लखनऊ। समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) भारतीय सांस्कृतिक परम्परा के सर्वथा प्रतिकूल है। ऐसा तो होना ही नहीं चाहिए। इस तरह के विवाह होने से सामज में विद्रुपता पनपेगी। यह विचार लखनपुरी में आदिगंगा के गोमती के तट पर स्थित श्रीमनकामेश्वर मठ-मंदिर की श्रीमंहत देव्यागिरी जी महाराज (Mahant Devya Giri) ने व्यक्त किए।
इन दिनों अखबारों में समलैंगिक विवाह को लेकर खबरें प्रकाशित हो रही है ,जिससे समाज में इसको लेकर एक नई बहस शुरू हो गई। आजकल यह ज्वलंत प्रश्न बनता जा रहा है और भविष्य के समाज की चिंता का विषय भी।
समलैंगिक विवाह पर श्रीमनकामेश्वर मंदिर की महंत श्रीदेव्यागिरी (Mahant Devya Giri) से पूछा, तो उन्होंने तत्तक्षण इसके प्रति अपना विरोध जताया और कहा कि समलैंगिंक विवाह किसी प्रकार से उचित नहीं है, पूर्णतः गलत विचार है। ऐसा तो सोचना भी नहीं चाहिए। इस तरह के विवाह का समाज में विरोध होना चाहिए।
श्रीमहंत देव्यागिरी (Mahant Devya Giri) ने कहा हमारी सनातन भारतीय संस्कृति में इस तरह के विवाह की कोई मान्यता नहीं है, कोई जगह नहीं है। यह स्वीकार्य नहीं है। इसकी अवधारण ही गलत है।
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उन्हाेंने कहा कि हमारी संस्कृति में बालक के जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले 16 संस्कारों में विवाह को भी एक संस्कार माना गया है। समाज को व्यवस्थित रूप से संचालित करने और उसे किसी भी प्रकार की विकृतियों से बचाने के लिए ही विवाह संस्कार को बनाया गया है। उन्हाेंने कहा हमारी शाश्वत परम्पराओं में कोई खोट नहीं है, वही सही है और हर एक सनातनी को अपनी पुरानी परम्पराओं से ही जीवन जीना चाहिए।
इसके अलावा यह भी कहा कि हिन्दु धर्म ग्रंथ, पुराण, शास्त्र न केवल ईश्वर भक्ति की ही बात करते है, बल्कि व्यवस्थित परिवार, समाज, रिश्तों की मर्यादा और कैसे एक स्वस्थ्य व सुंदर जीवन जीना चाहिए, इसका भी संदेश देते है। ग्रन्थों में इसकी विस्तृत रूप से सीख दी गई। महंत देव्यागिरी ने अंत में यह भी कहा कि धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं में यह भी बताया गया है कि जिसने भी मर्यादा का उल्लंघन किया है वह दंड का भागी भी बना है।