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सपा के गढ़ में 56 साल बाद राज्यसभा में पहुंचने वाली इटावा की दूसरी बहू बनीं गीता शाक्य

गीता शाक्य

गीता शाक्य

समाजवादी पार्टी के गढ़ के रूप में पहचान रखने वाले उत्तर प्रदेश के इटावा से 56 साल बाद गीता शाक्य  ने राज्यसभा में दस्तक देकर एक नई राजनीति की जन्म दिया है। गीता के राज्यसभा सांसद  बनने पर बीजेपी के दिग्गज नेता चमत्कार की उम्मीद लगाए हुए हैं। वर्ष 1964 में समाजवादी खेमे से सबसे पहले सरला भदौरिया  ने यहां से राज्यसभा में दस्तक दी थी। इसके बाद वर्ष 2020 में गीता शाक्य को बीजेपी ने राज्यसभा भेजकर यहां की राजनीतिक मिजाज में गर्मी ला दी है। यह गर्मी ऐसे ही नहीं आई है बल्कि इसके पीछे कई वजहें मानी जा रही हैं।

यमुना नदी के किनारे बसे इटावा की पहचान वैसे तो डाकुओं के प्रभाव वाले जनपद के तौर पर होती है लेकिन इसके बावजूद यहां समाजवाद की जड़ें काफी मजबूत रही हैं। इसी समाजवाद के बल पर जहां पुरूषों ने राजनीति ने अपने पैर पसारे तो महिलाए भी इसमें पीछे नहीं रहीं। पहली दफा यहां से राज्यसभा का सफर तय कर सरला भदौरिया ने हर किसी को अचरज में डाल दिया था।

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यह बात वर्ष 1964 की है जब समाजवादी पुरोधा डॉ. राममनोहर लोहिया के आर्शीवाद से सरला भदौरिया राज्यसभा पहुंची थीं। सरला की ही तरह इटावा की दूसरी बहू गीता शाक्य ने भी राज्यसभा की दहलीज तक पहुंचकर सबको अचरज में डाल दिया है। गीता चंद रोज पहले बीजेपी से राज्यसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुई हैं।

सरला और गीता दोनों के राज्यसभा पहुंचने के किस्से बड़े दिलचस्प हैं। जहां सरला सर्वण वर्ग से ताल्लुक रखती थीं वहीं गीता पिछड़ी जाति से आती हैं। समाजवादियों के गढ़ इटावा से राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने के बाद गीता शाक्य चर्चा के केंद्र में हैं। इसके पीछे उनका प्रारंभिक राजनीतिक जीवन का समाजवादी होना माना जा रहा है। वहीं दूसरी ओर सरला मूल रूप से समाजवादी ही रही हैं। गीता के सुर्खियों मे रहने की वजह उनके अंत्योदय वर्ग से जुड़े हुए लोगों को मजबूती प्रदान करने का उनका अटल इरादा है।

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सरला की तरह बीजेपी से राज्यसभा पहुंचने वाली गीता शाक्य भी अपने प्रारंभिक काल मे समाजवादी पार्टी का झंडा उठाया करती थीं। दोनों में केवल यही एक समानता नहीं है बल्कि यह दोनों इटावा की बहू भी हैं। सरला के राज्यसभा में जाने के वक्त उनका परिवार राजनीति मे स्थापित हो चुका था। लेकिन गीता राजनीति में अभी संधर्ष वाली भूमिका में ही हैं इसलिए उनके राज्यसभा पहुंचने से पार्टी के लोगों के साथ-साथ अन्य दलों के नुमाइंदे भी अचरज महसूस करते हैं। सरला और गीता दोनों के परिवार खेती-किसानी से जुड़े हुए हैं।

सरला भदौरिया जहां संपन्न परिवार से आती थीं वहीं गीता शाक्य गरीब परिवार से संबंध रखती हैं। सरला बसेरहर इलाके के लुहिया गांव की वासी थीं जबकि गीता भर्थना इलाके के सिंहुआ गांव की रहने वाली हैं। गीता शाक्य पूर्व में औरैया से बीजेपी की जिला अध्यक्ष रह चुकी हैं। इसके अलावा वो वर्ष 2000 से 2010 तक प्रधान भी रहीं थीं जबकि उनके पति मुकुट सिंह भी प्रधान रह चुके हैं।

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गीता शाक्य ने वर्ष 2009 में उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की टिकट पर बिधूना विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। बिधूना में शाक्य वोटों को प्रभावित करने के लिए एसपी ने उन्हें टिकट दिया था हालांकि बाद में वो एसपी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गई थीं। यहां वो दो साल तक बीजेपी की जिला अध्यक्ष रही थीं। इसके बाद गीता ने वर्ष 2012 में बीजेपी की ही टिकट पर चुनाव लड़ा और नतीजों में तीसरे नंबर पर रहीं।

सरला के पति कंमाडर अर्जुन सिंह भदौरिया आजादी के आंदोलन में चंबल में लालसेना के जन्मदाता माने जाते हैं। वर्ष 1957 में कंमाडर के पहली बार सांसद बनने के बाद इस इलाके मे समाजवाद का परचम लहराना शुरू हो गया था, इसके बाद वो 1962 और 1977 में भी सांसद रहे।

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