रायबरेली जिले के सलोन क्षेत्र में एक परिवार को धर्मान्धता का शिकार होना पड़ा।इस परिवार का अपराध बस इतना था कि उसने हिन्दू धर्म क़बूल कर लिया था। यह बात उसके पूर्व धर्म के लोगों को पच नहीं पा रही थी। उन्होंने सोते समय उनके घर को आग के हवाले कर दिया।आग की आंच से जब गृहस्वामी की नींद टूटी तो उसने अपनी पत्नी और बच्चों को बचाने की कोशिश की।उसे घर से निकलता देख अराजकतत्वों ने उसके घर की कुंडी लगा दी।
युवक किसी तरह पिछले दरवाजे से निकलकर अपने परिवार की जान बचाई। इस आगजनी में पीड़ित परिवर तो बच गया लेकिन उसका घर पूरी तरह जलकर राख हो गया।इस मामले में प्रधान के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है।
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यह और बात है कि धर्म निरपेक्षता का राग अलापने वाले एक भी राजनीतिक दल ने इस घटना पर न तो दुख जताया है और न ही उस पर ऐतराज ज़ाहिर किया है। अगर इसी तरह की घटना किसी और काम के व्यक्ति या परिवार के साथ हुई होती तो क्या राजनीतिक दल इसी तरह की चुप्पी अख्तियार करते। अगर राजनीतिक दल सच को कहने की हिम्मत भी नही रखते तो फिर उन्हें अन्य संवेदनशील मामलों में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। हिंदुओं पर आखिर कब तक अत्याचार होते रहेंगे।
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हिन्दू समाज कब तक राजनीतिक दलों की उपेक्षा का दंश झेलता रहेगा। धर्मांतरण व्यक्ति बेहद मजबूरी में करता है। नीतिभी कहती है कि स्व धर्मे निधनं श्रेयः। अर्थात अपने धर्म में मरना ही श्रेयस्कर होता है। धर्म परिरावर्तन और स्थान परिवर्तन विवशतावश ही किया जाता है। जो पहले से ही विवश हो,दुखी हो,उस पर इस त्तरह की अमानुषिक ज्यादती न तो न्यायसंगत है और न ही तर्कसंगत।इस अमानवीय घटना की जितनी भी असलोचना की जाए,कम है।
जिस तरह से बजरंग दल और अन्य हिन्दू संगठनों ने पीड़ित परिवार का आंसू पोंछने का प्रयास किया है कि हिन्दू वोट सभी को चाहिए लेकिन हिंदुओं की हितैषी केवल भाजपा ही है। एक ओर केन्दित और प्रदेश सरकार जहां सभी को घर देने के लिए अभियान चला रही है,वहीं कुछ लोगों की हरकत से एक परिवार पूरी तरह बेघर हो गया।वह परिवार बच तो गया है लेकिन आतताइयों की बुरी नजर से कब तक सुरक्षित रह पाएगा,यह कहना बेहद मुश्किल है। धर्मान्तरण को उव्हित नहीं ठहराया जा सकता लेकिन व्यक्ति के सांविधिक विवेकको चुनौती भी तो नहीं दी जा सकती।
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केंद्र और प्रदेश सरकार को तो इस मामले का संज्ञान तो लेना ही चाहिए।सर्वोच्च न्यायालय को भी इस मामले में गंभीरता से विचार करना चाहिए। यही वक्त के तकाजा भी है।इस तरह के आचरण करने वालों केखिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जिस्ड फिर कोई इस तरह की लोमहर्षक घटनाओं का अंजाम न दे सके। ऐसा करने से पूर्व उसे सौ बार सोचने के लिए बाध्य होना पड़े। जबरन और मिथ्या संभाषण कर हिन्दू युवतियों को फंसाने वाले लोगो पर सख्ती करने वाला कानून क्या पास हुआ,इस पर देश भर में राजनीतिक चिल्ल पों आरम्भ हो गई थी लेकिन इस भयावह घटना पर अगर राजनीतिक दलों की बकार नहीं फुट रही है तो इसके सीधा सा अर्थ यही ही कि हिन्दू उनके लिए बस वोट का जरिया है, इससे अधिक उनकी कोई अहमियत नहीं है। हिंदुओं को आज नहीँ तो कल यह विचार तो करना ही होगा कि कौन उनका अपना है और कौन पराया।