प्रयागराज। संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि भगवान आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित श्रीमद्ज्योतिष्पीठ के माध्यम से गुरू-परम्परा को ढाई हजार वर्षों से निरन्तर बनाये रखने का प्रयास हो रहा है। जिसके लिए जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती महाराज अथक परिश्रम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ‘ब्रह्म सत्यम् जगत मिथ्या’ का सूत्र जानते हुए भी व्यक्ति लौकिक जगत में जीता है। वास्तव में गीता जीवन के भटकाव को रोकती है। गीता की परम्परा ही भारतीय परम्परा है, यह पहले ही भी रही है, आज भी रही है और आगे भी रहेगी।
उक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख डाॅ मोहन भागवत ने मंगलवार की सायं श्रीमद् ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के संरक्षण में जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर ब्रह्मलीन स्वामी शांतानन्द सरस्वती सभाकक्ष में आयोजित आराधना महोत्सव में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि नाम भले ही अलग-अलग हो जाए। ऐसे लोगों ने जो काम किया है हमें सदैव उसका परिशीलन करने का प्रयास करना चाहिए।
आराधना महोत्सव के माध्यम से शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मलीन ब्रह्मानन्द सरस्वती की 150वीं जयन्ती तथा ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी शांतानन्द महाराज की 100वीं जयन्ती के उपलक्ष में आज का यह भव्य आयोजन करने वालों के प्रति हम कृतज्ञ हैं। आचार्यों का स्मरण, पूजन और उनके बताये मार्गों पर चलना हमारी भारतीय सामाजिक जीवन की देन है, जो इन्हीं महापुरुषों ने निर्मित किया है। धर्म सबको साथ लेकर चलता है, दुनिया का सम्पूर्ण सत्य इन्हीं महापुरुषों, सन्तों के पास है। शंकराचार्य ने जो काम किया उससे हमें राष्ट्रीय जीवन की दिशा में सबक लेना चाहिए।
अपने आशीर्वाद में जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि श्रीमद्ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी शांतानन्द सरस्वती की स्मृति में यह आराधना महोत्सव प्रत्येक वर्ष होता है। जगद्गुरू शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती महाराज ने उत्तर भारत के शंकराचार्य परम्परा को पुनस्र्थापित कर संस्था का विकास किया। 150वीं जयन्ती का उद्घाटन आज डाॅ मोहन भागवत कर रहे हैं।
परमहंस स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी टीकरमाफी ने कहा कि लगभग 165 वर्षों तक ज्योतिष्ठपीठ की पूजा-पद्धति बाधित रही। जिसे जगद्गुरू स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती ने वर्ष 1941 में पुनः प्रारम्भ किया और स्वामी शांतानन्द, विष्णुदेवानंद के बाद अब यह परम्परा शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के मार्गदर्शन में विश्वव्यापी स्वरूप ले रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत का आज के कार्यक्रम में सम्मिलित होना शुभदायक है। इस पीठ का आशीर्वाद लेने वालों का भविष्य हमेशा उज्जवल रहता है।
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कार्यक्रम के प्रारम्भ में मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कथाव्यास स्वामी आचार्य जितेन्द्र नाथ महाराज श्रीनाथ पीठाधीश्वर, श्रीक्षेत्रसुजी अंजन गाँव, अमरावती विदर्भ, महाराष्ट्र एवं श्रीमद्भागवतमहापुराण को माल्यार्पण कर पूजा आरती किया। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से पूर्व राज्यपाल पं. केशरी नाथ त्रिपाठी, ब्रह्मचारी गिरीश, कुलाधिपति महर्षि योगी वैदिक विश्वविद्यालय, दण्डीस्वामी विनोदानंद महाराज, दण्डीस्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती, पं. शीलधर शास्त्री, पं. अंशू त्रिपाठी, ब्रह्मचारी आत्मानंद, आचार्य अभिषेक, आचार्य विपिन, दण्डीस्वामी शंकराश्रम, दिलीप चैरसिया आदि उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथियों को काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी एवं श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर, अयोध्या का नमूना पीठोद्धारक शंकराचार्य का सिक्का और स्मृति चिन्ह, ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी शान्तानंद का स्मृति-चिन्ह एवं आराधना महोत्सव के उपलक्ष में प्रकाशित ग्रन्थ शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती द्वारा भेंट किये गये।
कथाव्यास आचार्य जितेन्द्र ने कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण में ”कृष्णम् वंदे जगद्गुरूम्“ं का संदेश प्रमुखता से दिया गया। उन्होंने बताया कि विश्व की किसी भी डिक्शनरी में विज्ञान शब्द का कोई पर्याय नहीं है। हमारे शास्त्रों में विज्ञान शब्द हजारों वर्षों से स्थापित है। दैवीय शक्तियों के स्वरूप में कोई अन्तर नहीं है, इसलिए भगवान आदिशंकराचार्य की स्थापित पीठों के शंकराचार्य का महत्व आदिभगवान शंकराचार्य की तरह ही है। श्रीमद्भागवतपुराण स्वयं में साक्षात् परमब्रह्म है।