लखनऊ। हौसले हो बुलंद और इरादे हों अटूट तो कुछ भी असंभव नहीं, ऐसा ही कुछ कर दिखाया है कानपुर देहात झींझक गांव की रहने वाली किसान रामचन्द्र की पुत्री ईशा उर्फ लालू रावत ने। लालू ने मिडवाइफरी का कोर्स कर कुछ दिन निजी चिकत्सालय नर्सिंग की नौकरी की, नाइट ड्यूटी के दौरान उन्होंने मशरूम (Mushroom) व्यवसाय से जुड़े मोबाइल फोन पर यूट्यूब पर वीडियो देखे, उनका रुझान मशरूम की खेती की तरफ हो गया। नौकरी छोड़ उन्होंने मशरूम (Mushroom) की खेती शुरू कर दी, आर्थिक तंगी के चलते उन्होंने महज तीन बैगों में फसल तैयार कर अपना कारोबार शुरू किया।
आज लालू ने इस कारोबार में सफलता हासिल कर अपने ही परिवार नहीं सैकड़ों परिवार की आर्थिक स्थिती सुदृढ़ बनाई है। शहर हो या गांव में रहने वाले गरीब परिवार के लोगों को उन्होंने अपने साथ व्यापार में जोड़ा, जिनके लिए एक जून की रोटी कमाना मुश्किल था आज उनके व्यवसाय से जुडे़ लोगों के बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। लालू ने बताया कि उन्हें खाद्य एवं उद्यान प्रसंस्करण विभाग से काफी सहयोग मिला है। जिसके जरिए उन्होंने आगरा, कानपुर, बहराइच, उन्नाव जैसे तमाम शहरों के लोगों को अपने कारोबार में जोड़ा है। खास बात यह है कि उनके साथ जुडे़ ज्यादातर लोगों की आर्थिक स्थिति खराब थी या फिर से वे बेरोजगार थे। लालू के सहयोग से इस कारोबार में जुडे़ लोगों की माली हालात में काफी हद तक सुधार आया है। बेरोजगार इसी कारोबार को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं।
महज तीन बैगों से शुरूआत की खेती की
शुरूआती दौर में लालू ने एक पोस्टर में न्यू रैम्बो स्टार एग्रो मशरूम का विज्ञापन देखा था। जिसे देख लालू ने कम्पनी के मालिक एसआर बघेल से सम्पर्क किया। श्री बघेल के साथ मिलकर उन्होंने महज तीन बैगों में मशरूम की खेती की शुरूआत की, आज लालू सैकड़ों परिवार की जीविका चला रहीं हैं।
पोती लालू को पढ़ाना नहीं चाहते थे बाबा
लालू अपने परिवार में अकेली लड़की थी। उन्होंने कहा कि उनका गांव पिछड़ा हुआ है, वहां के लोगों की सोच थी कि लड़की 13-14 वर्ष की हो जाए, तो उसकी शादी कर दो। पुराने रीति-रवाज के चलते उनके बाबा छेदीलाल लालू को पढ़ाना नहीं चाहते, लेकिन लालू के पिता रामचन्द्र ने बेटी को पढ़ाने की जिद पर अड़े रहे। लालू ने बताया कि उनके बाबा छेदीलाल ने पिता रामचन्द्र को जायदाद से बेदखल कर दिया। पुश्तैनी जमीन-जायदाद चाचा रामजीवन और सीताराम के नाम कर दी। आर्थिक रूप से टूट चुके रामचन्द्र ने लालू को मजदूरी कर बेटी को पढ़ाया और मिडवाइफरी का कोर्स कराया। आज लालू ने मशरूम के कारोबार से जुड कर अपने पिता के सपनों को साकार कर दिया। इतना नहीं लालू ने अपने छोटे भाई आशीष, अमन और बहन प्रीती की पढ़ाई की जिम्मेदारी खुद उठाई है।
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बेसहारा को लैब में रख कर दिया प्रशिक्षण
लालू ने बताया कि बहराइच में रहने वाले रघुवीर ने उनसे सम्पर्क किया था, रघुवीर कर्जे में डूबे थे, बेटियों की पढ़ाई छूट गई थी। इस पर लालू ने रघुवीर को गोमतीनगर खरगापुर में स्थित लैब में उनके रहने की व्यवस्था की और वहीं उन्हें मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी थी। रघुवीर बहराइच में रहकर मशरूम की खेती कर रहे हैं, उन्होंने अपना कर्जा चुका दिया और बेटियां अच्छे स्कूलों में पढ़ रहीं हैं। इतना ही नहीं लालू ने लखनऊ जेल में कैद कैदियों को भी इस कारोबार से जेड़कर उन्हें रोजगार दिया। इसी तरह उन्होंने गोसाईगंज में रहने वाली मामता को भी ट्रेंड कर कई महिलाओं को रोजगार दिया। खरगापुर की सुषमा को भी स्वाभिलंम्बी बनाया।
मशरूम से बनाई चाकलेट और टाफियां
लालू ने बताया कि मशरूम पौष्टिक आहार है। उनका सपना है कि हर थाली में मशरूम हो। मशरूम में प्रतिरोधक क्षमता सबसे अधिक पाई जाती है। यदि रोजाना इसका औषधी की तरह इसका सेवन किया जाये तो व्यक्ति हृदय, पेट, जोड़ों में दर्द, रक्तचाप, मधुमेह समेत तमाम जटिल बीमारियों से भी मुक्ती पाई जा सकती है। उन्होंने मशरूम मल्टीग्रेन आटा, चूर्ण, बेसन, दलिया, बुकनू, टाफी, चाकलेट समेत कई खाद्य पदार्थ बनाये हैं।