उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में कोरोना के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले कई दिनों से लगातार रिकॉर्ड मामले दर्ज किए जा रहे हैं और स्वास्थ्य सेवाएं भी जवाब देती दिख रही हैं।
पुख्ता इंतजाम के दावे जरूर किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत डराने वाली दिख रही है। अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे हैं और ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए घंटों लाइन में खड़ा होना पड़ रहा है। इस बीच कुछ अस्पताल मरीज को झूठी जानकारी दे परेशान करने का भी प्रयास कर रहे हैं।
ताजा मामला गाजियाबाद के सुशीला और पैलेटिव हॉस्पिटल का है जहां पर बेड भी खाली हैं, वेंटिलेटर भी मौजूद हैं, लेकिन फिर भी मरीज को बताया जा रहा है कि सबकुछ फुल हो चुका है। इस झूठी जानकारी की वजह से कई मरीज गाजियाबाद में दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
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प्रशासन को जब इस बात की जानकारी मिली तो उनकी तरफ से दोनों सुशीला और पैलेटिव अस्पताल के खिलाफ कड़ा एक्शन लिया गया। एक तरफ सुशीला अस्पताल का लाइसेंस सस्पेंड करने का आदेश दिया गया है तो वहीं पैलटिव अस्पताल का लाइसेंस निरस्त कर दिया गया।
जानकारी के लिए बता दें कि गाजियाबाद नोडल अधिकारी खालिद अंजुम और नगर स्वास्थ्य अधिकारी मिथिलेश कुमार के सयुंक्त निरीक्षण के बाद ही दोनों अस्पतालों के खिलाफ ये कड़ा रुख दिखाया गया है। जांच के दौरान अस्पताल की बदइंतजामी भी सामने आई है।
पता चला है कि अस्पताल में तैनात स्टाफ भी कोविड नियमो का उल्लंघन कर रहे थे और उनकी तरफ से बायोमेडिकल वेस्ट 2016 अधिनियम का पालन नहीं किया जा रहा है। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच इसे बड़ी लापरवाही माना गया और इसी वजह से कार्रवाई भी कड़ी होती दिखी।
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वैसे एक तरफ गाजियाबाद में ऐसी घटनाएं देखने को मिल रही हैं तो वहीं कई अस्पतालों में सही मायनों में ना बेड मिल पा रहा है और ना ही समय रहते ऑक्सीजन की आपूर्ति हो रही है। राज्य की योगी सरकार जरूर बड़े दावे कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ अलग ही कहानी बयां करती दिख रही है। बड़े ऐलानों के बीच गाजियाबाद में भी स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं और कोरोना की रफ्तार भी बेकाबू दिखाई पड़ रही है। रोजाना 800 से हजार के बीच मामले दर्ज किए जा रहे हैं, वहीं मौतें भी काफी होने लगी हैं।