नई दिल्ली| दुनिया को पहली बार कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी (carbon capture technology) भी मिली है जिस पर एलन मस्क ने 730 करोड़ रुपये खर्च करने का एलान किया है। दुनिया के पावरफुल टेलीस्कोप (world’s powerful telescope) से ले कर 2022 में दुनिया को मिलेंगे 6 नए तोहफे..
पिछले दो साल से हम तबाही की खबरें ही सबसे ज्यादा पढ़ रहे हैं। इस तबाही के पीछे कोरोना महामारी है जिसका नया स्वरूप प्रत्येक कुछ महीनों में सामने आ रहा है, लेकिन इन सबके बीच कुछ सुखद खबरें भी हैं जिन्होंने दुनिया को सूकून दिए हैं। वैसे को हर साल विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कई सारे प्रयोग होते हैं, लेकिन इस बार इनकी संख्या कुछ ज्यादा ही है। अभी साल 2022 के दो महीने भी पूरे नहीं हुए लेकिन दुनिया को विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कई बड़े तोहफे मिल चुके हैं। एक तरफ दुनिया का सबसे पावरफुल टेलीस्कोप लॉन्च (world’s powerful telescope) हुआ है तो दूसरी तरफ ड्रोन ने डिफाइब्रिलेटर (defibrillator) की समय पर डिलीवरी करके 71 साल के बुजुर्ग की जान बचाई। दुनिया को पहली बार कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी (carbon capture technology) भी मिली है जिस पर एलन मस्क ने 730 करोड़ रुपये खर्च करने का एलान किया है।
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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (american space agency nasa) द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया अब तक का सबसे शक्तिशाली जेम्स वेब टेलीस्कोप (James Webb Telescope) सोमवार को (24 जनवरी) पृथ्वी से एक मिलियन मील दूर अपने अंतिम गंतव्य पर पहुंचा है।जेम्स वेब टेलीस्कोप नाम का यह टेलीस्कोप पृथ्वी से लगभग एक मिलियन मील (1.5 मिलियन किमी) की दूरी पर दूसरे लैग्रेंज प्वाइंट (L2) की कक्षा में है। यह पृथ्वी के अनुरूप सूर्य की परिक्रमा करेगा, क्योंकि यह एल-2 (L2) की परिक्रमा करता है।”अंतरिक्ष में 30 दिनों की यात्रा के बाद अपने अंतिम गंतव्य पर पहुंचा है। हब्बल का उत्तराधिकारी कहा जाने वाला यह टेलीस्कोप उससे 100 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। (James Webb Telescope) अंतरिक्ष की सुदूर गहराइयों को देखने में सक्षम होगा। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के ऑप्टिक्स पर करीब 25 लाख रुपये के सोने की परत को चढ़ाया गया है। आप इस टेलीस्कोप की काबिलियत का पता इस बात से लगा सकते हैं कि अगर इसको चांद पर रख दिया जाए, तो यह पृथ्वी पर उड़ रही एक मक्खी को भी आसानी से डिटेक्ट कर सकेगा। इसे बनाने में करीब 9.7 बिलियंस डॉलर का खर्चा आया है।
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ड्रोन का इस्तेमाल फिल्मों में लंबे समय से हो रहा है। इसके अलावा सेना भी ड्रोन का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर करती है। ड्रोन का इस्तेमाल भी डिलीवरी के लिए होता रहा है, लेकिन पहली बार स्वीडन में ड्रोन का इस्तेमाल मेडिकल इमरजेंसी के लिए हुआ है। स्वीडन में एक 71 वर्षीय बुजुर्ग की जान बचाने में ड्रोन ने अहम भूमिका निभाई है। एक बुजुर्ग व्यक्ति को बर्फ में गिरते समय दिल का दौरा पड़ गया था जिसके बाद ड्रोन से डिफाइब्रिलेटर (defibrillator) की डिलीवरी हुई जिसस व्यक्ति की जान बची। बता दें कि डिफाइब्रिलेटर वही डिवाइस है जिसके जरिए कार्डिएक अरेस्ट की स्थिति में इलेक्ट्रिक शॉक दिए जाते हैं।
कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी (carbon capture technology) पिछले कुछ दिनों से काफी चर्चा में है। डेलावेयर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में हाइड्रोजन द्वारा संचालित विद्युत रासायनिक प्रणाली का उपयोग करके हवा से 99% कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने का डेमो दिखाया है जिसके बाद से इसकी चर्चा बड़े स्तर पर होने लगी है। टेस्ला के चीफ और दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क ने भी कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी (carbon capture technology) पर करीब 720
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उन्होंने ट्वीट करके कहा कि वे कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन टेक्नोलॉजी की खोज करने वाले व्यक्ति को 720 करोड़ रुपये का इनाम देंगे। अब सवाल यह है कि आखिर क्या है कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी (carbon capture technology)? तो आपको बता दें कि वातावरण में फैले या फैलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने की प्रक्रिया ही कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी(carbon capture technology) है। फैक्ट्रियों और तमाम पावर प्लांट की चिमनियों से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करके किसी अन्य जगह स्टोर किया जाएगा जिससे वातारण को बचाया जा सकेगा।
गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने हाल ही में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के नेतृत्व वाली शोध टीम को सबसे तेज डीएनए अनुक्रमण तकनीक का सर्टिफिकेट दिया है। सबसे तेज डीएनए का अनुक्रमण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एक्सीलेरेटेड कंप्यूटर की मदद से किया गया है। यह रिकॉर्ड महज पांच घंटे और दो मिनट में बना है। इस दौरान डॉक्टर्स ने एक रोगी से ब्लड लिया और उसी दिन एक आनुवांशिक डिसऑर्डर मरीज को ठीक किया। आमतौर पर डीएनए अनुक्रमण में एक सप्ताह से भी अधिक का समय लग जाता है। यह शोध 12 मरीजों पर हुआ है जिनमें से पांच मरीज कुछ ही घंटों में ठीक हुए हैं।बता दें कि डीएनए अनुक्रमण के तहत डीएनए अणु के भीतर एडानीन (A), गुआनीन (G), साइटोसीन (C) और थायामीन (T) के क्रम का पता लगाया जाता है। इस शोध में गूगल और (NVIDIA) की भी मदद ली गई है।
अमेरिका में डॉक्टरों की एक टीम ने एचआईवी पीड़ित एक महिला को ठीक कर दिया है। यह पहला मौका है जब स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के एक जरिए किसी को इलाज हुआ और इलाज सफल हुआ। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह स्टेमसेल एक ऐसे व्यक्ति ने दान किए थे जिसके अंदर पहले से ही एचआईवी वायरस के खिलाफ कुदरती प्रतिरोधक क्षमता थी।