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लखनऊ के विकास को मिलेगी रफ्तार, नगर आयुक्त और महापौर के बढ़े वित्तीय अधिकार

nagar nigam

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लखनऊ। राजधानी को विकास को नई रफ्तार देने के लिए शासन ने नगर निगम (Nagar Nigam) के अधिकारियों के वित्तीय अधिकारों को बढ़ाने के प्रस्ताव पर हरी झंडी दे दी है। अब नगर आयुक्त 10 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये तक के कार्यों को सीधे मंजूरी दे सकेंगे, जबकि महापौर का अधिकार 15 लाख से बढ़ाकर पांच करोड़ रुपये कर दिया जाएगा।

इस फैसले से न केवल विकास कार्यों में तेजी आएगी, बल्कि मैनुअल टेंडरों में होने वाली धांधली पर भी अंकुश लगेगा और महापौर की मनमानी पर रोक लगेगी। वर्तमान में नगर आयुक्त केवल 10 लाख रुपये तक के कार्यों को मंजूरी दे पाते हैं। इससे अधिक राशि के प्रस्ताव कार्यकारिणी (20 लाख तक) और सदन (30 लाख तक) में जाते हैं। 30 लाख से ऊपर के कार्यों के लिए शासन की मंजूरी जरूरी होती है।

मैनुअल टेंडर जारी किए जाते हैं

इस सीमित अधिकार के कारण फाइलें महापौर, पार्षदों और अधिकारियों के बीच टकराव में अटक जाती हैं। कार्यकारिणी और सदन की बैठकें देरी से होने पर छोटे-मोटे कार्य भी लंबित रहते हैं। जानकारों के अनुसार, कम अधिकारों की वजह से विकास कार्यों को जानबूझकर टुकड़ों में बांटकर मैनुअल टेंडर जारी किए जाते हैं, ताकि वे 10 लाख की सीमा में रहें और ई-टेंडरिंग से बच सकें।

हर साल करीब 250 करोड़ रुपये के कार्य इसी तरह मैनुअल टेंडर से कराए जाते हैं, जहां आगणन दर पर ही ठेके मिलते हैं। वहीं, ई-टेंडरिंग से वही कार्य 15-20% कम लागत पर पूरे होते हैं। पिछले दो वर्षों में ई-टेंडरिंग से लगभग 50 करोड़ रुपये की बचत हुई, जिससे अतिरिक्त विकास कार्य संभव हुए। करीब 20 दिन पहले नगर निगम (Nagar Nigam) कार्यकारिणी की बैठक में मैनुअल टेंडरों को बढ़ावा देने वाला प्रस्ताव पास किया गया था।

नए अधिकारों से पारदर्शिता बढ़ेगी

इसका कारण यह था कि महापौर और पार्षदों के कोटे को छोड़कर अन्य कार्य ई-टेंडरिंग से हो रहे थे, जिससे ‘सेटिंग’ के जरिए ठेके दिलाने वालों का धंधा ठप हो गया। लेकिन अब अधिकार बढ़ने से मैनुअल टेंडरों पर स्वत: रोक लग जाएगी। शासनादेश में नगर निगम निधि से कराए जाने वाले कार्यों के लिए ई-टेंडरिंग अनिवार्य है, लेकिन सीमित अधिकारों का फायदा उठाकर इसका उल्लंघन हो रहा था। नए अधिकारों से पारदर्शिता बढ़ेगी और विकास कार्यों की लागत में भी कमी आएगी।

बदलाव की प्रमुख वजहें

– महापौर और नगर आयुक्त के बीच टकराव
– फाइलें सहमति न मिलने पर अटक जाती हैं।
– बैठकों में देरी, कार्यकारिणी और सदन की बैठकें लेट होने से 30 लाख तक के कार्य प्रभावित होते हैं।
– ई-टेंडरिंग का अपूर्ण क्रियान्वयन: शासनादेश के बावजूद मैनुअल टेंडरों का बोलबाला।
– महंगाई का असर: विकास कार्यों की लागत बढ़ने से छोटे अधिकार पर्याप्त नहीं।
– मनमानी पर अंकुश: महापौर की एकतरफा निर्णयों पर लगाम लगेगी।
– नई व्यवस्था: अधिकारों का नया पैमाना पद

वर्तमान अधिकार (रुपये में), प्रस्तावित अधिकार (रुपये में), नगर आयुक्त पहले 10 लाख और अब 1 करोड़। महापौर पहले 15 लाख अब 5 करोड़। कार्यकारिणी 20 लाख तक और सदन 30 लाख बढ़ाया जाएगा।

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