जल्द ही शारदीय नवरात्र शुरू होंगे। सनातन धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि के दौरान भक्त कठिन नियमों के साथ देवी मां की पूजा करते हैं। नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि अगर भक्त पूरी श्रद्धा और सच्चे मन से देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं, तो देवी मां की कृपा उन पर हमेशा बनी रहती है। ऐसे में यदि आप भी दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) का पाठ कर रहे हैं, तो इससे जुड़े कुछ नियमों का पालन जरूर करना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) पाठ के नियम
– नवरात्रि के पहले दिन से ही दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) का पाठ शुरू करना चाहिए।
– दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय लाल रंग के वस्त्र पहनें।
– पाठ करते समय किसी से भी बात न करें।
– पाठ करने से पहले और पाठ करते समय साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
– दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) के 13 अध्याय एक ही दिन में पूरे करने की परंपरा है। लेकिन अगर किसी कारण से पाठ पूरा नहीं हो पाया है, तो नौ दिन के अंदर इसे पूरा कर लें।
– पाठ करते समय ब्रह्मचर्य का पालन करें।
– पाठ करने में बिल्कुल भी जल्दबाजी न करें।
– दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) का पाठ लय में ही करना चाहिए।
– जो लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं, उन्हें भूलकर भी मांस, शराब, लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) पाठ का महत्व
दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) का पाठ मां दुर्गा को समर्पित है, जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार माँ ने देवताओं और संसार की रक्षा के लिए सबसे भयानक राक्षसों का वध किया था। दुर्गा सप्तशती की उत्पत्ति मार्कण्डेय पुराण से हुई है, जो 18 प्रमुख पुराणों में से एक है। इसकी रचना 400 से 600 ईस्वी के बीच हुई थी।
दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) को सबसे शक्तिशाली ग्रंथ माना गया है। दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय हैं, जिनमें कवच, अर्गला और कीलक शामिल हैं। दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) का पाठ करते समय ध्यान देना चाहिए कि उन्हें पहले कवच, अर्गला और कीलक से शुरुआत करनी चाहिए, इनके बिना यह पाठ अधूरा माना जाता है। इस पाठ को करने से समस्याओं से छुटकारा मिलता है। साथ ही घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।