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चार वन गांवों को मिला राजस्व ग्राम का दर्जा

बहराइच।  उत्तर प्रदेश सरकार ने बहराइच जिले के नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र के चार वन्य ग्रामों को  राजस्व ग्राम  घोषित किया है। लंबे समय से इन गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिये जाने के लिए आंदोलन चल रहा था।

बहराइच के जिलाधिकारी डॉक्टर दिनेश चंद्र सिंह ने कहा कि आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले ही शासन ने जिले के चार  वनटांगिया  गांवों को  राजस्व ग्राम  घोषित किया है। उन्होंने बताया कि मिहींपुरवा तहसील के चार गांवों भवानीपुर, टेढया, ढकिया एवं बिछिया को  राजस्व ग्राम  घोषित किया गया है।

उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में तीन जनवरी को संपन्न हुई बैठक में यह फैसला किया गया था, जिसका आदेश पत्र आठ जनवरी को मिला है। आदेश के पश्चात इन गांवों के लोगों को भी अब सरकार की सभी महत्वपूर्ण लाभार्थीपरक योजनाओं का लाभ मिल पाएगा।

बहराइच के लिए हुए इस फैसले की जानकारी शनिवार शाम जब जंगल के इन गांवों तक पहुंची, तो वहां जश्न शुरू हो गया। शनिवार शाम से शुरू हुई आतिशबाजी और एक दूसरे को गुलाल लगाने एवं मिष्ठान खिलाने का सिलसिला देर रात तक चलता रहा।

राजस्व ग्राम का दर्जा मिलने के बाद ढकिया गांव निवासी गीता प्रसाद ने रविवार को  कहा कि सरकार के इस फैसले से हमें बहुत खुशी मिली है। हमने तो होली- दीवाली एक साथ मनाई है। प्रसाद ने कहा कि चारों गांवों के करीब 225 परिवारों के ।,500 से अधिक सदस्यों को इस घोषणा का सीधा लाभ मिलेगा।

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वन ग्रामों को  राजस्व ग्राम  घोषित कराने के आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले संगठन देहात के अधिकारी आशू चतुर्वेदी ने कहा, यह 1918 के आसपास की बात है, जब रेल पटरियां बिछाने में लकड़ियां लगाने के लिए साखू एवं सागौन के जंगल साफ होने लगे, तब अंग्रेजी हुकूमत ने बड़े पैमाने पर पेड़ लगाने के लिए वर्मा (म्यांमा) की टांगिया पद्धति अपनाई। गरीब और मजदूर तबके के लोगों को टांगिया पद्धति का प्रशिक्षण दिया गया। भारी तादाद में कामगारों को जगह-जगह से लाकर देश भर के जंगलों में बसाया गया और ये लोग पेड़ लगाने में लग गये। टांगिया पद्धति से पेड़ लगाने वाले इन मजदूरों को वनटांगिया कहा जाने लगा।

आशू ने कहा कि 1947 में आजादी तो मिली, लेकिन जंगल में बसे इन वनटांगियों के लिए आजादी अधूरी थी। जंगल के कानून आड़े आने से इन्हें राजस्व ग्राम नहीं बनाया जा सका, तो ग्रामीण अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित रह गये।  इन्हें किसी भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता था। यहां के युवा सरकारी नौकरियां नहीं पा सकते थे और देश के नागरिक होने के बावजूद पंचायत चुनाव में मतदान करने तक से वंचित थे। जंगल के कानून की वजह से ये बगैर कोई अपराध किये कानून तोड़ने वाले बने रहते थे।

गौरतलब है कि योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर के कुसुम्ही जंगल के कुछ वन ग्रामों को राजस्व ग्राम घोषित किया गया था।

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