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दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षित प्रतिनिधियों की अनिवार्यता खत्म करने पर रोष

नई दिल्ली| दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में चल रही शिक्षक नियुक्ति प्रकिया को लेकर आम आदमी पार्टी के शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ( डीटीए) ने डीयू प्रशासन पर आरक्षण नीति के विरुद्ध काम करने का आरोप लगाया है। डीटीए ने बयान जारी कर कहा कि डीयू ने हाल ही में शिक्षकों की सलेक्शन कमेटी (चयन समिति ) संबंधी अधिसूचना जारी की है। इसमें कहा गया है कि पद दस से कम होने पर एससी, एसटी, ओबीसी के प्रतिनिधि (ऑब्जर्वर ) की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। डीटीए ने अधिसूचना तुरंत वापस न लेने पर व्यापक आंदोलन की चेतावनी दी।

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डीटीए के प्रभारी प्रो. हंसराज सुमन के मुताबिक, यूजीसी ने वर्ष 2014 में देशभर के केंद्रीय, राज्य और मानद विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों को निर्देश दिए थे कि सभी सलेक्शन बोर्ड में नियुक्तियों के  समय एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को बराबर का प्रतिनिधित्व दिया जाए। यूजीसी द्वारा विश्वविद्यालयों को भेजे गए सर्कुलर में कहा गया है कि दस या उससे अधिक ग्रुप सी व ग्रुप डी के पदों पर नियुक्ति करने वाली कमेटी में एससी, एसटी, ओबीसी के प्रतिनिधत्व के अलावा एक सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय से होना अनिवार्य है।

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सुमन ने मुताबिक, डीयू की अधिसूचना में कहा गया है कि चयन के लिए पदों की संख्या दस से कम है, इस कारण एससी, एसटी, ओबीसी अधिकारी और अल्पसंख्यक समिति के अधिकारी और एक महिला अधिकारी को चयन समिति में शामिल करने के लिए कोई प्रयास नहीं करना चाहिए। उन्होंने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी विभाग/कॉलेज में एक साथ किसी भी विषय में दस से अधिक पदों का विज्ञापन नहीं आता है। कॉलेजों में जहां 60 से 70 फीसदी पदों पर एडहॉक शिक्षक कार्य कर रहे हैं, उन विभागों में 5 या 6 पदों के ही विज्ञापन आए हैं। ऐसी स्थिति में जब चयन समिति दस से कम पदों के लिए बैठेगी और उसमें एससी, एसटी, ओबीसी का ऑब्जर्वर नहीं होगा तो नियुक्तियों में पारदर्शिता नहीं रहेगी और अधिकांश पदों को नॉट फाउंड सूटेबल किए जाने की संभावना है।

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