धर्म डेस्क। विघ्नहर्ता गणेश अपने भक्तों के सारे विघ्न दूर करते हैं। भादो मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन गणेश जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है। इस दिन लोग ढोल-नगाड़ो के साथ गणेश जी को अपने घर लाते हैं। दस दिनों तक घर में उनका पूजन किया जाता है और सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। ग्यारहवें दिन धूमधाम के साथ गणेश जी का विसर्जन कर दिया जाता है। इस बार गणेश चतुर्थी 22 अगस्त को मनाई जाएगी। इस मौके पर जानते हैं गणेश जी के जन्म की पूरी कथा और क्यों कहा जाता है उन्हें गणपति…
एक बार माता पार्वती की आज्ञा का पालन करने में नंदी से कोई त्रुटि हो गई, तो माता पार्वती ने सोचा कि कोई ऐसा होना चाहिए, जो केवल उनकी आज्ञा का पालन करें। उन्होंने अपने उबटन से एक बालक की आकृति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए। कहा जाता है कि एक दिन जब माता पार्वती स्नान कर रही थी तब उन्होंने आदेश दिया कि जब तक वे न कहें किसी को अंदर न आने दें। बालक बाहर पहरा देने लगा।
जब शिव जी के गण वहां आए तो बालक ने किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया। तब स्वयं भगवान शिव वहां पहुंचे लेकिन बालक ने उन्हें भी भीतर जाने से रोक दिया। जिससे शिव जी को क्रोध आ गया और उन्होंने बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया, जब माता पार्वती बाहर आई और यह सब देखा तो अत्यन्त क्रोधित हो गई। शिव जी से अपने पुत्र को जीवित करने के लिए कहा तब शिव जी ने एक हाथी का सिर बालक के धड़ से जोड़ दिया।
सभी देवताओं ने गणेश जी को विभिन्न वरदान दिए। गणेश जी को गणों का स्वामी होने के कारण गणपति कहा जाता है। और गज का सिर लगे होने के कारण गणेश जी को गजानन भी कहा जाता है।