लाइफ़स्टाइल डेस्क। आचार्य चाणक्य ने सुखमय जीवन के लिए कुछ नीतियां और अनुमोल विचार व्यक्त किए हैं। इन विचारों और नीतियों को जिसने भी जिंदगी में उतारा वो आनंदमय जीवन जी रहा है। अगर आप भी खुशहाल जीवन की डोर से बंधना चाहते हैं तो इन विचारों को जीवन में जरूर उतारिए। आचार्य चाणक्य के इन विचारों में से एक विचार का आज हम विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार आज का ये विचार भाग्य के विपरीत होने पर है।
“भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दु:खदायी हो जाता है।” आचार्य चाणक्य
अपने इस विचार में आचार्य चाणक्य ने भाग्य और कर्म का जिक्र किया है। आचार्य चाणक्य की इन लाइनों का मतलब है कि अगर भाग्य आपके साथ न हो तो अच्छा कर्म भी दुख की वजह बन जाता है। यानी कि कई बार मनुष्य अच्छी सोच के साथ कर्म करता है। लेकिन अगर भाग्य साथ नहीं है तो अच्छे कर्म का नतीजा खराब ही मिलता है।
मनुष्य के जीवन में ऐसे मौके कई बार आते हैं। जब वो अच्छी भावना के साथ अपना कर्म करता है। वो ये कर्म कई बार अपने तो कई बार दूसरों की भलाई को लेकर करता है। हालांकि इन कर्मों का फल उससे उसकी उम्मीदों के मुताबिक नहीं मिल पाता। उसे इस बात की आशा होती है कि उसने जो भी कर्म किया है उसका नतीजा अच्छा ही होगा। हालांकि होता इसके ठीक उलट है। ऐसा भाग्य के कारण ही होता है।
उदाहरण के तौर पर कई लोग दिल के बहुत सच्चे होते हैं। वो दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा आगे रहते हैं। लेकिन समय आने पर सामने वाला व्यक्ति आपके किए गए अच्छे कार्यों के बारे में एक बार भी सोचता नहीं है। यहां तक कि उस व्यक्ति ने उसका जीवन सुधारने या फिर उसकी समय पर मदद की हो, उसका भी एहसास नहीं करता। कई बार तो उसको खरी-खोटी भी सुना देता है। ऐसा तभी होता है जब समय आपके विपरीत हो। ऐसा होने पर अक्सर आपने लोगों के मुंह ये लाइन जरूर सुनी होगी। ये लाइन है- ‘हाथ में जस है ही नहीं।
इसलिए अगर आप कोई कर्म कर रहे हैं तो उसके अच्छे और बुरे दोनों ही परिणामों के लिए खुद को तैयार रखना चाहिए। अगर आपने आचार्य चाणक्य की इस नीति को अपने जीवन में उतार लिया तो आपका जीवन सुखमय व्यतीत होगा।