केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के पूर्व एडिशनल डायरेक्टर उपेन बिश्वास ने बांग्लादेश के गोपालगंज जिले में स्थित अपने पैतृक घर की अमीरी की कहानियां सुनते हुए जीवन के बसंत गुजारे हैं। उपेन के पिता निवारण चंद्र बिश्वास के पास बड़े पैमाने पर खेती योग्य भूमि थी, दूध, घी और घर के डेयरी फॉर्म से दूध से बने कई उत्पाद होते थे। साथ ही परिवार के पास मौजूद बड़े तालाब से ताजी मछलियां पैदा होती थीं और जमींदारी का हिस्सा होने के चलते लोगों के मन में परिवार के प्रति सम्मान एक सदी से भी अधिक समय से बना हुआ है।
उस समय गोपालगंज जिले में निवारण बिश्वास की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शेख मुजीबुर रहमान (जो बाद में बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने) उपेन के घर आते थे, जब पूर्व एडिशनल डायरेक्टर छोटे थे और पांचवीं क्लास में पढ़ते थे। हालांकि 1964 में पूर्वी पाकिस्तान के दंगों के बाद निवारण की समृद्धि में तेजी से गिरावट आई। उस समय उपेन बिश्वास की उम्र 22 साल की थी, उनके पिता का दर्द – जो एक जाने माने व्यापारी थे – को पूर्वी बंगाल छोड़ना पड़ा। जो बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान बन गया था और फिर बांग्लादेश बना, आज भी उपेन बिश्वास को परेशान करता है।
ये सिर्फ उन परिवारों की कहानी नहीं है, जिनके पास भुला दी जा चुकी अपनी समृद्धि के बारे में बताने के लिए कहानियां हैं, बल्कि लोगों ने अपनी जिंदगी और आजीविका को बचाने के लिए उन्हें भुला दिया है। लाखों लोग सांप्रदायिक हिंसा से बचने के लिए अपना घर बार छोड़कर भागे और सीमा के दोनों तरफ लाखों लोगों की जान गई। पूर्वी पाकिस्तान में 1964 का दंगा (पूर्वी पाकिस्तान से बंगाली हिंदुओं को मिटाने वाला जातीय नरसंहार) जम्मू और कश्मीर स्थित हजरतबल दरगाह से पैगंबर के बाल चुराए जाने की कथित चोरी के बाद भड़का था।
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इसी साल उपेन बिश्वास ने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी और परिवारिक ट्रेंड के मुताबिक उनके पिता ने उनसे पहले कोलकाता और बाद में लंदन से कानून की पढ़ाई करने को कहा। लेकिन दुर्भाग्य रूप से दंगों के चलते उपेन बिश्वास को उनके पिता ने अपने घर से 15 मील दूर उलपुर गांव में एक सुरक्षित घर में छिपने को कहा। उलपुर बांग्लादेश के गोपालगंज जिले में ही स्थित है। उस समय गोपालगंज में मुस्लिम चरमपंथी कथित तौर पर अब्दुस साबुर रहमान की अगुवाई में हिंदुओं को चिन्हित करके निशाना बना रहे थे। यही अब्दुस साबुर रहमान बाद में पाकिस्तान का संचार मंत्री बना और मुस्लिम लीग का नेता भी रहा।
जनवरी 1964 में जब उपेन पटेल अपने घर लौटे तो उसी रात एक बड़ी मीटिंग हुई, जिसमें गोपालगंज जिले के लगभग आधे लोग मौजूद थे। बैठक में उपेन के पिता और बुजुर्ग ने फैसला दिया उपेन बिश्वास दंगों के साजिशकर्ताओं के खिलाफ मोर्च की अगुवाई करेंगे और अपनी उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता और लंदन नहीं जाएंगे। और पारिवारिक परंपरा के मुताबिक अपने गांव में ही रहेंगे। वहीं गांव के बुजुर्गों और महत्वपूर्ण लोगों ने उपेन से कहा कि अभी तक उनके पिता निवारण उलपुर गांव में अपने भाइयों और बहनों की रक्षा के लिए अगुवाई करते रहे हैं, और अब उपेन की बारी आ गई है कि वो समाज को बांटने वाली ताकतों के खिलाफ खड़े हों।
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गांव वालों ने उपेन से इस संदर्भ में आश्वासन मांगा और उपेन ने वादा किया किया वह उन्हें अकेला नहीं छोड़ेंगे और अपने लोगों की रक्षा के लिए गांव में ही रहेंगे। इसी बीच गोपालगंज में मुस्लिमों के धड़े ने निवारण को जानकारी दी कि दंगाई उपेन को मारने की साजिश कर रहे हैं। उपेन की मां सरोजिनी बिश्वास डर के मारे अपने पति के पैरों के गिर पड़ी और उनसे मिन्नतें करते हुए मांग कि उपेन को तुरंत कोलकाता भेज दिया जाए ताकि वे सुरक्षित रह सकें। उपेन को ना चाहते हुए भी अपना घर छोड़ना पड़ा और उनकी मां ने उनसे कहा कि ‘उपेन कभी वापस बांग्लादेश मत आना।’
इसके बाद से उपेन ने कभी भी अपने गांव में कदम नहीं रखा। विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ लड़ने का वादा करने के बावजूद अपने ग्रामीणों को धोखा देने का अपराध आज भी उपेन को सता रहा है। उपेन ने कहा, ‘मैंने अपनी सुरक्षा के लिए उन्हें धोखा दिया। मैं वादा नहीं निभा सका। मैं वापस जाना चाहता था। ये आज भी मुझे बहुत परेशान करता है।’
उस दुखद दिन को याद करते हुए उपेन ने कहा, ‘मेरे पिता मुझे कोलकाता नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे मेरी मां की गुजारिश को ठुकरा नहीं सके। मैंने खुलना के लिए एक नाव पकड़ी और फिर वहां से कोलकाता के लिए दूसरी नाव की सवारी की। मैंने अपना ‘F’ कैटेगिरी का वीजा सरेंडर कर दिया और उसके बाद फिर कभी वापस नहीं गया।’
उन्होंने कहा, ‘1970 में हमारे घर को दंगाइयों ने तोड़ दिया। मेरे पिता बाल-बाल बचे। हमारा नाविक मारा गया। हालात बिगड़ते गए और 1971 में युद्ध के समय मेरे पिता और मां कोलकाता आ गए। हम उत्तरी 24 परगना के माध्यमग्राम स्थित एक घर में ठहरे और यहां कोलकाता में भी मुजीबुर रहमान ने मेरे पिता से मुलाकात की और उनके निवेदन पर मेरे पिता एक बार फिर अपना बिजनेस संभालने के लिए वापस बांग्लादेश गए। हालांकि कुछ साल बाद ही मेरे पिता वापस आ गए क्योंकि वहां के हालात ठीक नहीं थे। बाद में दोनों ने कोलकाता में आखिरी सांस ली।’
1968 बैच के आईपीएस ऑफिसर उपेन बिश्वास उस समय सुर्खियों में आए जब उन्होंने 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाले में पहली बार बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों जगन्नाथ मिश्रा और लालू प्रसाद यादव की संलिप्तता का खुलासा किया। उपेन की ख्याति भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले अधिकारी की रही है और उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी भ्रष्टाचार को मिटाने में लगा दी।