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Google ने Doodle बनाकर वैज्ञानिक एसएन बोस को किया याद

sn bose

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कोलकाता। दुनिया के महानतम वैज्ञानिकों में शुमार सत्येंद्र नाथ बोस (SN Bose) को आज गूगल (Google) ने डूडल (Doodle) बनाकर याद किया है। आज ही के दिन वर्ष 1924 में सत्येंद्र नाथ बोस (SN Bose) ने दुनिया के महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन को अपने क्वांटम फॉर्मूलेशन भेजे थे जिसे अनस्टाइन ने तुरंत क्वांटम यांत्रिकी में एक महत्वपूर्ण खोज के रूप में मान्यता दी थी। डूडल में बोस को एक प्रयोग करते हुए दिखाए गया है।

1924 में जब उन्होंने इतनी बड़ी खोज की थी तब ऐसा दौर था जब भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और भारतीयों को दुनिया में किसी काबिल नहीं समझा जाता था। लेकिन कहते हैं न कि वैज्ञानिकता की दुनिया में कोई सीमा और भेदभाव नहीं होती है और यही साबित किया था दुनिया के दो महानतम वैज्ञानिकों अल्बर्ट आइंस्टाइन और भारत के सत्येंद्र नाथ बोस ने मिलकर।

इतना ही नहीं ऐसा दौर जब पूरी दुनिया अंग्रेजी भाषा में ही एक-दूसरे को समझती थी तब बोस ने अपनी मातृभाषा बांग्ला में अपने रिसर्च को प्रकाशित किया जो गुलामी के दौर में देश को वैज्ञानिकता की दिशा में नया कदम बढ़ाने में मददगार बना था। भौतिक शास्त्र में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं – बोसान और फर्मियान। इनमे से बोसान सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर ही है।

गांव के साधारण स्कूल में पढ़ेः

इस महान गणितज्ञ का जन्म कोलकाता में एक जनवरी 1894 को हुआ था। बोस की प्रारंभिक शिक्षा गुलाम भारत में उनके गांव के एक सामान्य से स्कूल में हुई। इसके बाद उन्हें न्यू इंडियन स्कूल और फिर हिंदू स्कूल में भर्ती कराया गया। स्कूली शिक्षा पूरी करके सत्येन्द्रनाथ बोस ने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। वह अपनी सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक अंक पाते रहे और उन्हें प्रथम स्थान मिलता रहा। बोस ने 1915 में गणित में एम.एस.सी. परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर सर आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें प्राध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया।

उन दिनों भौतिक विज्ञान में नई-नई खोजें हो रही थीं। जर्मन भौतिकशास्त्री मैक्स प्लांक ने क्वांटम सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। उसका अर्थ यह था कि ऊर्जा को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा जा सकता है। जर्मनी में ही अल्बर्ट आइंस्टीन ने “सापेक्षता का सिद्धांत” प्रतिपादित किया था। सत्येन्द्रनाथ बोस इन सभी खोजों का अध्ययन कर रहे थे। बोस तथा आइंस्टीन ने मिलकर बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स की खोज की।

उन्होंने एक लेख लिखा- “प्लांक्स लॉ एण्ड लाइट क्वांटम” इसे भारत में किसी पत्रिका ने नहीं छापा तो सत्येन्द्रनाथ ने उसे सीधे आइंस्टीन को भेज दिया। उन्होंने इसका अनुवाद जर्मन में स्वयं किया और प्रकाशित करा दिया। इससे सत्येन्द्रनाथ को बहुत ख्याति मिली। उन्होंने यूरोप यात्रा के दौरान आइंस्टीन से मुलाकात भी की थी। 1926 में सत्येन्द्रनाथ बोस भारत लौटे और ढाका विश्वविद्यालय में 1950 तक काम किया। फिर शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति बने। उनका निधन चार फरवरी, 1974 को हुआ।

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मातृभाषा में किया रिसर्च प्रकाशितः

बांग्ला भाषा में विज्ञानचर्चा के क्षेत्र में उनका अमूल्य योगदान है। 1948 में उनके नेतृत्व में कलकत्ता में बंगीय बिज्ञान परिषद गठित हुई थी। इस परिषद का मुखपत्र ”ज्ञान ओ विज्ञान” (ज्ञान और विज्ञान) था। 1963 ई में में इसमें “राजशेखर-बसु संख्या” नामक एकमात्र मूलभूत अनुसंधान विषयक लेख प्रकाशित हुआ। भारत सरकार ने उन्हें 1954 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा।

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