धर्म डेस्क। जब भी हम कोई पूजा या अनुष्ठान करते हैं तो सर्वप्रथम गौरी नंदन गणेशजी की उपासना करते हैं। सभी देवताओं में प्रथम पूज्य माने जाने वाले गणेश जी का अवतरण दिवस गणेश चतुर्थी का पावन पर्व देश ही नहीं। अपितु विश्वभर के सनातन धर्मावलम्बियों द्वारा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। चारों तरफ उत्सव ही उत्सव, बस सबके मन में एक ही इच्छा कि हे विघ्नहर्ता हमारे भी बिगड़े काम बनाओ। जो भी भक्ति भाव से इन्हें पुकारता है गणपति उनकी मनोकामना अवश्य ही पूरी करते हैं।
बड़े ही मनमोहक से दिखने वाले गणेश जी के भव्य और दिव्य स्वरुप, शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव यानी ॐ कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उद ,चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूंड है। इनकी चार भुजाएं चारों दिशाओं में सर्वव्यापता की प्रतीक हैं। उनकी छोटी पैनी आँखें सूक्ष्म -तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं।
समस्त देवी-देवताओं में गणेशजी को बहुत अधिक बुद्धिमान माना गया है। गजानन जी की लम्बी सूंड महाबुद्धित्व का प्रतीक है। लम्बी सूंड तीव्र घ्राण शक्ति की महत्वता को प्रतिपादित करती है जिसका अर्थ है कि जो समझदार व्यक्ति है वह अपने आस-पास के माहौल को पहले से ही सूंघ सकता है। गणेश जी की सूंड हमेशा हिलती -डुलती रहती है जिसका तात्पर्य है कि मनुष्य को हमेशा सचेत रहना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार सुख ,समृद्धि व ऐश्वर्या की प्राप्ति के लिए उनकी बायीं ओर मुड़ी सूंड की पूजा करनी चाहिए और यदि किसी शत्रु पर विजय प्राप्त करनी हो तो दायीं ओर मुड़ी सूंड की पूजा करनी चाहिए।
अंग विज्ञान के अनुसार बड़ा उदर खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक होता है। गणेश जी का बड़ा उदर सुखपूर्वक जिंदगी जीने के लिए अच्छी और बुरी सभी बातों को पचाने का संकेत देता है। इससे ये भी सन्देश मिलता है क़ि मनुष्य को हर बात अपने अंदर रखकर किसी भी बात का निर्णय बड़ी सूझ -बूझ के साथ लेना चाहिए व लम्बोदर स्वरुप से हमें ग्रहण करना चाहिए कि बुद्धि के द्वारा हम समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं और सबसे बड़ी समृद्धि प्रसन्नता है।
श्री गणेश जी का एक नाम ‘गजकर्ण ‘ भी है। अंग विज्ञान के अनुसार लंबे कान वाले व्यक्ति भाग्यशाली और दीर्घायु होते हैं। गणेश जी के कान सूप की तरह हैं और सूप का स्वभाव है क़ि वह सार-सार को ग्रहण कर लेता है और कूड़ा करकट को उड़ा देता है। गणेश जी के कानों से यह सन्देश मिलता है कि मनुष्य को सुननी सबकी चाहिए, लेकिन अपने बुद्धि विवेक से ही किसी कार्य का क्रियान्वयन करना चाहिए।
गणेशजी को मोदक अतिप्रिय है उनके हाथ में मोदक होता है पर कहीं-कहीं उनकी सूंड के अग्र भाग पर लड्डू दिखाई देता है। मोदक को महाबुद्धि का प्रतीक बताया गया है। मोदक का निर्माण अमृत से हुआ है, यह ब्रह्मशक्ति का भी प्रतीक माना गया है। मोदक बन जाने के बाद वह अंदर से दिखाई नहीं देता है कि उसमें क्या-क्या समाहित है, इसी तरह पूर्ण ब्रह्म भी माया से आच्छादित होने के कारण वह हमें दिखाई नहीं देता।
गणेश जी के हाथ में पाश और अंकुश है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अंकुश और पाश की आवश्यकता पड़ती है। कार्य में सफलता और जीवन में उन्नति के लिए अपने चंचल मन पर अंकुश लगाने की अत्यंत आवश्यकता है। अपने भीतर की बुराईयों को पाश में फंसाकर आप उन पर अंकुश लगा सकते हैं।
गणेश जी का एक ही दांत है दूसरा दन्त खंडित है। बाल्यकाल में भगवान गणेश का परशुराम जी से युद्ध हुआ था। इस युद्ध में परशुराम ने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत काट दिया। तभी से ही गणेशजी एकदंत कहलाने लगे,एक दन्त होते हुए भी वे पूर्ण हैं। गणेश जी ने अपने टूटे हुए दांत को लेखनी बना लिया और इससे पूरा महाभारत ग्रंथ लिख डाला। गणेश जी अपने टूटे हुए दांत से यह सीख देते हैं कि हमारे पास जो भी संसाधन उपलब्ध हैं उसी में हमें दक्षता के साथ कार्य संपन्न करना चाहिए।
गणपति अक्सर वर मुद्रा में दिखाई देते हैं। वरमुद्रा सत्वगुण की प्रतीक है। इसी से वे भक्तोंकी मनोकामना पूरी कर अपने अभय हस्त से संपूर्ण भयों से भक्तों की रक्षा करते हैं। इस प्रकार गणेश जी का उपासक रजोगुण ,तमोगुण ,सत्वगुण इन तीनों गुणों से ऊपर उठकर एक विशेष आनंद का अनुभव करने लगता है।