा जाता है कि जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से व्यक्ति का जीवन सुखमय हो जाता है। वहीं, जनमाष्टमी का व्रत व्यक्ति को कई दुखों से मुक्त करता है। इससे पहले हम आपको जनमाष्टमी किस तारीख को है और इसका शुभ मुहूर्त क्या है, की जानकारी दे चुके हैं। इस लेख में हम आपको जनमाष्टमी के महत्व और इसके इतिहास की जानकारी दे रहे हैं। तो चलिए जानते हैं जन्माष्टमी का महत्व और इतिहास।

जन्माष्टमी का महत्व:

इस दिन लोग व्रत करते हैं और पूजापाठ करते हैं। माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से व्रत करने पर भक्तों की मनोकामना पूरी होती हैं। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर है अगर वो लोग इस दिन विशेष पूजा करते हैं तो उन्हें फल की प्राप्ति होती है। वहीं, इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति के साथ-साथ दीर्घायु और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जनमाष्टमी के दिन बाल गोपाल को झूला झुलाने का महत्व भी बहुत ज्यादा है। इस लोग मंदिरों के साथ-साथ अपने घरों में भी बाल गोपाल को झूला-झूलाते हैं। कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति कृष्ण जी को झूला झुलाता है तो उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

जन्माष्टमी का इतिहास:

यह पर्व श्री कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन कृष्ण जी का श्रंगार किया जाता है। उन्हें झूला झुलाया जाता है। साथ ही व्रत भी किया जाता है। इस दिन कृष्ण जी की बाल गोपाल के रूप में विशेष पूजा की जाती है। जन्माष्टमी के दिन लोग पूरा दिन व्रत रखते हैं। साथ ही नवमी तिथि के शुरू होते ही यानी कृष्ण जन्म पर व्रत खोलते हैं। शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्री हरि विष्णु ने देवकी और वासुदेव के यहां श्री कृष्ण अवतार में जन्म लिया था। उनका जन्म अत्याचारी कंस का वध करने के लिए हुआ था। कंस द्वापर युग के राजा उग्रसेन का पुत्र था। उसने अपने पिता को जेल में डाल दिया था। वहीं, अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव जो यादव कुल का था, उसके साथ करा दिया था।

जब कंस की बहन देवकी विदा हो रही थी तब भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी की आठवी संतान के हाथों कंस का वध होगा। इस भविष्यवाणी से क्रोधित कंस ने देवकी और वासुदेव को कारागृह में डाल दिया। कंस उन दोनों को मार देने चाहता था लेकिन वासुदेव ने उससे आग्रह किया कि जब भी हमारी संतान होगी तो हम उसे तुम्हें सौंप देंगे। इसके बाद एक-एक कर कंस ने देवकी के 6 पुत्रों को मार दिया। फिर देवकी ने एक कन्या को जन्म दिया। जैसे ही उस कन्या को कंस ने अपने हाथ में लिया वो आकाश में उड़ गई। उस कन्या ने कहा कि हे अत्याचारी कंस तूझे मारने वाले का जन्म हो चुका है और वो गोकुल पहुंच गया है। यह सुनकर कंस बेहद हैरान रह गया। उसने कृष्ण जी को मारने की कई कोशिशें की लेकिन सभी व्यर्थ गईं। अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने ही कंसा का वध किया।

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